श्रावण शुक्ल एकादशी को क्यों कहा जाता है पुत्रदा एकादशी, जानिए

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श्रावण का महीना भगवान शिव जी की आराधना का सबसे श्रेष्ठ मास माना गया है और भगवान शिव सुख-समृद्धि, यश, कीर्ति और संतान सहित सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाले देवता माने जाते हैं। शिव जी के ही प्रिय मास में श्रावण शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी पड़ती है। अत: इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। 
 
इस एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु की आराधना की जाती है। पौराणिक एवं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण मास में उनकी कृपा से व्रत करने वाले को पुत्र की प्राप्ति होती है। मान्यता के अनुसार, अगर कोई नि:संतान दंपत्ति पुत्र प्राप्ति की कामना करके श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने के साथ ही विधिपूर्वक भगवान शिव-विष्णु का पूजन करता हैं तो भगवान शिव और विष्णु की कृपा और इस व्रत के संचित पुण्य से व्रतधारी सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। 
 
इस दिन पूजा के बाद श्रावण पुत्रदा एकादशी कथा का पाठ पढ़ना और सुनना चाहिए। तभी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। शिव आराधना का यह माह मुरादें पूरी करने के लिए उत्तम माह माना गया है। और पुत्र की प्राप्ति का वरदान देने वाली पुत्रदा एकादशी भी श्रावण मास में आने के कारण इसका महत्व अधिक बढ़ जाता है और इस व्रत के पुण्य के प्रभाव से तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होती है। इसलिए श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। 
 
अत: संतान सुख की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। यह एकादशी संतान प्राप्ति तथा उसके दीघार्यु जीवन के लिए बहुत महत्व की मानी गई है। इतना ही नहीं, इस व्रत को करने से मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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