सदाबहार बटिक कला

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- डॉ. किरण रमन

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बटिक की शुरुआत कहाँ से हुई है, यह कहना बहुत मुश्किल है। शायद यह भारतीय मुसाफिरों के साथ बारहवीं शताब्दी में जावा, इंडोनेशिया जैसे स्थानों तक पहुँच गई और एक निखरे रूप में हमारे सामने आई।

अजंता की विश्वप्रसिद्ध चित्रकला पर यदि गौर करें तो हम पाएँगे कि उस जमाने की महिलाओं के सिर के पहनावे एवं वस्त्रों पर बटिक प्रिंट होते थे और यही चीज जावा एवं बाली के मंदिरों के अवशेषों में भी देखने को मिलती है।

बटिक के साथ जुड़े "टिक" शब्द का अर्थ जावा की भाषा में डॉट होता है। सिल्क, रियोन या सफेद सूती कपड़ों पर बटिक के प्रिंट बनाए जाते हैं।

जावानीस बटिक के दो वर्ग हैं, जिसमें पहले में ज्यामितीय मोटिफ्स बने होते हैं और दूसरा वह वर्ग है, जिसमें डिजाइन किसी विषय पर बँधे नहीं होते, वे अपनी मर्जी से फैलते हैं। यही बटिक की सुंदरता है।

बटिक कला की सबसे बड़ी विशेषता है समय के साथ-साथ बदलने की क्षमता, जिसने सदियों पुरानी इस कला को आज तक जीवित रखा है। पहले इसे बनाने में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता था किंतु केमिकल डाइस के आने से कलाकारों ने आज प्राकृतिक रंगों का प्रयोग एकदम कम कर दिया है।

पारंपरिक डिजाइनों का स्थान अब आधुनिक सिग्नेचर पीसेस ने ले लिया है। अब बटिक का प्रयोग छः इंच के स्कार्फ से लेकर छः गज की साड़ी पर भी किया जा सकता है। बटिक प्रिंट की इतनी सारी वैराइटीज बाजार में मिलती हैं कि यदि हटकर दिखना हो तो बटिक से सुंदर कुछ नहीं। कुछ इस तरह से आप बटिक को अपना सकते हैं।

* बटिक रैप अराउंड स्कर्ट के साथ कोई भी प्लेन टी-शर्ट या टॉप आपको एक अलग ही फैशनेबल टच देगा।

* बटिक प्रिंट के पर्सेज, ऑफिस बैग भी आजकल फैशन में हैं।

* फैशन स्टोर पर आपको बटिक का बड़ा स्कार्फ अवश्य मिल जाएगा। यह आपके वेस्टर्न आउटफिट को भी एक एथेनिक टच देगा।

* बटिक प्रिंट के टॉप्स को जींस पर पहनना आज हरेक की पसंद है।

* बटिक की देखभाल के लिए शुरुआत में दो-तीन बार धोते समय यह ख्याल रखें कि कपड़े को नमक वाले पानी में कुछ देर भिगोकर रखें, फिर धोएँ। सीधे धूप में भी न सुखाएँ। इससे कपड़े के रंग फीके नहीं पड़ेंगे।

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