30 दिसंबर की वार्ता से पहले किसानों ने सरकार को लिखा पत्र, तोमर, गोयल ने अमित शाह से की मुलाकात

Webdunia
मंगलवार, 29 दिसंबर 2020 (20:48 IST)
नई दिल्ली। प्रदर्शनकारी किसान संगठनों ने बुधवार को दोनों पक्षों के बीच प्रस्तावित वार्ता के संबंध में मंगलवार को केंद्र सरकार को पत्र लिखा और कहा कि चर्चा केवल 3 कानूनों को निरस्त करने के तौर-तरीकों एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की वैध गारंटी देने पर ही होगी। सरकार ने किसान संगठनों को बुधवार को छठे दौर की वार्ता के लिए आमंत्रित किया है।
 
चालीस किसान यूनियन का प्रतिनिधित्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने मंगलवार को लिखे पत्र में कहा कि चर्चा केवल 3 कृषि कानूनों को निरस्त करने के तौर-तरीकों एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देने पर ही होगी।
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किसानों ने मांग पूरी न होने पर आगामी दिनों में आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी है। सरकार और किसान संगठनों के बीच अब तक हुई पांच दौर की बातचीत बेनतीजा रही है। केंद्र ने गतिरोध को समाप्त करने के लिए 30 दिसंबर को होने वाली अगले दौर की वार्ता के लिए 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया है।
 
इसमें आगे कहा गया कि बैठक के एजेंडे में एनसीआर एवं इससे सटे इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के संबंध में जारी अध्यादेश में संशोधन को शामिल किया जाना चाहिए ताकि किसानों को दंडात्मक प्रावधानों से बाहर रखा जा सके। पत्र के जरिए मोर्चा ने वार्ता के लिए सरकार के आमंत्रण को औपचारिक रूप से स्वीकार किया है।
तोमर-गोयल-शाह की मुलाकात : केंद्र और किसानों के बीच अगले दौर की वार्ता से एक दिन पहले केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल ने वरिष्ठ भाजपा नेता एवं गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की।
 
सूत्रों ने बताया कि मंत्रियों ने इस बैठक में इस बारे में चर्चा की कि बुधवार को किसानों के साथ होने वाली वार्ता में सरकार का क्या रुख रहेगा। 
 
अब तक हुई पांच दौर की बातचीत में पिछले दौर की वार्ता 5 दिसंबर को हुई थी। छठे दौर की वार्ता नौ दिसंबर को होनी थी, लेकिन इससे पहले गृह मंत्री शाह और किसान संगठनों के कुछ नेताओं के बीच अनौपचारिक बैठक में कोई सफलता न मिलने पर इसे रद्द कर दिया गया था।
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सरकार ने तीनों नए कृषि कानूनों को बड़े कृषि सुधार करार दिया है और कहा है कि इनसे किसानों की आय बढ़ेगी, लेकिन प्रदर्शनकारी किसान संगठनों को आशंका है कि इनकी वजह से न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी प्रणाली खत्म हो जाएगी तथा वे बड़े उद्योग घरानों की दया पर निर्भर हो जाएंगे।  (भाषा)

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