* सिर्फ बनारस में 33 नालों के जरिए तकरीबन 350 एमएलडी सीवेज तथा कचरा गंगा नदी में प्रवाहित हो रहा है। इसके अलावा मणिकर्णिका व हरिश्चन्द्र घाट पर साल भर में 33 हजार शव जलाए जाते हैं, जिनसे करीब 800 टन राख निकलती है। यही राख गंगा में प्रवाहित कर दी जाती है। इसके अलावा शवों का 300 टन अधजला मांस, 3056 बच्चों व आदमियों के शव के साथ 6000 जानवरों की लाशें गंगा में जाती हैं।
*
आसन्न संकट : जल संकट सिर्फ भारत ही नहीं समूचे विश्व में अपना असर दिखाने लगा है। ग्लोबल वॉर्मिंग से पिघलते ग्लेशियरों से जहां बाढ़ का प्रकोप बना हुआ है वहीं आने वाले सालों में बारहमासी नदियों को मिलने वाले साफ पानी में भी कटौती होने का अंदेशा है।
दुनिया की 80 प्रतिशत आबादी (लगभग 5 अरब लोग) आज भी ताजे पानी के लिए गंगा, ब्रह्मपुत्र, यलो, मीकांग, नील, टाइबर, राइन, डेन्यूब और अमेजन जैसी प्रमुख नदियों पर निर्भर है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इन नदियों पर लगातार पड़ रहे दबाव व नदीतंत्र के अत्यधिक दोहन के परिणामस्वरूप इन नदियों पर गंभीर खतरा मंडराने लगा है। नदी के पर्यावरण के साथ हो रही छेड़छाड़, खेती और मानव उपयोग के लिए खींचे जा रहे पानी और प्रदूषण के कारण ये नदियां अब धीरे-धीरे दम तोड़ने लगी हैं।
हालांकि इस समय विश्व स्तर पर नदियों को बचाने की कई मुहिम चल रही हैं, लेकिन हाल में प्रकाशित एक अनुसंधान रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि दुनिया के सबसे आबादी वाले क्षेत्रों जैसे उत्तरी चीन में यलो नदी, भारत में गंगा, पश्चिम अफ्रीका में नाइजर में बहने वाली नदियां बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन और मानवजनित कारणों के कारण तेजी से पानी खो रही हैं। असंख्य छोटी नदियां तो प्रकृति और मानव की इस मार के आगे कब से ही अपना अस्तित्व खो चुकी हैं।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से होने वाले बदलावों का नदियों पर असर पड़ने से निकट भविष्य में करोड़ो लोगों के लिए भोजन और पीने के पानी का भयावह संकट उत्पन्न हो जाएगा।
नेचर जर्नल के एक अंक में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे विश्व में नदियों पर निर्भर 65 प्रतिशत जैव विविधता अत्यंत खतरे में है। रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्व की 47 सबसे बड़ी नदियों में से 30 जो विश्व के ताजे पानी की लगभग आधी मात्रा प्रवाहित करती हैं, मध्यम खतरे की श्रेणी में हैं।
इसी प्रकार 8 नदियां 'जल सुरक्षा' की दृष्टि से बहुत अधिक खतरे में आंकी गई हैं, जबकि 14 नदियां की 'जैव विविधता' की दृष्टि से बहुत अधिक खतरे में होने के रूप में पहचान की गई हैं। स्कैंडेनेविया, साइबेरिया, उत्तरी कनाडा और अमेजन क्षेत्र और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की नदियों को सबसे कम खतरे में माना गया है।
इस अनुसंधान में न्यूयॉर्क सिटी विश्वविद्यालय, विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय और सात अन्य संस्थानों के कॉलेज से कई वैज्ञानिकों तथा विशेषज्ञ शामिल थे। अनुसंधान दल ने एक विकसित कंप्यूटर आधारित मॉडल का उपयोग करते हुए इन नदियों पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को एक मानचित्र के रूप में बताया है, जिसमें नदियों पर दुष्प्रभाव डालने वाले 23 प्रकार के कारकों को दर्शाया गया है। इसमें ताजे पानी की नदियों पर कृषि उपयोग, खनन, रासायनिक तथा औद्योगिक प्रदूषण जैसे कई कारणों से होने वाले पर्यावरण ह्रास का मापन किया गया है।
अनुसंधान दल ने पाया कि विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में बहने वाली नदियों पर एक जैसे ही दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। चाहे वे नदियां विकसित देशों की हो या विकासशील देशों की।
बारहमासी प्रवाह वाली नदियां मानव जीवन के लिए तो जरूरी है ही, साथ ही प्राकृतिक चक्र को सुचारु बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व 'पानी' का मुख्य स्रोत है पर नदियों में होते लगातार क्षरण के कारण अब धरती की इस अमूल्य संपदा का भी तेजी से क्षय हो रहा है।