धूम्रपान एक व्यसन या एक रोग

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डॉ. इदरीस ख़ा न
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धूम्रपान से किसी का भला नहीं होता। तंबाकू में एक भी स्वास्थ्यवर्धक गुण नहीं है। धूम्रपान न सिर्फ सिगरेट या बीड़ी पीने वालो की सेहत खराब करता है बल्कि उन लोगों को भी अपनी चपेट में ले लेता है जो खुद सिगरेट या बीड़ी नहीं पीते लेकिन उन लोगों के साथ जीवन बिताने के लिए विवश हैं। सिगरेट या बीड़ी से कोसों दूर रहने वाले रिश्तेदार तथा ऑफिस में काम करने वाले सहकर्मी बेवजह पैसिव स्मोकिंग के शिकार होते हैं।

धूम्रपान करने वाले भाइयों और बहनों को मेरा प्यार भरा सलाम। वो एक ऐसे समुदाय के सदस्य हैं जिन्होंने इस भारत भूमि से जल्दी रुखसत होने का इंतजाम किया है ताकि उनके हिस्से की रोटी किसी और को नसीब हो सके। उन्हें इसलिए भी सलाम कि वो सचमुच ऐसी आदत के गुलाम हैं जिससे सांप्रदायिक सद्भाव और सामजिक समानता की झलक मिलती है।

सच है कि सिगरेट या बीड़ी का धुआँ किसी मजहब और प्रांत को नहीं पहचानता, किसी रिजर्वेशन या राजनीतिक झुकावों को नहीं जानता। उसका सबके लिए एक ही पैगाम है, और वह है मौत।

तंबाकू का धुआँ हर साल लाखों लोगों को असमय काल के गाल समा देता है। इसमें ज्यादातर लोगों में मौत का कारण हृदयाघात या लकवा होता है। उम्र के 25 साल पूरे होने से पहले धुआँ उड़ाने वालों की औसत आयु 10 वर्ष तक कम हो जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि 65 वर्ष जीने की संभावना घटकर 55 पर आ जाती है।

इसका दुखद पहलू यह भी है कि इससे होने वाली हृदय या दिमाग की बीमारी इंसान के सबसे सुनहरे वर्षों को लील जाता है। 45-60 वर्ष की आयु में ही व्यक्ति अपने करियर के शिखर पर होता है और उन्हीं दिनों में ये बीमारी वार करती है।

तंबाकू का धुआँ हृदय और दिमाग की नाड़ियों पर कई तरह से वार करता है। एक तो ये कि हृदय का रोग तेज रफ्तारी के साथ बहुत कम उम्र में जकड़ लेता है। दूसरे बीमारी एक बार पनपने के बाद बढ़ती भी बहुत जल्दी है। ऐसे में बार-बार तकलीफ होने की आशंका बनी रहती है। तीसरे नाड़ियों का आकार भी घट जाता है।

जिससे कि एंजियोप्लास्टी अथवा बायपास का रिजल्ट भी खराब होता है। यदि एंजियोप्लास्टी या बायपास करवाकर भी ये व्यसन नहीं छोड़ा तो अगली प्रक्रिया के लिए भी पहले ही सामान बंध जाता है। बशर्ते कि जीवित रहे।

धूम्रपान के ये शौकीन लोग परिवार और समाज के भी गुनहगार होते हैं। अनजाने ही अपने परिवार के मासूम सदस्यों, खासकर बच्चों की साँसों में भी जहर घोल देते हैं। पैसिव स्मोकिंग का ये जहर हर साल अन्य हजारों लोगों की मौत का कारण बनता है।

हृदय रोगों के अलावा कई तरह के कैंसर जैसे फेफड़े अमाशय, मूत्राशय वगैरह भी धूम्रपान की ही देन हैं। रक्तचाप के मरीजों का प्रेशर भी अनियंत्रित बना रहता है जो आगे चलकर किडनी और हृदय दोनों को खराब करता है। अफसोस की बात है कि विदेशों में जहाँ धूम्रपान की लत कम होती जा रही है वहीं हमारे देश में अब भी बढ़ रही है।

अब अच्छी खबर यह है कि ये सारे पाप धुल सकते हैं अगर धूम्रपान से पूरी तरह तौबा कर ली जाए। पूरी तरह यानी बिलकुल बंद। न तो खुद पिएँ और न पीने वालों की संगति करें। धूम्रपान छोड़ने के बाद उसकी ओर पलट कर भी ना देखें। पूरी तरह से सामान्य होने में भी 3-4साल लग सकते हैं। इससे भी अच्छी खबर यह है कि धूम्रपान बंद करने के दूसरे दिन से ही अच्छे परिणाम आना शुरू हो जाते हैं। जिसने ईमानदारी से धूम्रपान छोड़ दिया है वे अपने खोए हुए साल भी वापस पा सकते हैं। सेहत वापस पा सकते हैं तथा कैंसर के खौफ से भी मुक्ति पा सकते हैं। धूम्रपान छोड़ने वालों के परिवार के लोगों और दोस्तों पर भी जिम्मेदारी आती है कि वे उसकी इस लत से छुटकारा पाने में मदद करें। जिस तरह आस-पड़ोस के लोग या रिश्तेदार बीमार पड़ने पर तत्परता से अस्पताल ले जाते हैं वैसे ही लत छुड़वाने में भी सहायता कर सकते हैं। धूम्रपान के किसी आदी को व्यसनी या आदत से मजबूर समझकर नजरअंदाज न करें। बातों से इशारों से डॉक्टरों की सलाह से जैसे भी संभव हो धूम्रपान की आदत से मुक्ति दिलाएँ।
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