यहां दो बातें खासतौर से समझना जरूरी हैं। यानी किसी का अदब हम दो ही वजहों से करते हैं या तो 'डर' से या 'मोहब्बत' से।
अल्लाह (ईश्वर) चूंकि महान और पवित्र (पाकीजा) है इसलिए अजीम (महान) और पाकीजा (पवित्र) से 'डरना' दरअसल 'मोहब्बत' करना ही है। इसलिए एक रोजादार जब रोजा रखता है तो उसके दिल में ख़ौफ़े-खुदा होता है, जो उसे रोजे के अहकाम और अदब से बांधता है और चूंकि रोजा अल्लाह का ही रास्ता है। इसलिए रोजा अल्लाह से ख़ौफ़ और मोहब्बत का सबब तो है ही, अल्लाह का अदब भी है।
अर्श (आठवां आसमान) से जब अल्लाह के फ़जल की तलब की जाती है तो रहीम और करीम (दयालु-कृपालु) होने की वजह से अल्लाह रोजादार की दुआ सुनता है और मुराद पूरी करता है। किसी ने कहा भी है-'दरे-करीम से बंदे को क्या नहीं मिलता/जो मांगने का तरीक़ा है उस तरह मांगो।'