विजयादशमी : शुभ संकल्प का पर्व

Webdunia
बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (15:24 IST)
रजनीश बाजपेई व अखिलेश पुरोहित 
 
गर्जेउ मरत घोर रव भारी। कहाँ रामु रन हतौं पचारी॥'
'डोली भूमि गिरत दसकंधर। छुभित सिंधु सरि दिग्गज भूधर॥' 
 
यह है रावण का अहंकार जो कि मरते समय भी उसका साथ नहीं छोड़ रहा है। अभी भी वह घोर गर्जना के साथ राम को मिटाने की बात कह रहा है। इसके साथ ही राम रावण को मार देते हैं। यह रावण अति असाधारण है कि मरने के बाद जब वह वीर जमीन पर गिरता है तो भूचाल आ जाता है, समुद्र में तूफान उठ जाता है। नदियाँ अपने मार्ग बदल देती हैं। अनेक वानरों और राक्षसों को दबाते हुए उसका धड़ पृथ्वी पर गिर जाता है। 

 
गजब है राम कथा कि इतने धुराधरस महामानव को मारने के बाद भी राम सिर्फ एक चरित्र है, एक पात्र है। एक पुरुष कितना उत्तम हो सकता है, इसका आदर्श है। मानवीय गरिमा का चरम प्रतिनिधि है। वह ईश्वर नहीं है। वह लीला भी नहीं कर रहा है। वह एक चरित्र है, जो रोता भी है, हँसता भी है। प्रेम भी करता है, क्रोध भी करता है, आशंकित भी है। क्या होगा आगे, इस संबंध में विस्मय से भरा हुआ भी है। विश्वास भी करता है तो शंका भी उसके चरित्र का हिस्सा है। 
 
एक मनुष्य जब अपनी पूरी गरिमा के साथ, पूरी मर्यादा के साथ अपने पूरे स्वभाव के साथ उपस्थित होता है तो वह राम है। राम इस संस्कृति का एक ऐसा आदर्श है, जिसने प्रेम, सत्यता और भायप के अनोखे प्रतिमान स्थापित किए। जिसके सामने आज सदियों बाद भी सम्पूर्ण भारतीय जनमानस नतमस्तक है।
 
रावण प्रतीक है अहंकार का, पद का, प्रतिष्ठा का, शौर्य का, शक्ति का, साहस का। या ऐसे कहें कि यह प्रतीक मनुष्य की क्षमता का चरम प्रतीक है। कितना साहस है उस चरित्र में जो अपने हाथ से अपना सिर भी काट सकता है। नीति शास्त्र का बड़ा पंडित है लेकिन सत्य के पीछे खड़ा नहीं होता बल्कि सत्य को अपने पीछे खड़ा कर लेता है। सब जानता है लेकिन अपनी बुद्धि का प्रयोग सत्य को झुठलाने के लिए करता है। समय पड़ने पर वह चोरी भी कर लेता है और शास्त्र ज्ञान से उसे भी सही घोषित करता है। समय के हिसाब से छल-कपट भरे निर्णय लेने में उसका कोई सानी नहीं। 
 
जब आदमी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित करता है तभी वह रावण बनने की ओर अग्रसर हो जाता है। महाराजा रावण ने उसी अहम के वशीभूत होकर व्यक्ति की उस स्वतंत्रता पर आक्षेप लगाया जो मनुष्य का सबसे बड़ा अधिकार है। आचार्य चतुरसेन ने लिखा है कि रावण पूरे विश्व को एक ही संस्कृति में ढालना चाहता था। वह अपने फरसे के दम पर बलात्‌ लोगों को रक्ष संस्कृति के नीचे लाना चाहता था, जिसमें सभी लोग एक ही प्रकार की जीवन शैली के अंतर्गत रहें। लेकिन एकता की कल्पना ही अपने आप में उलझी हुई है।
 
