रमज़ान : बरकतों वाला महीना

शराफत खान
अल्लाह ने अपने बंदों पर पाँच चीजें फर्ज की हैं। कलिमा-ए-तयैबा, नमाज़, हज, रोज़ा और ज़कात। इन्हें इस्लाम के खास सुतून (स्तंभ) कहते हैं।

रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर का नौवाँ महीना है। रमज़ान बरकतों वाला महीना है, इस माहे मुबारक में अल्लाह अपने बंदो को बेइंतिहा न्यामतों से नवाज़ता है। इसी पवित्र महीने में अल्लाह रब्बुल इज्जत ने कुरआन पेगंबर हज़रत मुहम्मद स.अ.व. पर नाजिल फरमाया।

रमज़ान की कई फज़ीलत हैं। इस माह में नवाफिल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फर्ज के बराबर और हर फर्ज का सवाब 70 फर्ज के बराबर कर दिया जाता है। इस माह में हर नेकी पर 70 नेकी का सवाब होता। इस माह में अल्लाह के इनामों की बारिश होती है।

इस महीने में शैतान को कैद कर दिया जाता है, ताकि वह अल्लाह के बंदों की इबादत में खलल न डाल सके। इस पूरे माह में रोज़े रखे जाते हैं और इस दौरान इशा की नमाज़ के साथ 20 रकत नमाज़ में कुरआन मजीद सुना जाता है, जिसे तरावीह कहते हैं।

रोज़े का मकसद सिर्फ भूखे-प्यासे रहना ही नही है, बल्कि अल्लाह की इबादत करके उसे राजी करना है। रोज़ा पूरे शरीर का होता है। रोज़े की हालत में न कुछ गलत बात मुँह से निकाली जाए और न ही किसी के बारे में कोई चुगली की जाए। ज़बान से सिर्फ अल्लाह का जिक्र ही किया जाए, जिससे रोज़ा अपने सही मकसद तक पहुँच सके।

रोज़े का असल मकसद है कि बंदा अपनी जिन्दगी में तक्वा ले आए। वह अल्लाह की इबादत करे और अपने नेक आमाल और हुस्ने सुलूक से पूरी इंसानियत को फायदा पहुँचाए। अल्लाह हमें कहने-सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे। (आमीन)

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