हमारे सनातन धर्म में विजयादशमी पर्व का महत्त्वपूर्ण स्थान है। विजयादशमी के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने आततायी लंकाधिपति रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी।
विजया दशमी का पर्व असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है। विजयादशमी के अवसर पर युद्ध में प्रयुक्त होने वाले समस्त संसाधनों व अस्त्र-शस्त्रों की पूजा-अर्चना की जाती है।
देश के कुछ हिस्सों में विजयादशमी के दिन अश्व पूजन किया जाता है। शास्त्रानुसार विजयादशमी के दिन शमी-पूजन का विशेष महत्त्व बताया गया है। प्रतिवर्ष विजयादशमी का यह पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है।
इस दिन दशमी तिथि में सांयकाल तारा उदित के समय "विजयकाल" रहता है।
शास्त्रानुसार "विजयकाल" में शमी-पूजन व शस्त्र-पूजन करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
वर्ष 2020 में मतान्तर होने के कारण पंचांगों में विजयादशमी तिथि 25 अक्टूबर व 26 अक्टूबर दो दिन बताई जा रही है। अब श्रद्धालुगणों के लिए यह दुविधा है कि वे किस दिन "विजयादशमी" का पर्व मनाएं।
जिन त्योहारों में रात्रि- पूजन का महत्त्व होता है उन में चन्द्रोदय व्यापिनी तिथि की मान्यता होती है। विजयादशमी की पूजन शास्त्रानुसार "विजयकाल" में होती है एवं "विजयकाल" सायं दशमी तिथि में तारा उदय होने के पश्चात होता है।
इस वर्ष 25 अक्टूबर 2020 को दशमी तिथि प्रात: 7:41 से प्रारंभ होकर अगले दिन प्रात: 9:00 बजे तक रहेगी जबकि 26 अक्टूबर 2020 को सायंकाल "विजयकाल" में एकादशी तिथि रहेगी जो अगले दिन प्रात:काल 10:46 बजे तक रहेगी।
अत: विजयादशमी के निर्धारण में शास्त्रानुसार सायंकाल के समय "विजयकाल" में दशमी तिथि का होना अनिवार्य है जो 25 अक्टूबर 2020 को रहेगा। इस शास्त्रोक्त आधार को ध्यान में रखते हुए विजयादशमी का पर्व 25 अक्टूबर 2020 को मनाया जाना श्रेयस्कर रहेगा।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र