नमाज़ इंसान को सिखाती है कि जिंदगी कैसे बिताएं जैसे नमाज़ में इधर-उधर देखने की मनाही और इससे यह संकेत दिया जाता है कि बाहर भी हम किसी की जिंदगी में न झाकें, कुछ गलत न देखें। नमाज़ में हाथ बांधकर खड़े होते हैं। वैसे ही नमाज़ के बाहर हमारे हाथ जुल्म के फैसले न लिखें।
जिस तरह नमाज़ में हमारी ज़बान कूछ खास शब्द बोलने की इजाज़त होती है और अगर कुछ और बोला तो नमाज़ टूट जाएगी। इसी तरह नमाज़ के बाहर भी ऐसा कुछ न बोला जाए जिससे लोगों के दिल टूट जाएं। ज़बान को पाबंदी में रखें और दूसरों के लिए मीठे बोल ही बोलें।
नमाज़ अल्लाह से मांगने का ज़रिया है। इससे बंदे अपने रब के सामने अपनी ज़रूरत पूरी करवाते हैं। जो शख्स पांच वक्त की नमाज़ पाबंदी से पढ़ें, उसके लिए दीन की बाकी बातें अपनाना आसान हो जाता है।
नमाज वो चीज है जो हर रोज दिन में पांच बार हमारे ईमान, अखलाक और अहद को मजबूत करती है। फलस्वरूप हम एक बेहतर समाज, कौम और मुल्क ख़ड़ा कर सकें। इंसान और इंसानियत को कायम रख सकें।
नमाज हमारे अकीदों (आस्था) को ताजा करती है जिस पर हमारे नफ्स (शरीर) की पाकीजगी, रूह की तरक्की, अखलाक (चरित्र) की दुरुस्ती और अमल की इस्लाह मौकूफ है। यह उन बेशुमार फायदों में से है जो हमें नमाज से खुदा को नहीं बल्कि हमी को हासिल होते हैं। दरअसल खुदा ने हमारे फायदे के लिए ही इसे हमारे लिए अनिवार्य किया है।
रोजे का मकसद- हर बालिग मुसलमान पर रोजा फर्ज किया गया है। रोजे का मकसद है कि इंसान अपने अंदर तकवा पैदा करे। सिर्फ भूखे प्यासे रहना ही रोजा नहीं है, बल्कि हर बुराई से दूर रहकर अल्लाह और उसके रसूल का जिक्र करना और अपने रिश्तेदार, दोस्त अहबाब से अच्छा सुलूक करना इसका मकसद है।