आज की व्यस्त और भागमभाग भरी जिंदगी में पीठ या कमर दर्द का अहसास सभी को होता है। जहाँ कुछ को यह दर्द कभी-कभी सताता है, वहीं कुछ इससे स्थायी रूप से परेशान रहते हैं, तो कुछ स्लिप डिस्क का शिकार होकर बिस्तर पकड़ लेते हैं। आखिर क्यों होता है यह दर्द और क्या है इसका उपचार? क्या इससे बचा जा सकता है?
स्पाइन सोसाइटी ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 10 से 15 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप से पीठ दर्द के शिकार हैं। इसका मतलब यह है कि देश के लगभग 10-15 करोड़ लोग पीठ दर्द की असहनीय पीड़ा को झेल रहे हैं। वैसे तो पीठ या कमर दर्द किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन 30 से 50 वर्ष की आयुवर्ग के लोग इसकी चपेट में अधिक आते हैं। वे महिला और पुरुष इसके अधिक शिकार होते हैं, जिन्हें अपने काम की वजह से बार-बार उठना, बैठना, झुकना या सामान उतारना, रखना होता है।
आजकल युवाओं में विशेष तौर पर कमर दर्द की शिकायत आम बात हो गई है, जिसका मुख्य कारण अनियमित दिनचर्या है। अचानक झुकने, वजन उठाने, झटका लगने, गलत तरीके से उठने-बैठने और सोने, व्यायाम न करने, पेट बढ़ने से कमर दर्द हो सकता है। इसके अलावा छात्रों के भारी बस्ते, ऊँची एड़ी, ऊबड़-खाबड़ रास्तों में ड्राइविंग से भी रीढ़ की डिस्क प्रभावित हो सकती है। वहीं साइटिका की वजह से भी पीठ दर्द शुरू होता है। इसके अतिरिक्त रीढ़ की हड्डी, डिस्क और पीठ दर्द का बहुत गहरा संबंध है। यदि डिस्क कुछ इधर-उधर खिसक जाए,तो कमर अथवा पीठ के निचले हिस्से में तीव्र पीड़ा होने लगती है।
कमर का दर्द विशिष्ट बीमारियों की वजह से भी शुरू हो सकता है-
* कमर की हड्डियों में कोई जन्मजात विकृति * रीढ़ की हड्डी में विकृति या कोई संक्रमण * पैरों में कोई खराबी आदि।
स्काटलैंड और कनाडा के शोधकर्ताओं ने नई एमआरआई तकनीक के जरिए बैठने की स्थिति और उससे पीठ पर पड़ने वाले दबाव का अध्ययन किया है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बैठने का तरीका पीठ के निचले हिस्से में दर्द के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होता है। ब्रिटिश कायरोप्रैक्टिस एसोसिएशन के आँकड़ों के अनुसार 32 प्रतिशत लोग दस घंटे से भी अधिक समय ऑफिस में बैठकर काम करते हैं। इनमें से आधे लोग अपनी सीट खाने के समय भी नहीं छोड़ पाते, जबकि दो तिहाई लोग घर पर भी बैठकर ही काम करते हैं।
कमर दर्द की दो स्थितियाँ सबसे गंभीर मानी जा सकती हैं-स्लिप डिस्क और साइटिका। इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए। स्लिप डिस्क कोई बीमारी नहीं है। यह एक तरह से शरीर की यांत्रिक असफलता है। किसी व्यक्ति को कमर दर्द के साथ पैरों में भी अगर दर्द होता है तो उसे तुरंत डॉक्टर को दिखा लेना चाहिए।
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हमारी रीढ़ की हड्डी में हर दो वंटिब्रा यानी कुंडों जैसी हड्डियों में डिस्क होती है जो झटका सहने का यानी शाक एब्जार्वर का काम करती है। इस डिस्क के घिस जाने से इसमें सूजन आ जाती है, और यह उभरकर बाहर निकल आती है। इसके बाद यह रीढ़ की हड्डी से पैरों तक जाने वाली नसों पर दबाव डालती है। इससे कमर के निचले हिस्से में भयंकर दर्द होता है।
नसें दबने के कारण यह दर्द पैरों तक भी जा सकता है। इसमें पैर सुन्न हो जाने का खतरा रहता है। दर्द इतना कष्टदायक होता है कि मरीज अपनी दैनिक क्रियाओं के निष्पादन तक में असमर्थ हो जाता है। फिर वह दर्द के प्रभाव को हल्का करने के लिए दर्द निवारक औषधियों का इस्तेमाल करता है।
