सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायनरमेंट (सीएसई) के जलवायु परिवर्तन मामलों के विशेषज्ञ कुशल यादव ने बताया कि विभिन्न देशों को बार-बार चक्रवात और तूफान का सामना करना पड़ रहा है। इनका कारण जलवायु परिवर्तन भी है। तूफानों और चक्रवात के आने की अवधि भी छोटी होती जा रही है।
तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में आया तूफान ‘लैला’ जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का ही नतीजा था। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखे के प्रभाव और बारिश के चक्र में भी फर्क दिखाई दे रहा है। वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि का एक कारण बड़ी संख्या में पेड़ काटना भी है।
पर्यावरण हितैषी संस्थान ‘सीएमएस एन्वायरमेंट’ की उपनिदेशक अलका तोमर ने कहा कि एक पेड़ कटने पर उसकी भरपाई बहुत मुश्किल से होती है। दोबारा रोपे गए पेड़ों पर नई पत्तियां आने में समय लगता है लेकिन एक बार उन्हें जीवन मिल जाने पर वह पहले की तरह आक्सीजन देते हैं।
अलका कहती हैं कि बड़े और करीब 50 से 60 साल पुराने पेड़ों को दोबारा रोपने पर सफलता की दर 75 फीसदी है। उन्होंने कहा, ‘दिल्ली में बीआरटी और विभिन्न थीम उद्यानों के विकास के चलते बड़े स्तर पर पेड़ों की कटाई हुई है। उद्यानों में ‘लैंडस्केपिंग’ का चलन बढ़ रहा है पर इसमें खर्च अधिक है और यह पेड़ों का विकल्प भी नहीं है।’