यह विश्व कभी भी एक नहीं हो सकता है। इस सृष्टि में दूसरे का एक्ज़िसटेंस ही यूनिकनेस को दर्शाता है। दूसरे का होना ही यह बताता है कि तुम्हारे जैसा कोई नहीं। लेकिन हम इस आधारभूत तथ्य को भी नहीं समझ पाते और रावण की तरह तलवार और फरसे के दम पर एक-सा बनाने की कोशिश करते हैं। इस जगत में एक ही पेड़ के दो पत्ते भी कभी एक नहीं हो सकते, तब मनुष्य की तो बात ही छोड़ दें। मनुष्य उस नियंता की चरम प्रदर्शना है।
 
परमात्मा बनने की, नियंता बनने की, दूसरे का भाग्य और व्यवहार, सोच तय करने की मनुष्य में प्रबल आकांक्षा रहती है। आम से आम आदमी में भी कहीं गहरे यह आकांक्षा छुपी रहती है कि सूरज भी मेरे हिसाब से उदित हो। रावण प्रारंभ में एक अतिसामान्य आदमी था, जिसकी झलक रामचरित मानस में कुछ यूँ मिलती हैः अंगद रावण के इतिहास के बारे में चुटकी लेते हुए कहते हैं कि जितने रावणों के बारे में मैं जानता हूँ, तू सुन और बता कि उनमें से तू कौन-सा है। अंगद की वाणी का तुलसी के शब्दों में उल्लेख करना रोचक होगाः
 
'बलिहि जितन एक गयउ पताला। राखेउ बाँधि सिसुन्ह हयसाला॥ 
एक बहोरि सहसभुज देखा। धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा॥
एक कहत मोहि सकुच अति, रहा बालि कीं काँख। 
इन्ह मह रावन तैं कवन , सत्य बदहि तजि माख॥' 
 
ये सभी वही रावण थे दशग्रीव दशानन रावण! लेकिन यदि आदमी के पास शक्ति आ जाए तो वह कितना भयानक आचरण कर सकता है। राम-रावण कथा ऐसे साधारण मनुष्यों की कहानी है जिसमें शक्ति दोनों के पास थी। एक के पास अहंकार की शक्ति, दूसरे के पास सत्य की शक्ति। सत्य की शक्ति की इससे बड़ी प्रतीक कथा नहीं हो सकती कि एक निर्वासित राजपुरुष बंदरों-भालुओं को इकट्ठा कर उस महाशक्तिमान रावण को हरा देता है। 

उस रावण को, जिसकी शक्ति की झलक रामचरित मानस में कुछ यूँ देखने को मिलती हैः- 
 
'दस सिर ताहि बीस भुजदंडा। रावन नाम बीर बरिबंडा॥' 
'भुजबल बिस्व बस्य करि, राखेस कोउ न सुतंत्र॥'
'मंडलीक मनि रावन, राज करइ निज मंत्र॥' 

महाकवि तुलसी ने रावण के अत्याचारों का उल्लेख किया हैः
 
'अस भ्रष्ट अचारा भा संसारा, धर्म सुनिअ नहिं काना। 
तेहि बहुबिधि त्रासइ देस निकासइ, जो कह बेद पुराना॥'
 
रावण अपनी नई संस्कृति की स्थापना के लिए पुरानी विधियों से जीवन जीने की कोशिश कर रहे लोगों को बुरी तरह सताता था। रावण के राज में एक ही कानून था - रावण। न्याय की अवधारणा लुप्त हो चुकी थी। रावण शासकों के क्रूर अहंकार का प्रतीक है। वह उसके सामने न झुक ने वालों को खा जाता है, जिसका वर्णन रामचरित मानस में यूं हैः
 
'अस्थि समूह देखि रघुराया। पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया॥ 
निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुबीर नयन जल छाए॥' 
 
राम प्रबल संकल्प के प्रबल प्रतीक हैं। आत्म शक्ति और सत्य के परम उपासक हैं। तभी तो राम यह प्रतिज्ञा करने का साहस करते हैं किः
 
'निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।' 
 
राम और उनके वानर आम जनता के प्रतीक हैं।यह कथा आधुनिक अर्थों में इसलिए प्रासंगिक हो जाती है। अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाकर तो देखो, परमात्मा की शक्ति आपको राम बना देगी। खर दूषण की विशाल सेना के सामने एक मनुष्य का साहस कह रहा हैः
 
