पैगम्बर मोहम्मद : गरीबों के सच्चे सेवक

ईद-ए-मिलादुन्नबी

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- डॉ. इकबाल मोद ी
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मिलादुन्नबी यानी इस्लाम के संस्थापक पैगम्बर मोहम्मद साहब का जन्मदिन रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख को मनाया जाता है। हजरत मोहम्मद साहब का जन्म मक्का (सऊदी अरब) में हुआ था। उनके वालिद साहब का नाम अबदुल्ला बिन अब्दुल मुतलिब था और वालेदा का नाम आमेना था। उनके पिता का स्वर्गवास उनके जन्म के दो माह बाद हो गया था। उनका लालन-पालन उनके चाचा अबू तालिब ने किया।

हजरत मोहम्मद साहब को अल्लाह ने एक अवतार के रूप में पृथ्वी पर भेजा था, क्योंकि उस समय अरब के लोगों के हालात बहुत खराब हो गए थे। लोगों में शराबखोरी, जुआखोरी, लूटमार, वेश्यावृत्ति और पिछड़ापन भयंकर रूप से फैला हुआ था। कई लोग नास्तिक थे। ऐसे माहौल में मोहम्मद साहब ने जन्म लेकर लोगों को ईश्वर का संदेश दिया।

वे बचपन से ही अल्लाह की इबादत में लीन रहते थे। वे कई-कई दिनों तक मक्का की एक पहाड़ी पर, जिसे अबलुन नूर कहते हैं, इबादत किया करते थे। चालीस वर्ष की अवस्था में उन्हें अल्लाह की ओर से संदेश प्राप्त हुआ। अल्लाह ने फरमाया- 'ये सब संसार सूर्य, चाँद, सितारे मैंने पैदा किए हैं। मुझे हमेशा याद करो। मैं केवल एक हूँ। मेरा कोई मानी-सानी नहीं है। लोगों को समझाओ।'

हजरत मोहम्मद साहब ने ऐसा करने का अल्लाह को वचन दिया। तभी से उन्हें नुबुवत प्राप्त हुई। हजरत मोहम्मद साहब ने खुदा के हुक्म से जिस धर्म को चलाया, वह इस्लाम कहलाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है- 'खुदा के हुक्म पर झुकना।'

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इस्लाम का मूल मंत्र है- 'ला ईलाहा ईल्लला मोहम्मदन-रसूलल्लाह' जो कलमा कहलाता हैं। इसका अर्थ है- 'अल्लाह सिर्फ एक है, दूसरा कोई नहीं। मोहम्मद साहब उसके सच्चे रसूल हैं।'

इस्लाम धर्म के कुछ प्रमुख आधार हैं, जो इस प्रकार हैं- खुदा को मानना, उसको सजदा करना।

तहारत यानी पवित्रता- इसी पर सभी उसूलों का आधार है। इसमें शरीर की पवित्रता, कपड़ों की पवित्रता आदि से लेकर मन की पवित्रता तक शामिल है।

नमाज- फजर, जोहर, असर, मगरिब और ईशा के वक्त पर पाँच बार नमाज यानी खुदा की इबादत करना। अपनी इंद्रियों को काबू में रखना। गलत काम से दूर रहना।

हज यानी वह तीर्थयात्रा- जिसमें दुनिया के सभी मुसलमान बिना भेदभाव के भाग लेते हैं।

जकात- उन सभी व्यक्तियों पर यह वाजिब है जो धर्मदा दान कर सकते हैं। यह दान गरीबों, बेसहारों आदि के लिए व्यय किया जाता है। यह 2.50 पैसे प्रति सैकड़ा प्रतिवर्ष के हिसाब से देना होता है।

रोजा यानी व्रत- यह आत्मा की शुद्धि के लिए रखा जाता है। रमजान महीने में 30 दिन तक रोजे रखे जाते हैं। पूरा माह अल्लाह की इबादत में लगाना होता है।

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हजरत मोहम्मद साहब को लोगों को इस्लाम धर्म समझाने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। दुश्मनों के जुल्मो-सितम को सहन करना पड़ा। वे जरूरतमंदों को कभी खाली हाथ नहीं लौटाते थे। वे दीन-दुखियों के सच्चे सेवक थे। उनके जन्म के समय अरब में महिलाओं की बड़ी दुर्दशा थी। उन्हें बाजार की पूँजी समझा जाता था। लोग उन्हें खरीदते-बेचते थे और भोग- विलास का साधन मानते थे। लड़की का जन्म अशुभ माना जाता था और लड़की पैदा होते ही उसका गला दबाकर मार दिया जाता था।

इस महापुरुष ने जब यह बात देखी तो उन्होंने औरतों की कद्र करना लोगों को समझाया। उन्हें समानता का दर्जा देने को कहा। साम्यवाद की बात भी सर्वप्रथम हजरत मोहम्मद साहब ने लोगों के सामने रखी थी।

एक बार मस्जिद तामीर हो रही थी। वे भी मजदूरों में शामिल होकर काम करने लगे। लोगों ने कहा- 'हुजूर, आप यह काम अंजाम न दें।'

इस पर पैगम्बर साहब ने फरमाया- 'खुदा के नेक काम में सब बराबरी के साथ हाथ बँटाते हैं।' उनका कहना था कि लोगों को नसीहत तब दो, जब आप खुद उसका कड़ाई से पालन कर रहे हों। हजरत मोहम्मद साहब पर जो खुदा की पवित्र किताब उतारी गई है, वह है कुरआन। जिबराईल इस पवित्र कुरआन को लेकर मोहम्मद साहब के दर पर आए। पैगम्बर साहब 28 सफर हिजरी सन्‌ 11 को 63 वर्ष की उम्र में वफात हुए। उनकी मजार-शरीफ मदीना मुनव्वरा में है।

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