...यहां दशहरे के दिन होती है रावण की पूजा

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कानपुर। बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक दशहरे में पूरा देश रावण का पुतला दहन करता है मगर उत्तर प्रदेश में कानपुर के शिवाला इलाके में स्थित दशानन मंदिर में इस रोज शक्ति के प्रतीक के रूप में रावण की पूरे विधि विधान से न केवल पूजा अर्चना होती है बल्कि श्रद्धालु तेल के दीए जलाकर मन्नतें मांगते हैं।       

        
मंदिर प्रबंधक के के तिवारी ने सोमवार को बताया कि वर्ष 1868 में स्थापित दशानन मंदिर के द्वार पूरे साल में सिर्फ दशहरे के रोज खुलते हैं और इस दिन बडी तादाद में श्रद्धालु रावण के दर्शन कर ग्रहों को शांत करने के लिए सरसों के तेल के दीपक जलाते हैं।         
     
श्री तिवारी ने बताया कि शहर के शिवाला इलाके में कैलाश मंदिर परिसर में देवी के 23 अवतार विद्यमान हैं। मंदिरों प्रांगण में शिव मंदिर के पास ही रावण का मंदिर है। करीब 147 साल पहले उन्नाव जिले के पत्की जगदीशपुर निवासी महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। 
 
मान्यता है कि रावण प्रकांड पंडित होने के साथ साथ भगवान शिव का परम भक्त था। शिव की प्रसन्नता के लिए देवी आराधना आवश्यक है और रावण इस बात को भलीभांति जानता था। इसलिए शक्ति के प्रहरी के रूप में यहां रावण का मंदिर बनाया गया।
       
पुराणों के अनुसार दशमी के दिन रावण का जन्म हुआ था और उसी तिथि को उसका वध भी हुआ था। समस्त देवता और ग्रह रावण के अधीन थे। इस मान्यता के साथ श्रद्धालु विजयदशमी के दिन आरती के बाद रावण के मंदिर में सरसों के दीये जलाते हैं 
 
और ग्रहों की शांति के साथ परिवार की सुख शांति की कामना करते हैं। यह मंदिर साल में केवल एक बार खुलता है इसलिये पूरा दिन यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है और पूजा अर्चना होती है। शाम के समय नगर के विभिन्न स्थानों पर आयोजित रामलीला मंचन में रावण वध के साथ ही मंदिर के द्वार अगले एक साल के लिए बंद कर दिए जाते हैं। (वार्ता)
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