जो सामने है, वही जिंदगी है, वही न्यू और नेक्‍स्‍ट नॉर्मल है

संदीपसिंह सिसोदिया
शनिवार, 1 जनवरी 2022 (00:01 IST)
‘Change Is Constant’ सिर्फ यह एक पंक्‍ति हमारे पूरे जीवन को परिभाषि‍त करती है। यह पंक्‍ति जीवन का सूत्र है। अगर कहीं  जिंदगी उलझ जाए, लड़खड़ा जाए तो यही याद रखि‍ए ‘Change Is Constant’ अर्थात बदलाव ही शाश्वत है, अपरिहार्य है, स्‍थि‍र  है। बदलाव ही गति भी है, और इस बदलाव को अपनाना ही कर्म है। 
 
कोरोना काल में हमें अब किसी ‘नॉर्मल’ का इंतजार नहीं करना चाहिए। क्‍योंकि जो अभी, इस वक्‍त, आपकी आंखों के सामने घट रहा है, वही ‘नॉर्मल’ है। वही ‘न्‍यू नॉर्मल’ है और वही ‘नेक्‍स्‍ट नॉर्मल’ होगा। 
 
पिछले 2 सालों के दौरान जब पूरी दुनिया हवा में पसरे जहरीले संक्रमण के सामने हताश होकर औंधे मुंह गि‍र रही थी, आंखों के सामने शवों की कतारें, अस्पतालों के बाहर हुजूम देख रही थी तो हमारे जेहन में सिर्फ एक ही बात थी, कि यह मुश्किल दि‍न भी गुजरेगा, यह क्षण बीतेगा और एक नई सुबह आएगी, जिसमें सबकुछ सामान्‍य होगा, सबकुछ सामान्‍य हो जाने की यह उम्‍मीद अच्‍छी बात भी है, उम्‍मीद से ही जीवन के कई स्‍तंभ कायम है, लेकिन उम्‍मीद के सहारे एक जगह पर खड़ा भी नहीं रहा जा सकता, पीछे नहीं हटा जा सकता। 
 
हम इंतजार नहीं कर सकते कि एक दिन सबकुछ ठीक हो जाएगा, उसके बाद हम अगला कदम बढाएंगे। अब यह समय किसी  'नॉर्मल' या न्यू नॉर्मल के इंतजार का नहीं, इसी वक्‍त के साथ कदमताल करने का है।  2020 में लगभग पूरा साल हमने कोरोना संक्रमण के दंश को झेला और यह अपेक्षा की कि साल 2021 में सबकुछ अच्‍छा  होगा, लेकिन यह साल भी हमने कमोबेश रोते-बि‍लखते और संक्रमण के खत्‍म हो जाने के इंतजार में गुजारा। 
 
अब हम 2022 के नॉर्मल होने के लिए उम्‍मीदमंद हैं, हम यही भूल कर रहे हैं। कोई आपदा, कोई बीमारी, मुसीबत हमेशा के लिए कभी खत्‍म नहीं होती, वक्‍त गुजर जाने के बाद भी वे हमारे जीवन का हिस्‍सा होती हैं। कोरोनावायरस हो या उसका डेल्टा वैरिएंट हो या फिर ओमिक्रॉन वैरिएंट।
 
परिस्‍थि‍ति चाहे जो हो, जैसी भी हो, जीवन प्रक्रिया थम नहीं सकती। यह बात हमें प्रकृति से सीखनी चाहिए, कभी आपने देखा कि उगने से पहले सूरज ने इस बात की प्रतीक्षा की हो कि बादल छंट जाने के बाद वो उदय होगा। कभी चांद को देरी से आते-जाते देखा है या किसी रोज दिन ने अपने उगने का चक्र तोड़ दिया हो। नहीं, ऐसा कभी नहीं होता। 
 
इसलिए जिंदगी भी इसी चक्र के साथ चलना चाहिए, हर दिन एक नई रोशनी लेकर आता है, रात अगले दिन की उम्मीद लेकर आती है। सुख-दुख जिंदगी का अटूट हिस्सा है। यही नियति का चक्र भी है। अगर यह चक्र टूटा तो हम पीछे छूट जाएंगे। पिछड़ जाएंगे। वर्तमान से बिछड़ जाएंगे।      
 
अब यह जहर जिंदगी का स्थायी हिस्सा है। हमें इसके साथ रहना है, फर्क सिर्फ इतना है कि अब हमें अपना तरीका बदल लेना है। यह तय करेगा कि हम कितनी सावधानी, कितनी सजगता और कितनी जागरूकता के साथ रहते हैं। घर से बाहर नहीं निकलने की वजह से कई लोगों का आत्‍मविश्‍वास जाता रहा, लॉकडाउन से उनका मोरल डाउन हो गया। घर में रहने की वजह से दुनिया में ज्‍यादातर लोग औसत और आम गतिविधि‍यों से दूर हो गए, इनमें सबसे बुरा प्रभाव बच्‍चों पर पड़ा। 
 
जब उनके स्कूल-कॉलेज में एडमि‍शन हुए तब लॉकडाउन लग गया, ऐसे में वे कॉलेज से वंचित रह गए, स्‍कूल और खेलकूद छूट गए, दोस्तों से दूर हो गए। बुजुर्ग खुली हवा और धूप को मोहताज हो गए, बगीचों में टहलने, साथियों से बतियाने से वंचित रह गए।
 
