उन्होंने कहा कि जो रोगी पहले दिल के हल्के दौरे के शिकार हो चुके हैं वह रोजा रख सकते हैं क्योंकि तमाम शोधों में यह बात सामने आई है कि ऐसे रोगियों को रमजान में रोजा रखने के दौरान भी आम दिनों जितना ही खतरा रहा है। ऐसे लोगों को केवल अपने डॉक्टर से सलाह लेकर अपनी दवा की मात्रा में थोड़ा सामंजस्य बिठा लेना चाहिए और खाने पीने में सावधानी बरतनी चाहिए।
प्रो. कुमार कहते हैं कि लेकिन जिन रोगियों को दिल का भारी दौरा पड़ चुका है और उनकी बाईपास सर्जरी हो चुकी है, उन्हें रमजान के दौरान रोजे से परहेज रखना चाहिए क्योंकि ऐसे रोगियों को दिन में कई बार दवा लेनी पड़ती है, साथ ही उनके शरीर में पानी का स्तर भी सामान्य बना रहना जरूरी है। लेकिन फिर भी अगर ऐसे रोगी रोजा रखना चाहते हैं तो वे अपने डॉक्टर की सलाह से ही ऐसा करें।
प्रोफेसर कुमार कहते हैं कि चिकित्सक की सलाह के बिना बाईपास सर्जरी करा चुके लोगों का रोजा रखना खतरनाक हो सकता है। जन्म से मधुमेह (टाइप वन) पीड़ित और इंसुलिन लेने वाले रोगियों को रोजा रखने से बचना चाहिए क्योंकि यदि वे इंसुलिन नही लेंगे तो उनके रक्त में शर्करा का स्तर (ब्लड शुगर लेवल) बढ़ जाएगा और उनकी हालत खराब हो सकती है।
प्रो. कुमार ने कहा कि इसी तरह जिन लोगों को उनके रहन-सहन के कारण मधुमेह (टाइप टू) हुआ है वे रोजा रख सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें काफी सावधानी बरतनी होगी। ऐसे लोगों को अपने खाने-पीने का तरीका बदलना होगा। ऐसे लोगों को सुबह सेहरी में पर्याप्त खाना खा लेना चाहिए और उसके साथ अपनी दवाएं ले लेनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिए कि ऐसे रोगी जो भी खाना खाएं वह ज्यादा तला-भुना न हो और अगर मांसाहार लेते हैं तो वह बहुत कम मात्रा में लेना चाहिए तथा काफी कम तेल मसाले में बना हुआ होना चाहिए।
वह कहते हैं कि इफ्तार के समय भी ऐसे रोगियों को एकदम से पूरा खाना नहीं खा लेना चाहिए बल्कि थोड़े-बहुत फल और फलों का ज्यूस लेना चाहिए और कुछ और हल्की-फुल्की खाने की चीजें लेकर तुरंत दवा ले लेनी चाहिए।