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ekadashi vrat katha: परिवर्तनी एकादशी की पौराणिक व्रत कथा

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WD Feature Desk

, बुधवार, 3 सितम्बर 2025 (11:11 IST)
parivartini ekadashi 2025: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी कहते हैं, इसके अलावा इस दिन को पद्मा, जलझूलनी या डोल ग्यारस के रूप में भी मनाया जाता हैं। इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी व्रत 03 सितंबर 2025, दिन बुधवार को मनाया जा रहा है। मान्यतानुसार इस व्रत का वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। यहां पढ़ें परिवर्तनी/ पद्मा एकादशी की व्रत कथा...ALSO READ: सितंबर माह 2025 में कब कब है एकादशी?
 
कथा- यह कथा भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। परिवर्तनी/ पद्मा एकादशी की पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्य ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ के आयोजन करता था, लेकिन इंद्र से द्वेष के कारण उसने इंद्रलोक तथा सभी देवताओं को जीत लिया। इस कारण सभी देवता एकत्र होकर सोच-विचारकर भगवान के पास गए। 
 
बृहस्पति सहित इंद्रादिक देवता प्रभु के निकट जाकर और नतमस्तक होकर वेद मंत्रों द्वारा भगवान का पूजन और स्तुति करने लगे। अत: मैंने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यंत तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया। 
 
इतनी वार्ता सुनकर राजा युधिष्ठिर बोले कि हे जनार्दन! आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता? वह विस्तार से कहिए...
 
श्रीकृष्ण कहने लगे- मैंने (वामन रूपधारी ब्रह्मचारी) बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा- ये मुझको तीन लोक के समान है और हे राजन यह तुमको अवश्य ही देनी होगी। राजा बलि ने इसे तुच्छ याचना समझकर तीन पग भूमि का संकल्प मुझको दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ाकर यहां तक कि भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, मह:लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया।ALSO READ: Ganesh Chaturthi 2025: गणेश उत्सव के नौवें दिन का नैवेद्य और मंत्र, जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त
 
सूर्य, चंद्रमा आदि सब ग्रह गण, योग, नक्षत्र, इंद्रादिक देवता और शेष आदि सब नागगणों ने विविध प्रकार से वेद सूक्तों से प्रार्थना की। तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़कर कहा कि हे राजन! एक पद से पृथ्वी, दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए। अब तीसरा पग कहां रखूं?
 
तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया। फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूंगा। विरोचन पुत्र बलि से कहने पर भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई।
 
इसी प्रकार दूसरी क्षीरसागर में शेषनाग के पष्ठ पर हुई! हे राजन! इस एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए। इस दिन तांबा, चांदी, चावल और दही का दान करना उचित है। रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए। जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं। जो इस पापनाशक कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उनको वैकुंठ की प्राप्ति होती है तथा हजार अश्वमेध यज्ञ, वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। 
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: Vamana Jayanti 2025: वामन जयंती कब है, जानें मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र और महत्व

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