इसको और साफ तौर पर यों समझा जा सकता है कि माहे-रमजान रहमत का दरिया है जिसमें से मगफिरत का मोती खोजने के लिए रोजा एक जरिया है।
यानी रोजा रूहानी गोताखोरी भी है। दरिया या समन्दर में अंदर तक खोजने वाले के लिए यानी गोताख़ोर के लिए एक मख़्सूस (विशिष्ट) पैरहन (परिधान) होता है जिससे उसकी गोताखोरी आसान हो जाती है। यानी गोताखोर के लिए अलग लिबास जरूरी है।
तो समझ लीजिए कि अल्लाह का जिक्र ही वो पैरहन या लिबास है जिससे रोजादार यानी रूहानी गोताखोर मगफिरत का मोती तलाश लेता है।
कुरआन-पाक के बाईसवें पारे (अध्याय-22) के सूरह अल अहजाब की 41वीं और 42वीं आयत में हुक्म है- 'ऐ ईमान वालों! अल्लाह का बहुत जिक्र किया करो। सुबह-शाम उसकी पाकी (पवित्रता) बयान करते रहो।'