नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर 3 कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने रविवार को कड़ा रुख अख्तियार करते हुए केंद्र सरकार के इन कानूनों के प्रावधानों में संशोधन के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया और स्पष्ट किया इन्हें रद्द किए जाने से कम पर कोई बात नहीं बनेगी।
आंदोलन की अगुआई कर रहे किसान संगठनों में से एक अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में इन कानूनों को किसानों की मौत का परवाना करार दिया और कहा कि कुछ कॉस्मेटिकसंशोधनों से किसान विरोधी इन कानूनों को किसान हितैषी नहीं बनाया जा सकता है।
1980 से 2009 तक लगातार 8 बार लोकसभा के सदस्य रह चुके मोल्लाह ने कहा कि जब सरकार 70 साल पुराने 44 श्रम कानूनों को एक झटके में समाप्त कर सकती है तो इन कानूनों को समाप्त क्यों नहीं कर सकती।
सिंघू और टिकरी बॉर्डर समेत राष्ट्रीय राजधानी के विभिन्न बॉर्डर पर पिछले 17 दिनों से हजारों प्रदर्शनकारी जमा हैं और इस बीच किसान संगठनों ने जयपुर-दिल्ली राजमार्ग बंद करने की घोषणा की है। सरकार के साथ इन किसानों की पांच दौर की वार्ता हो चुकी है। प्रदर्शन कर रहे किसानों के संगठन एक बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ भी बैठक कर चुके हैं लेकिन नतीजा सिफर रहा है।
किसानों ने घोषणा की है कि आंदोलन में शामिल संगठनों के प्रतिनिधि 14 दिसंबर को देशव्यापी प्रदर्शन के दौरान भूख हड़ताल पर बैठेंगे। मोल्लाह ने कहा कि इन कानूनों को रद्द करना ही हमारी एकमात्र मांग है। हमने शुरू से कहा है कि ये कानून ए टू जेड किसान विरोधी हैं। दो-तीन संशोधनों से यह किसान हितैषी कानून नहीं बन जाएगा। कॉस्मेटिक बदलाव करने से किसानों का हित नहीं होने वाला है।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद यह पहला मौका है जब छोटे-बड़े लगभग 500 किसान संगठन एक साथ आए हैं और एक सुर में बात कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार अडाणी और अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों के निर्देश पर काम कर रही है और इन कानूनों के सारे फायदे किसानों को नहीं, उन्हें मिलेंगे।
उन्होंने कहा कि उन लोगों ने हजारों एकड़ जमीनें खरीद ली हैं। गोदाम बनाने शुरू कर दिए हैं। यही वजह है कि सरकार इन कानूनों को रद्द करना नहीं चाहती। 70 सालों से चल रहे 44 श्रम कानूनों को एक घंटे में समाप्त कर दिया गया। सारे मजदूरों का हक छीन लिया और सुविधाएं मालिकों को मुहैया करा दी गईं। तो कृषि कानूनों को समाप्त करने में क्या परेशानी है?
सरकार द्वारा वार्ता के लिए आमंत्रित किए जाने के बारे में पूछे जाने पर मोल्लाह ने आरोप लगाया कि वह वार्ता को लंबा खींच रही है तथा किसानों की बात सुनने की बजाय अपनी बातें थोपना चाह रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार हमारी बात नहीं सुन रही है। हमें टीबी की बीमारी है और सरकार हैजा की दवा पिला रही है। ऐसे में आंदोलन जारी रखना, हमारी मजबूरी है। हम किसान लोग हैं। खेती-किसानी हमारी संस्कृति है और जीवन पद्धति भी है। हम इसे बरकरार रखना चाहते हैं लेकिन सरकार जबरदस्ती हमें ट्रेडर बनाना चाहती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर सहित अन्य मंत्रियों द्वारा इन कानूनों को बार-बार किसानों के हित में बताये जाने के सवाल पर पूर्व सांसद मोल्लाह ने कहा कि यह गाना हम किसान बहुत दिनों से सुन रहे हैं। सुन-सुन कर हम थक गए हैं। ये गाना हमारी मौत का परवाना है। ये जिंदगी देने वाला नहीं है। उन्होंने दोहराया कि इन कानूनों को रद्द करना ही किसान के हित में होगा। संशोधन में हमें कोई विश्वास नहीं है।
उन्होंने कहा कि किसान संगठन पिछले छह महीनों से आंदोलन कर रहे थे लेकिन सरकार ने उनकी एक न सुनी और अब वह संशोधन का प्रस्ताव दे रही है। उन्होंने कहा कि 6 महीने तक हमने यह लड़ाई लड़ी। लेकिन सरकार ने हमारी बात सुनी नहीं। लोकतंत्र में जनता की आवाज सुनने के बाद कार्रवाई की जाती है। मगर ये सरकार तो लोकतांत्रिक है ही नहीं। चुनी हुई लेकिन फासीवादी सरकार है।
सरकार पर फैसले थोपने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से किसानों के आंदोलन को रोकने और बदनाम करने की भी भरपूर कोशिश हुई लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो सके।
उन्होंने कहा कि हमने दिल्ली चलो का आह्वान किया तो सरकार ने इसे भी रोकने की भरपूर कोशिश की। सर्दियों में किसानों पर पानी की बौछारें की गई। लाठियां चलाई गईं और आंसू गैस के गोले छोड़े गए। बदनाम करने की भी कोशश की गई। खालिस्तानी, उग्रवादी, आतंकवादी और नक्सली न जाने क्या-क्या किसानों को बताया गया।
उन्होंने कहा कि इतना कुछ करने के बावजूद किसानों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन जारी रखा। उन्होंने दावा किया कि आंदोलन के दौरान अब तक 15 लोगों की मौत भी हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि इस सरकार में मानवीयता है ही नहीं। जनता का दु:ख-दर्द समझने के लिए इसके पास कोई समय नहीं है। इसलिए आंदोलन जारी रखने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। ये आंदोलन शांतिपूर्ण है और शांतिपूर्ण रहेगा। कोई भी अहिंसा की बात करेगा तो उसे आंदोलन से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। (भाषा)