पैरोकार यानी परहेज़गारी (संयम और सात्विक कर्म) के साथ रखा गया रोजा अल्लाह (ईश्वर) के सामने रोजादार की ईमानदारी का तो तरफ़दार है ही, पाकीज़गी (विपत्रता) का पैरोकार भी है। परहेज़गारी से रखा गया रोजा ख़ुद सिफ़ारिश बनकर रोजदार के लिए अल्लाह की नेमतों के दरवाज़े खोलता है।
पवित्र कुरआन के उनतीसवें पारा (अध्याय) की सूरत अलमुरसिलात की इकतालीसवीं/ बयालीसवीं आयतों में ज़िक्र है : 'इन्नाल मुत्तक़ीना फ़ी ज़िलालिवं व अयूनिवं व फ़वाकिहा मिम्मा यशतहन' यानी 'बेशक परहेज़गार (संयमी-सत्कर्मी) सायों में (छांह में) और चश्मों में (झरनों में) होंगे और मेवों (ड्राय फ्रूट्स) में होंगे जो उनको मऱग़ूब (पसंदीदा/रुचिकर होंगे।'
कुल मिलाकर यह कि नेक अमल (सत्कर्म) और परह़ेजगारी (संयम के साथ रखा गया रोजा रोजदार की दीनदारी की दलील भी है और हिफ़ाजत की अपील भी। चौथा रोजा हिफ़ाज़त का कवच है : अल्लाह की अदालत में रोजा रोजदार का वकील है। इंशा अल्लाह! जिसका नतीजा होगा फ़तह (जीत) और फ़ज़ल (कृपा ईश्वर की)।