नई दिल्ली। पंजाब के बुजुर्ग किसान घर से भले ही मीलों दूर हैं लेकिन नए कृषि कानूनों के खिलाफ जारी लड़ाई में उनके इरादे बुलंद हैं। 71 वर्षीय किसान गुरदेव सिंह ने कहा कि गांव से इस आंदोलन के लिए निकलने के दौरान उनके बेटे के शब्द आज भी उनके कानों में गूंजते रहते हैं कि 'हमारी इस लड़ाई में जीत के बाद ही घर आना।
उन्होंने कहा कि ये शब्द ही उन्हें आंदोलन के लिए डटे रहने की मजबूती देते हैं। कुछ दिन पहले ही गुरदेव के घुटनों का ऑपरेशन भी हुआ है और वे अभी इससे उबर ही रहे हैं। जालंधर जिले के नूरपुर गांव के रहने वाले गुरदेव की तरह तमाम ऐसे बुजुर्ग किसान हैं, जो केंद्र के नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पिछले 13 दिनों से सिंघू बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं।
अधिकतर प्रदर्शनकारी किसान हरियाणा और पंजाब से हैं। वे सभी घर से सैकड़ों मील दूर हैं और लगातार ठंड बढ़ती जा रही है लेकिन वे मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। गुरदेव सिंह ने कहा कि जहां तक मैं याद कर सकता हूं, मेरे परिवार की सभी पीढ़ियां अपने जीवन-यापन के लिए कृषि पर ही निर्भर रहीं। मेरे बेटे भी किसान हैं। मैं अपने पूर्वजों के सम्मान और मेरे बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ने आया हूं।
गुरदेव की तरह ही उनके गांव के 2 अन्य बुजुर्ग किसान सज्जन सिंह और प्रीतम सिंह भले ही शारीरिक रूप से बहुत स्वस्थ नहीं हों लेकिन अपनी लड़ाई को लेकर उनमें जोश भरा हुआ है। सज्जन सिंह ने बताया कि घर में पोती हुई है लेकिन वे तब तक घर नहीं जाएंगे, जब तक कि उनकी मांगों को सरकार मान नहीं लेती।
उन्होंने कहा कि मैं उसका (पोती) चेहरा देखना चाहता हूं लेकिन जब तक सरकार हमारी मांगें मान नहीं लेतीं, तब तक मैं घर वापस नहीं जाऊंगा। यह लड़ाई मेरी पोती के भविष्य के लिए है। उसे पता होना चाहिए कि उसके दादा किसानों के लिए लड़े।
किसानों ने बताया कि पूर्व सेना कर्मी प्रीतम सिंह की तबीयत पिछले 2 दिन से बिगड़ गई है और बॉर्डर पर लगाए गए शिविर के डॉक्टर उनके स्वास्थ्य की निगरानी कर रहे हैं। 65 वर्षीय जोगिंदर सिंह ने कहा कि वर्षों तक हमारे साथी ने सीमा पर देश के लिए लड़ाई लड़ी। अब वह हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे हैं। सिंह ने कहा कि खाली हाथ वापस लौटने से बेहतर होगा कि हम यहीं मर जाएं। (भाषा)