असम में बाल विवाह पर एक्शन में हिमंता सरकार,जानें क्या है पूरा मामला और क्यों रहा हंगामा?

विकास सिंह
सोमवार, 6 फ़रवरी 2023 (13:35 IST)
असम में हिमंता बिस्वा सरमा सरकार की बाल विवाह को रोकने के लिए चलाई जा रही मुहिम इन दिनों काफी चर्चा में है। 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों के खिलाफ विशेष अभियान चला रही है। ऐसे लोगों के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम के तहत कार्रवाई की जा रही है। राज्य में अब तक दो हजार से अधिक लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जा चुकी है और उन्हें गिरफ्तार किया जा चुका है। पुलिस की कार्रवाई को लेकर राज्य में जहां विपक्षी दल सवाल उठा रहे है वहीं बड़ी संख्या में महिलाएं सड़क पर उतकर विरोध जता रही है। 

कैसे शुरु हुआ बाल विवाह के खिलाफ एक्शन?-असम में भाजपा की हिमंता बिस्वा सरमा की कैबिनेट ने 23 जनवरी को 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। कैबिनेट ने निर्णय लिया कि 14-18 वर्ष तक की लड़कियों से विवाह करने वालों के खिलाफ बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006 के तहत मामले दर्ज किया जाएंगा।
 
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि अगले 5-6 महीनों में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया जाएगा क्योंकि 14 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध बनाना अपराध है, भले ही वो कानूनी रूप से विवाहित पति ही क्यों न हो। 18 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों पर भी कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें लगभग 3,500 लोगों को गिरफ्तार करना होगा।

एक्शन में असम पुलिस-मुख्यमंत्री के खुले आदेश के बाद असम पुलिस 14 वर्ष से कम आयु की लड़कियों से शादी करने वालों के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत और जिन्होंने 14 से 18 वर्ष तक की लड़कियों से शादी की है उनके खिलाफ बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006 के तहत मामले दर्ज करने शुरु कर दिए।

बाल विवाह के मामलों में अब तक राज्य भर में 4,074 केस दर्ज किए जा चुके है वहीं 2,258 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस की कार्रवाई पर खुद मुख्यमंत्री ने पूरी जानकारी देते हुए कहा कि 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों पर गैर-जमानती धाराओं में और 14 से 16 साल की उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों पर जमानती धाराओं के तहत केस दर्ज किए जाएंगे। वहीं नाबालिगों की शादी में शामिल माता-पिता को फिलहाल नोटिस देकर छोड़ा जा रहा है और गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है।

सरकार क्यों कर रही कार्रवाई?–असम में बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई को सरकार महिलाओं और शिशुओं के स्वास्थ्य से जोड़ रही है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा कहते है कि बाल विवाह के चलते  असम में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर काफी ज्यादा है। मुख्यमंत्री दावा करते है कि राज्य में पिछले कुछ सालों में एक लाख लड़कियों के बाल विवाह हुए हैं, इनमें से ज्यादातर मां भी बनी हैं। वहीं राज्य सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 9 वर्ष की एक लड़की मां बन गई।
 
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार असम में मातृ और शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। वर्ष 2022 में भारत के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार 2018 और 2020 के बीच प्रति एक लाख नवजात शिशुओं पर 195 मौतों के साथ असम में देश में सबसे ज्यादा मातृ मृत्यु दर वाला राज्य है वहीं नवजात शिशुओं की मृत्यु दर के मामले में यह तीसरे नंबर पर है। वहीं राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) की रिपोर्ट के मुताबिक असम में 20 से 24 वर्ष के उम्र की की 31 फीसदी से अधिक ऐसी महिलाएं हैं जिनकी शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो गई थी।  

विपक्ष ने सरकार की मंशा पर क्यों उठाए सवाल?- ऐसे समय जब पूर्वोतर के तीन राज्यों में चुनाव हो रहे है तब असम सरकार की बाल विवाह के खिलाफ एक्शन को लेकर विपक्ष सवाल उठा रही है। विपक्ष ने पूरी कार्रवाई के पीछे सरकार की मंशा पर सवाल उठा दिया है। AIMIM  चीफ असदुद्दीन ओवैसी कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि असम सरकार अगर वास्तव में बाल विवाह की समस्या को समझती है तो उसे साक्षरता के स्तर को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था। 
 
