देवशयनी आषाढ़ी एकादशी की पौराणिक कथा

WD Feature Desk
शुक्रवार, 27 जून 2025 (14:35 IST)
devshayani ekadashi story 2025: वर्ष 2025 में 06 जुलाई, दिन रविवार को हरिशयनी/ देवशयनी एकादशी मनाई जा रही है। इस दिन भगवान श्रीविष्णु 4 माह के लिए शयन करने चले जाते हैं तथा कार्तिक मास में देवउठनी एकादशी पर जागते हैं। उनके इस शयनकाल वाले अर्थात् आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन यह पौराणिक व्रत कथा पढ़ने से अनंत पुण्यफल प्राप्त होता हैं। आइए यहां पढ़ें विष्णु जी खास कथा... ALSO READ: आषाढ़ी देवशयनी एकादशी पूजा की शास्त्र सम्मत विधि
 
कथा : 
 
देवशयनी एकादशी की पौराणिक व्रत कथा के अनुसार सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करता था। उसकी सारी प्रजा धन-धान्य से भरपूर और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था। 
 
एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुखी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञादि भी बंद हो गए। एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजन! सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है, क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है। वर्षा के अभाव से अकाल पड़ गया है और प्रजा मर रही है। इसलिए हे महाराज! कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो। 
 
राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दुखी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दुखों को समझता हूं। ऐसा कहकर राजा कुछ सेना साथ लेकर वन की तरफ चल दिया। वहां राजा अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वहां राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया।ALSO READ: देवशयनी एकादशी 2025 में कब आएगी, सुख समृद्धि के लिए कौन से 5 उपाय करें?
 
मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशलक्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि, हे भगवन! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है। इससे प्रजा अत्यंत दुखी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा है। जब मैं धर्मानुसार राज्य करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता अभी तक नहीं चल सका। अब मैं आपके पास इसी संदेह को निवृत्त कराने के लिए आया हूं। कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए।
 
राजा की यह बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इसमें धर्म को चारों चरण सम्मिलित हैं अर्थात् इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है। ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं, परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। इसलिए यदि आप प्रजा का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो। 
 
इस पर राजा कहने लगा कि, ऋषिवर मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो- आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त उपद्रवों को नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो।
 
ऋषि मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा। अत: इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है। इस कथा को पढ़ने और सुनने मात्र से मनुष्य के समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। तथा इस दिन यह मंत्र पढ़कर श्रीहरि से प्रार्थना की जाती हैं। मंत्र- 'सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।' अर्थात् हे प्रभु आपके जगने से पूरी सृष्टि जग जाती है और आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर और अचर सो जाते हैं। आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती है और जागती है, आपकी करुणा से हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें। यही प्रार्थना है।  
 
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