इसी तरह जिन्हें स्लिप डिस्क की शिकायत होती है, उन्हें कमर के निचले हिस्से में असहनीय पीड़ा होती है जो फैलकर कूल्हे तथा टाँग तक पहुँच जाती है। ऐसा डिस्क द्वारा साइटिका नस पर दबाव पड़ने से होता है।
इन तकलीफों में रोगी को कई-कई दिनों तक बिस्तर पर आराम करना पड़ता है। ऐसे मरीजों के लिए सामान्य इलाज में दर्द निवारक दवाएँ पूर्ण विश्राम, मलहम, सिकाई और फिजियोथैरेपी की सलाह दी जाती है। इससे अस्थायी लाभ होता है, तथा दर्द फिर उभर आता है। अंततः मरीज को शल्य चिकित्सा करानी पड़ती है, जो न केवल मुश्किल है बल्कि इससे ऊतकों के नष्ट होने और रक्तस्राव की आशंका रहती है। रोगी को पूर्णतः ठीक होने में भी काफी समय लग जाता है।
गौरतलब है कि पीठ दर्द, कमर दर्द या साइटिका के 80 प्रतिशत रोगी बिना ऑपरेशन के केवल दवाओं, आराम और फिजियोथैरेपी से ठीक हो सकते हैं, केवल 20 प्रतिशत रोगियों को ही ऑपरेशन की जरूरत होती है।
स्लिप डिस्क आज लाइलाज नहीं रह गई है। दूरबीन विधि से भी इसका ऑपरेशन किया जाता है जिसमें मात्र 1.5 सेंटीमीटर का चीरा लगाया जाता है तथा बेहोश करने की भी जरूरत नहीं पड़ती और न ही ऑपरेशन के दौरान विशेष दर्द की अनुभूति होती है। यहाँ तक कि ऑपरेशन के दूसरे दिन ही रोगी को अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है तथा वह अपने सामान्य कामकाज कर सकता है।
स्लिप डिस्क के कारण कमर के भयंकर दर्द से परेशान मरीजों का इलाज लेजर से भी संभव है और वह भी बगैर ऑपरेशन के। आज लेजर डिस्केकटॉमी तकनीक इस तकलीफ के लिए काफी कारगर सिद्घ हुई है। इस विधि से अमेरिका और इंग्लैंड में भी पिछले 4-5 वर्षों से इलाजकिया जा रहा है। इसके अलावा स्लिप डिस्क के रोगियों के लिए मिनिमस इनवेजिव स्पाइनल सर्जरी का भी विकल्प मौजूद है।
कमर दर्द से बचाव
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कमर दर्द की पीड़ा एक भुक्तभोगी ही समझ सकता है। लेकिन इसके लिए हमारी अपनी कुछ आदतें भी उत्तरदायी हैं। यदि आप पीठ या कमर दर्द से बचना चाहते हैं तो इन बातों पर गौर फरमाएँ।
* नियमित रूप से पैदल चलें। यह सर्वोत्तम व्यायाम है।
* अधिक समय तक स्टूल या कुर्सी पर झुककर न बैठें।
* शारीरिक श्रम से जी न चुराएँ। शारीरिक श्रम से मांसपेशियाँ पुष्ट होती हैं।
* एक सी मुद्रा में न तो अधिक देर तक बैठे रहें और न ही खड़े रहें।
* किसी भी सामान को उठाने या रखने में जल्दबाजी न करें वरन् यह कार्य इत्मीनान से करें।
* भारी सामान को उठाकर रखने की बजाय धकेल कर रखना चाहिए।
* ऊँची एड़ी के जूते-चप्पल के बजाय साधारण जूते-चप्पल पहनें।
* सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते समय सावधानी बरतें।
* कुर्सी पर बैठते समय पैर सीधे रखें न कि एक पर एक चढ़ाकर।
* जमीन से कोई भी सामान उठाने के लिए कमर न झुकाएँ अपितु घुटनों को मोड़कर नीचे बैठकर उठाएँ।
* अपने शरीर का वजन नियंत्रित रखें। अधिक भार होने से पीठ दर्द होगा।
* अत्यधिक मुलायम और अत्यधिक सख्त गद्दे पर न सोएँ। इसी प्रकार स्प्रिंग वाला पलंग या झूलती हुई खाट पर भी न सोएँ।
* सोने वाला पलंग सीधा होना चाहिए तथा उस पर साधारण बिस्तर होना चाहिए।
* अधिक ऊँचा या मोटा तकिया न लगाएँ। साधारण तकिए का इस्तेमाल बेहतर होता है।
* यदि कहीं पर अधिक समय तक खड़ा रहना हो तो अपनी स्थिति को बदलते रहें।
* यदि खड़े रहकर काम करना पड़े तो एक पैर को दूसरे पैर से छः इंच ऊपर किसी वस्तु पर रखना चाहिए। एक झटके के साथ न तो उठें न बैठें।
* कार चलाते समय ड्राइविंग सीट थोड़ी आगे होनी चाहिए।