सत्य और निष्ठा की जीत: विजयादशमी

विजयादशमी विशेष

Webdunia
पंडित गोविंद बल्लभ जोशी
ND
अन्याय, अत्याचार, अहंकार, विघटन और आतंकवाद आदि संसार के कलुष कलंक हैं। इतिहास पुराण गवाह हैं कि समय-समय पर ये कलुष सिर उठाते रहे हैं। त्रेता युग में रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद, खरदूषण, ताड़का, त्रिशरा आदि और द्वापर में कंस, पूतना, बकासुर के अलावा दुर्योधन आदि कौरवों के रूप में हों या इस युग में अन्याय और आतंकवाद के तरह-तरह के चेहरे हों। इन कलुषों पर श्रीराम जैसे आदर्श महापुरुष साधन संपदा नहीं होते हुए भी केवल आत्मबल के माध्यम से इन पर विजय होते रहे हैं।

ऋषि विश्वामित्र के साथ ताड़क वन प्रदेश में ताड़का आदि के नेतृत्व में प्रशिक्षित हो रहे आतताइयों को ध्वस्त कर छोटी अवस्था से ही श्रीराम-लक्ष्मण ने राष्ट्र रक्षा का पहला अध्याय लिखा। उसके बाद वनवास के समय वनमाफियाओं द्वारा उजाड़े गए दंडक वन में ग्यारह वर्ष तक रहते हुए वन और वृक्षों की सेवा की। रोपे गए वृक्षों का जानकी जी ने वनवासी स्त्रियों के साथ सिंचन किया तथा लक्ष्मण जी ने धनुषबाण लेकर उनकी रक्षा की। इस प्रकार प्रकृति पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वनों के महत्व को समाज के सामने प्रस्तुत किया। इसी प्रकार पंचवटी प्रदेश जहाँ खरदूषण की देख-रेख में सीमा पार से घुसे आतंकी भारत को अस्थिर करने के लिए प्रशिक्षण ले रहे थे। सूर्पणखा विषकन्या के रूप में रावण की सत्ता का विस्तार करने का उपक्रम चला रही थी। उसे कुरूप बनाकर खरदूषण समेत सारे आततताई उपद्रवियों का सफाया कर सुदूर लंका में बैठे रावण को मानो चुनौती दे डाली ।

रावण द्वारा सीता का हरण कोई सामान्य अपहरण नहीं था। वह एक राष्ट्र की अस्मिता एवं संस्कृति का हरण था। जिसकी रक्षा के लिए भगवान श्रीराम ने रीछ, वानरों जैसे सामान्य प्राणियों को संगठित किया। वन में रहने वाले सामान्य जीवों में इतनी शक्ति उभार देना साधारण नायकों के वश का काम नहीं हो सकता कि अजेय और दुर्लंघ्य कहे जाने वाले समुद्र से घिरे लंका जैसे दुर्ग का भेदन कर राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा कर सके। रामचरित अपने समय और बाद की पीढ़ियों के लिए भी एक मिसाल है कि किस प्रकार शौर्य, शक्ति आचरण एवं नीति से किसी राष्ट्र की अखंडता को बचाया जा सकता है।

आधुनिक परिवेश में विश्व के प्रत्येक राष्ट्र पर आतंकवाद का असुर सुरसा के मुख की तरह फैलता जा रहा है। मनोरंजन के लिहाज से प्रस्तुत की जाने वाली रामलीलाओं में राम का चरित्र भले ही हल्के-फुल्के ढंग से पेश किया जाता हो लेकिन हजारों लाखों लोगों के लिए वह जीवन में स्फूर्ति और प्रेरणा जगाने वाला केंद्र है। भारत के अतिरिक्त विश्व के अन्य सभी राष्ट्र श्रीराम के शील सौंदर्य राजनीतिक कुशलता तथा सामरिक वैश्विक रणनीति के परिप्रेक्ष में राम को ही अपना आदर्श मानव निर्माण की दिशा में अपनी इष्ट मान रहे हैं।

ऐसे में विजयादशमी पर्व पर यदि भारत वर्ष के नीतिनियामकों सुधी राष्ट्रभक्त इस अवसर पर श्रीराम चन्द्र जी के जीवन से सात्विकता, आत्मीयता, निर्भीकता एवं राष्ट्र रक्षा की प्रेरणा लें तथा समाज के राष्ट्रविरोधी प्रच्छन्न तत्वों से संघर्ष करने के साहस का परिचय दें तो भारतवर्ष की अखंडता, नैतिकता तथा चारित्रिक सौम्यता के निर्माण के क्षेत्र में अद्भुत सराहनीय प्रयास होगा।

' भूमि सप्त सागर मेखला भूप एक रघुपति कोसला' कहकर एक तरह से भारत की एकता और समरस संस्कृति का परिचय देते हैं। राम और रावण दोनों ही शिव भक्ति के अन्य उपासक थे लेकिन रावण अपनी साधना और भक्ति का उपयोग मान, सत्ता प्राप्ति, समाज को पीड़ित करने तथा विषयों के भोग में कर रहा था। जबकि भगवान श्रीराम की साधना अखिल ब्रह्मांड के कल्याण के उद्देश्य को लेकर थी। अंतर्मुखी साधना-साधक की प्रत्येक इंद्रिय को विषयों से निवृत्त करती है। ‍विजयादशमी पर्व की शुमकामनाएँ!

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Durga ashtami Puja vidhi: शारदीय नवरात्रि 2024: दुर्गा अष्टमी पूजा की विधि, महत्व, मंत्र, भोग, कथा और उपाय

Dussehra 2024 date: दशहरा पर करते हैं ये 10 महत्वपूर्ण कार्य

Navratri 2024: देवी का एक ऐसा रहस्यमयी मंदिर जहां बदलती रहती है माता की छवि, भक्तों का लगता है तांता

Dussehra: दशहरा और विजयादशमी में क्या अंतर है?

सिर्फ नवरात्रि के 9 दिनों में खुलता है देवी का ये प्राचीन मंदिर, जानिए क्या है खासियत

सभी देखें

धर्म संसार

09 अक्टूबर 2024 : आपका जन्मदिन

09 अक्टूबर 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Navratri Saptami devi maa Kalratri: शारदीय नवरात्रि की सप्तमी की देवी कालरात्रि की पूजा विधि, मंत्र, आरती, कथा और शुभ मुहूर्त

Dussehra 2024 date: दशहरा कब है, क्या है रावण दहन, शस्त्र पूजा और शमी पूजा का शुभ मुहूर्त?

Durga ashtami 2024: शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि को लेकर कंफ्यूजन करें दूर, कब है महाष्टमी, जानिए