विजयदशमी पर पूजें शमी वृक्ष

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- नरेन्द्र देवांगन

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भारत में प्रत्येक चेतन व अचेतन को सम्मान देते हुए उनका पूजन भी किया जाता है। इनमें वृक्ष-वनस्पतियाँ भी सम्मिलित हैं। जिस तरह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर नीम, ज्येष्ठ पूर्णिमा वट सावित्री व्रत पर वट वृक्ष, सोमवती अमावस्या पर तुलसी, पीपल का, भाद्रमास की कुशग्रहिणी अमावस्या पर कुशा का और कार्तिक की आँवला नवमी पर आँवले के वृक्ष के पूजन का महत्व है, उसी प्रकार आश्विन शुक्ल दशमी (विजयदशमी) पर दो विशेष प्रकार की वनस्पतियों के पूजन का महत्व है।

इनमें से एक है शमी वृक्ष, जिसका पूजन रावण दहन के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है। इस परंपरा में विजय उल्लास पर्व की कामना के साथ समृद्धि की कामना का रहस्य छुपा हुआ है।

दूसरी वनस्पति है अपराजिता (विष्णु-क्रांता)। यह पौधा अपने नाम के अनुरूप ही पहचान देता है। यह विष्णु को प्रिय है और प्रत्येक परिस्थिति में सहायक बनकर विजय प्रदान करने वाला है। नीले रंग के पुष्प का यह पौधा भारत में सुलभता से उपलब्ध है।

घरों में समृद्धि के लिए तुलसी की भाँति इसकी नियमित सेवा की जाती है। आयुर्वेद के अनुसार यह पौधा कफ विकारों को दूर करते हुए मासिक धर्म संबंधी समस्याओं के अलावा प्रसव पीड़ा निवारण में भी महत्व रखता है। तंत्र शास्त्र में युद्ध अथवा मुकदमेबाजी के मामले में यह उपयोगी है।

विजयदशमी को दुर्गा पूजन, अपराजिता पूजन, विजय प्रयाण, शमी पूजन तथा नवरात्र पारण के महान कर्म हैं। क्लाइटोरिसाटरनेटिया डालकुलम प्रजाति का यह पौधा भगवान राम युग के पहले से ही व्यवहार में स्थापित है और विद्वानों ने इसका बहुत महत्व बताया है।

विजयदशमी को प्रातःकाल अपराजिता लता का पूजन, अतिविशिष्ट पूजा-प्रार्थना के बाद विसर्जन और धारण आदि से महत्वपूर्ण कार्य पूरे होते हैं। ऐसी पुराणों में मान्यता हैं।

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