रोजे से दूर होती हैं बीमारियाँ भी

- विनोद बंधु

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अंधविश्वास की बात अलग है, लेकिन धार्मिक कर्मकांडों की अपनी अहमियत होती है। अनेक ऐसे धार्मिक कर्मकांडों को विज्ञान ने भी अपनाया है। कई शोधों ने भी इन पर मुहर लगाई है।

इस्लाम के सबसे पवित्र महीने रमजान के साथ भी ऐसा ही है। मोहम्मद अली अनवर कहते हैं कि दरअसल सभी धर्मों में ऐसे अनेक धार्मिक कर्मकांड हैं जो मूलतः वैज्ञानिक अवधारणा की उपज हैं, लेकिन उन्हें धर्म से जो़ड़ दिए जाने के कारण लोग ऐसे कर्मकांडों पर ईमानदारी से अमल करते हैं। अली के अनुसार ऐसे कर्मकांडों की रचना मौसम, जलवायु, सेहत और मनोविज्ञान को ध्यान में रखकर की गई। रमजान भी इनमें एक है।

पटना के कोतवाली स्थित मस्जिद के इमाम मोहम्मद तनाउल मुस्तफा ने बताया कि हॉलैंड के पादरी एल्फ. गॉल ने डायबिटीज, दिल के मरीजों, पेट और साँस की बीमारियों से पीडि़तों को एक महीने का रोजा रखवाया और वह सब स्वस्थ्य हो गए। इंग्लैंड और जर्मनी में हुए ऐसे कई शोधों से साबित हुआ है कि रोजा रखने से जिस्मानी खिंचाव, अवसाद और वजू से आँख, नाक, कान की बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रो. ममूर पेलैड ने रोजा के बारे में सुना। वह पेट में कीड़े की बीमारी से परेशान थे। उन्होंने एक महीने का रोजा रखा और उनकी बीमारी खत्म हो गई।

मोहम्मद मुस्तफा कहते हैं कि बदलते परिवेश में लोग बाग सेहत के प्रति और जागरूक हुए हैं और अब रोजा के दौरान तेल और मसालेदार पदार्थों का सेवन कम करते हैं। फल और हरी सब्जियों का उपयोग ज्यादा होता है। पहले गोश्त आदि ज्यादा खाते थे, इससे नुकसान होता था। मुस्तफा ने बताया कि दरअसल रोजा रखने का निहितार्थ ही है बुराई से परे रहना। इस दौरान इसका खास खयाल रखना प़ड़ता है कि बुराई की तरफ जेहन आकर्षित न हो।

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अल्लाह के खौफ के कारण रोजा रखने वाले इस पर अमल करते हैं। उन्होंने बताया कि रोजा के दौरान लोग इकट्ठे बैठकर खाते हैं जिससे अमीर-गरीब की खाई पट जाती है और आपस में भाईचारा बढ़ता है। रोजा रखने वालों में रहमदिली भी बढ़ी है। समाजसेवी मोहम्मद आसिफ अली ने बताया कि इस दौरान सभी प्रकार के नशे से खुद को दूर रखना पड़ता है। रोजा रखने से पित्त और लीवर की बीमारी दूर होती है। ऐसा वैज्ञानिक शोधों से भी प्रमाणित हो चुका है।

मोहम्मद अली अनवर का कहना है कि चाहे हिंदू धर्म हो या इस्लाम सबमें ऐसे पर्व-त्योहार हैं जिनके वैज्ञानिक पक्ष भी हैं। प्राचीन काल में पहा़ड़ों की गुफाओं और कंदराओं में फकीर और संत तपस्या करते थे। ऐसा इंद्रियों पर नियंत्रण के लिए किया जाता था। रोजा या व्रत रखने से हमारी इंद्रियाँ नियंत्रण में रहती हैं। इनपर धर्म की मुहर लग जाने से लोग ईमानदारी से इनका निर्वाह करते हैं।

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