'हम छत्री मृगया बन करहीं। तुम्ह से खल मृग खोजत फिरहीं॥ 
रिपु बलवंत देख नहिं डरहीं। एक बार कालहु सन लरहीं॥' 
 
कितना साहसी है यह मनुष्य! आदर्श है क्रांति का। ऐसे समय आवाज उठाने का, जब अपनी क्षमताओं को भूला मनुष्य साँस लेने में भी घबराता है।
 
 
फिल्म 'स्वदेस' में निर्देशक ने एक दृश्य रचा था जिसमें गाँव में रावण का पुतला दहन हो रहा है। उस वक्त एक संवाद है कि रावण अँधेरे में कितना सुंदर दिखाई देता है! वास्तव में रावण की सिर्फ इतनी ही उपयोगिता है कि उसकी काली पृष्ठभूमि में राम अधिक धवल रूप में सामने आते हैं। इस देश की यही गरिमा है कि इसने पुराण लिखे, राम कथा लिखी। यह कोई इतिहास है या सच में ऐसा हुआ, आज भी पंडितों के बीच विवाद का विषय है। 
 
खैर, पंडित तो मनुष्य विवादों और बौद्धिक जुगाली के लिए ही बनता है पर इन कथाओं में सीधा अर्थ यही छुपा है कि इतिहास की चिंता मत करना। इतिहास तो हमेशा अपने को दोहराता है। तुम पकड़ लेना इसमें छुपे संकेतों को, राम-रावण में छुपे अर्थों को। इन राम कथाओं को रोशनी बनाना आने वाले कल के लिए, न कि उलझना इनकी ऐतिहासिकता को लेकर। यह तुम्हारा काम नहीं है। 
 
इसे मशाल बनाओगे तो अपने अंदर छुपे अहंकारी रावण को मारकर उस राम से मिल पाओगे जिसके बिना तुम अतृप्त और अधूरे हो। रावण के साथ गुजारा असंभव है क्योंकि रावण एक अहंकार है जिसके मिटने की अनेकों कथाएँ भारतीय पुराणों में भरी पड़ी हैं। यह प्रतीक रावण जीने में भले आसान लगे पर वह मंजिल नहीं है, मंजिल तो राम ही है। दशहरा बार-बार यही याद दिलाता है कि यदि रावण की तरह अहंकारी हो तो जलना निश्चित है। वर्तमान की दशाएँ राम नहीं, रावण ही पैदा कर रही हैं। तभी तो हर आदमी की जिन्दगी एक विषाद से भरी नजर आ रही है। चारों तरफ रावणों से भयाक्रान्त इस पृथ्वी के तल से आज यही आह निकल रही है कि- 
 
'अब कोई राम नहीं, गम का धनुष जो तोड़े 
जिंदगी तड़पती सीता के स्वयंवर की तरह' 
Show comments

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से शुरू होंगे इन 4 राशियों के शुभ दिन, चमक जाएगा भाग्य

Astrology : एक पर एक पैर चढ़ा कर बैठना चाहिए या नहीं?

Lok Sabha Elections 2024: चुनाव में वोट देकर सुधारें अपने ग्रह नक्षत्रों को, जानें मतदान देने का तरीका

100 साल के बाद शश और गजकेसरी योग, 3 राशियों के लिए राजयोग की शुरुआत

Saat phere: हिंदू धर्म में सात फेरों का क्या है महत्व, 8 या 9 फेरे क्यों नहीं?

vaishkh amavasya 2024: वैशाख अमावस्या पर कर लें मात्र 3 उपाय, मां लक्ष्मी हो जाएंगी प्रसन्न

08 मई 2024 : आपका जन्मदिन

08 मई 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Akshaya tritiya : अक्षय तृतीया का है खास महत्व, जानें 6 महत्वपूर्ण बातें

kuber yog: 12 साल बाद बना है कुबेर योग, 3 राशियों को मिलेगा छप्पर फाड़ के धन, सुखों में होगी वृद्धि