वहीं असम सरकार की कार्रवाई को विपक्ष जानबूझकर मुस्लिमों को टारगेट करने की कार्रवाई बता रहा है। आल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल, हिमंता सरकार को मुसलमान विरोधी बताते हुए कहते है कि पुलिस की बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई में 90 प्रतिशत लड़के-लड़कियां मुसलमान गिरफ्तार होंगे।

कार्रवाई में क्यों टारगेट पर आए मुस्लिम?- AIUDF के अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल जब जानबूझकर मुस्लिमों को टारगेट करने की बात कह रहे है तो इसका कारण भी समझना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि भारत में विवाह की न्यूनतम उम्र भी सबके लिए समान नहीं है। मुस्लिम लड़कियों की वयस्कता की उम्र निर्धारित नहीं है और माहवारी शुरू होने पर लड़की को निकाह योग्य मान लिया जाता है इसलिए 9 वर्ष की उम्र में लड़कियों का निकाह कर दिया जाता है जबकि अन्य धर्मो मे लड़कियों की विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और लड़कों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष है। 
 
वह कहते है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार कह चुका कि 20 वर्ष से पहले लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होती है और 20 वर्ष से पहले गर्भधारण करना जच्चा-बच्चा दोनों के लिए अत्यधिक हानिकारक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार लड़का हो या लड़की,21 वर्ष से पहले दोनों ही मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होते हैं, 21 वर्ष से पहले तो बच्चे ग्रेजुएशन भी नहीं कर पाते हैं और आर्थिक रूप से माता-पिता पर निर्भर होते हैं इसलिए विवाह की न्यूनतम उम्र सबके लिए एक समान "21 वर्ष" करना बेहद आवश्यक है। 'विवाह की न्यूनतम उम्र' किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है बल्कि  "सिविल राइट, ह्यूमन राइट, जेंडर जस्टिस, जेंडर इक्वालिटी और राइट टू हेल्थ" का मामला है इसलिए यह जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और 21 वर्ष होना चाहिए।
 
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने किया समर्थन-असम में भाजपा सरकार की बाल विवाह की कार्रवाई पर जहां विपक्ष सवाल उठा रहा है। वहीं बच्चों के अधिकार के लिए कार्य करने वाले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने असम सरकार की कार्रवाई का समर्थन किया है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो कहते हैं कि अगर देश में कोई कानून है तो उसका सख्ती से लागू करना ही उपाय है। असम पुलिस बाल विवाह के मामलों में गिरफ्तारी कर ठीक कार्रवाई कर रही है। 
 
आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो कहते हैं कि एनसीपीसीआर ने बाल विवाह में शामिल वयस्कों के खिलाफ असम सरकार की पहल की सराहना की है और आयोग अन्य राज्यों से भी इसी तरह के कदम उठाने की उम्मीद करता हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों के मामले में राजनीतिक दलों को संवेदनशील होना चाहिए। बाल विवाह अधिनियम और पॉस्को  अधिनियम केंद्रीय अधिनियम हैं, यदि वे मॉडल नियमों के साथ ठीक हैं तो असम सरकार को अलग नियम बनाने की आवश्यकता नहीं है।
 
विधानसभा चुनाव तक जारी रहेगी मुहिम-असम में भाजपा सरकार ने बाल विवाह मुहिम के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम को जहां विपक्ष एक सियासी मुहिम बता रही है। वहीं मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा ने साफ कहा कि बाल विवाह के खिलाफ शुरू किया गया अभियान विधानसभा चुनाव तक जारी रहेगा। असम में विधानसभा चुनाव 2026 में होने है,यानि साफ है कि अभी यह मुद्दा थमेगा नहीं और आने वाले दिनों में इस पर सियासत और गर्माएगी। 
 

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