हम अब यह प्रतीक्षा नहीं कर सकते कि 2022 बहुत अच्‍छा होगा। कोरोना, लॉकडाउन या किसी और डर से अब हम हाथ पर हाथ धरकर घर में नहीं बैठ सकते, हमें सूरज की तरह उगना होगा और चांद की तरह निकलना होगा। हमें बाहर निकलना होगा, इस ‘नेक्‍स्‍ट नॉर्मल’ के साथ, लेकिन पिछली गलति‍यों में करेक्शन के साथ। 
 
कदम बढ़ाए बगैर हम जिंदगी को, अपनी काबिलियत को एक्‍सप्लोर नहीं कर सकते। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है वे लोग जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में कदम आगे रखे। अगर, दुनिया खोजने निकले नाविक समुद्री तूफानों से डरते, राह की भयानक कठि‍नाइयों से नहीं गुजरते तो दुनिया के नक्‍शे अधूरे होते, एक ही दायरे में सिमटकर रह जाते। 
 
सहज और सहूलियत से भरी परिस्‍थि‍ति में कभी कोई आविष्‍कार नहीं हुआ, एक छोटे से बीज को भी जमीन में गाड़कर उस पर मिट्टी और खाद का बोझ उड़ेल दिया जाता है, महीनों तक अंधेरे से लड़ता हुआ जब वो पल्‍लवित होता है, पौधा बनता है, तभी फूल देता है। अगर वो अपने लिए किसी नॉर्मल परिस्‍थि‍ति की प्रतीक्षा करता तो शायद कभी उपज नहीं पाता। जिंदगी भी ठीक ऐसी ही है। 
 
रिस्‍क लीजिए, लेकिन सतर्कता के साथ। निडरता से बाहर निकलिए, लेकिन सावधानी के साथ। पिछले सालों में जो गलतियां हो चुकीं हैं, अब उन्‍हें दोहराया नहीं जा सकता। जो सामने है, वही न्‍यू और नेक्‍स्‍ट नॉर्मल है। 
 
विपरीत हालातों में जीने के बेहतरीन और सुरक्षि‍त तरीकों को अपनाने के लिए हमें कंफर्ट जोन तोड़ने होंगे। 'फॉल्स पॉजिटिविटी' में डूबे रहने के बजाए सच्चाई का सामना करना होगा। नए जमाने की रवायतों जैसे ऑनलाइन लर्निंग, वर्चुअल ऑफिस को अपनाना होगा। यही वक्त है अपने हुनर को बनाने का, उसे निखारने का। टाइम मैनेजमेंट सीखने और लाइफ स्टाइल सुधारने का इससे बेहतर कोई और समय नहीं है। 
 
यह प्रैक्‍ट‍िस हमें सिर्फ अपने लिए नहीं करनी है, यह हमारे अपनों के लिए भी हो, हमारे बच्‍चों के लिए हों। अपने साथ अपने परिवार को, अपने बच्‍चों को और अपने दोस्‍तों को भी जीने के नए तरीके एक्‍सप्लोर करने दें। खुद नई राह ढूंढि‍ए और उन्‍हें भी राह दिखाइए।
अब सारा दिन घर में रहना, परिवार के साथ वक्‍त बिताना ही काफी नहीं है। परिवार, खासतौर पर बच्चों के साथ होने वाली तकलीफों पर बातें करना, कोरोना से डराने के बजाय उन्हें रिएलिटी समझाना, उनके सवालों के सही जवाब देना, मोटिवेट करना, उन्‍हें 'नेक्‍स्‍ट नॉर्मल' के लिए तैयार करना ही सही मायनों में क्वालिटी टाइम स्पेंड करना है। 
 
उन्हें बताएं कि यदि कुछ लोगों ने मुनाफाखोरी कर इंसानियत के खिलाफ काम किया तो इस मुश्किल समय में बहुत से लोगों ने मुसीबतमंदों की मदद कर इंसान होने का फर्ज भी निभाया है। किसी भी परिस्थिति में इंसान बने रहना ही नार्मल है, इतना तो हम कर ही सकते हैं।  
 
हां, मास्क अब कपड़ों की तरह जरूरी है, सोशल डिस्टेंसिंग जरूर रखें लेकिन सोशल डिस्कनेक्ट न होने पाएं। सहकार और सहयोग से बड़ा संबल नहीं। मुसीबत से पार पाने के लिए एकजुटता बेहद जरूरी है। 
 
घरों में कैद होकर हमने धूप, हवा और बारिश को भी खोया है। इस जहरीले दौर में हर किसी ने कुछ न कुछ खोया ही है। ऐसे में अब हमारे पास कोई विकल्‍प नहीं है कि हम ‘एवरीथिंग इज फाइन’ हो जाने तक जिंदगी को जीना छोड़ दें। अब जो असामान्‍य है, हमें उसे ही अपना सामान्‍य बनाना होगा, नए बदलाव को अपनाना होगा। 
 
2022 बदलाव का साल है, इसके साथ खुद को एडजस्ट करना ही इस वक्‍त की मांग है और अब जिंदगी की भी। अब जो सामने है, वही जिंदगी है, यही 'न्यू और नेक्‍स्‍ट नॉर्मल' है।

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