नमाज़ की शर्तों का बयान

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नमाज़ की छः शर्तें हैं, जिनके बगैर नमाज़ सिरे से होती ही नहीं है। अगर उनमें से कोई एक भी शर्त न पाई गई तो नमाज़ न होगी।

तहारत- यानी ऩमाजी का बदन और कपड़े उस जगह का पाक होना, जिस पर ऩमाज पढ़ें, नमाज़ की जगह के पाक होने का मतलब यह है कि नमाज़ी के क़दम के नीचे की जगह और सजदे में जो आज़ा ज़मीन पर लगते हैं, उनके नीचे की जगहें पाक हों।

सतर का ढँका होना- मर्द का सतर नाफ के नीचे से घुटनों तक है और औरत का सारा बदन ही सतर है, सिवाए मुँह, हथेली और क़दम के। नमाज़ के लिए सतर का ढँका होना लाजिमी है।

इस्तक़बाल क़िब्ला- यानी नमाज़ में क़िबले की तरफ़ मुँह करना, अगर क़िब्ले की सिम्त में शुबाह हो तो किसी से पूछ लें।

वक्त- यानी नमाज़ को वक्त के अंदर पढ़ना, अगर वक्त से पहले पढ़ी तो न हुई वक्ते नमाज़।

नीयत- दिल के पक्के इरादे को नीयत कहते हैं, ज़बान से कहना बेहतर है। नीयत की मैंने कहें, ये न कहें नीयत करता हूँ।

तकबीर तहरीमा- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम हर नमाज़ को अल्लाहो अकबर से शुरू फ़रमाते और नमाज़ की यही पहली तकबीर है, जिसका नाम तकबीरे तहरीमा है।

मसअला- अगर सिर्फ मुँह क़िब्ला से फेर लिया और सीना क़िब्ले से नहीं फिरा तो उस पर वाजिब है कि फौरन क़िब्ले की तरफ़ मुँह कर लें। उसकी नमाज़ हो जाएगी, मगर बगैर उज्र के क़िब्ले की तरफ़ से मुँह फेरना मकरूह है।

मसअला- नमाज़ जनाज़े में तकबीरे तहरीमा रुक्न है और बाक़ी नमाज़ों में शर्त है और तकबीरे तहरीमा से पहले पाँचों शर्तों का खत्मे नमाज़ तक मौजूद रहना जरूरी है, वरना नमाज़ न होगी। (क़ानूने शरीअत जि. 1, स. 35)

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