प्यार का दूसरा नाम है पापा

फादर्स डे पर विशेष

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आमतौर पर हम सभी के बचपन में अपनी अनुशासनप्रियता व सख्ती के चलते पिता हमें क्रूर नजर आते हैं। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है और हम जीवन की कठिन डगर पर चलने की तैयारी करने लगते हैं, हमें अनुभव होता है कि पिता की वो डाँट और सख्ती हमारे भले के लिए ही थी। उनकी हर एक सिखावन जब हमें अपनी मंजिल की ओर बढ़ने में मदद करती है, तब हमें मालूम पड़ता है कि पिता हमारे लिए कितने खास थे और हैं।

शोध के मुताबिक आज भी दुनियाभर में बच्चे सर्वप्रथम आदर्श के रूप में अपने पिता को ही देखते हैं। मां उनकी पहली पाठशाला, पहला विश्वविद्यालय है तो पिता पहला आदर्श। वे अपने पिता से ही सीखते हैं और उनके जैसा ही बनना चाहते हैं। पिताश्री दिवस के अवसर पर हमने विविध आयुवर्ग के लोगों से यह जानने का प्रयास किया कि कैसे हैं उनके पिता। यकीनन सभी का जवाब एक ही था। मेरे पापा ... सबसे अच्छे।

याद आता है दशहरा
61 वर्षीय प्रकाश जैन बताते हैं कि उन्हें आज भी दशहरे पर अपने पिता की याद सबसे ज्यादा आती है। उन्हें याद आता है कि हर वर्ष किस तरह वे अपने कंधे पर बिठाकर रावण दहन दिखाने के लिए ले जाया करते थे। डबडबाई आंखें लिए वे कहते हैं कि कितने सुनहरे दिन थे, जब पिता उंगली पकड़कर मेला घुमाया करते थे और हर जिद बड़ी आसानी से पूरी कर दिया करते थे। श्री जैन सगर्व कहते हैं कि पिता ने अपने हिस्से की सारी जिम्मेदारियां पूरी कीं। उनकी सिखावन आज भी जीवन के हर कदम पर मार्गदर्शन प्रदान करती है।

सबको मिलें ऐसे पिता
संजय श्रीवास कहते हैं कि संसार में सभी को उनके जैसे ही पिता मिलें। पिता सख्त व अनुशासनप्रिय जरूर थे लेकिन ऐसा कभी भी महसूस नहीं हुआ कि वे बेजा सख्ती कर रहे हों। उन्होंने जो कुछ पाया मेहनत करके पाया और अपने बच्चों को भी हमेशा ईमानदार बने रहने की सीख ही दी। उन्हें याद आता है कि एक बार गलत आदतों के कारण पिता ने घर से निकाल दिया था।

इस एक झटके ने उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बना दिया और जीवन की कड़वी सच्चाईयों से भी रूबरू करवा दिया। बाद में संजय को अहसास हुआ कि पिता ने कड़ा कदम क्यों कर उठाया। आज वे अगर कुछ कर पाए तो सिर्फ अपने पिता की वजह से।

मैं बनूंगी पापा की तरह
बीटेक की छात्रा नेहा प्रजापति को अपने पिता में स्वाभिमान सबसे ज्यादा भाता है। नेहा कहती हैं कि जीवन के कितने ही मुश्किल क्षण आए लेकिन पिता ने स्वाभिमान कभी नहीं गंवाया। पिता सख्त व अनुशासनप्रिय जरूर हैं लेकिन अगर खुद से गलती हो जाए तो जल्द ही माफी भी मांग लेते हैं। नेहा घटना का जिक्र करती हैं कि एक बार घर से बाहर पैसे गुम हो जाने के बावजूद महज पिता की सीख के चलते उन्होंने किसी से किराए के पैसों के लिए मदद नहीं मांगी और कई किमी का सफर पैदल तय कर घर पहुंचीं।

जब पिता को घटना मालूम पड़ी तो उन्होंने गले से लगा लिया। वे गर्व के साथ कहती हैं कि मैं अपने पिता की तरह ही बनना चाहूंगी।

बाहर से सख्त अंदर से कोमल
14 वर्षीय श्वेता वैश्य बताती हैं कि पापा बाहर से जितने सख्त दिखाई पड़ते हैं, अंदर से उतने ही कोमल हैं। वज्रादपि कठोर, बिल्कुल नारियल की तरह। आम तौर पर अपने दिल की बात कहने के लिए बच्चे मम्मी के पास जाते हैं लेकिन मैं बिना किसी डर के पापा को हर बात बताती हैं। पापा भी हर बात को गंभीरता से सुनते हैं और हमेशा समाधान भी सुझाते हैं।

श्वेता को याद है कि किस तरह बचपन में बीमार होने पर पापा रात भर सिरहाने बैठे रहते थे। जब तक मैं पूरी तरह ठीक नहीं हो जाती थी, उनके चेहरे पर मुस्कान नहीं लौटती थी। श्वेता कहती हैं कि मेरे लिए पापा ही पूरा संसार हैं। मैं चाहती हूं कि हर जन्म में यहीं मुझे पिता के रूप में मिलें।

पिता के बारे में एक और तथ्य
यह सामाजिक निष्कर्ष है। पिता बेटी को अधिक प्यार करते हैं और मां बेटे को। कारण साफ है। पिता को पता है कि बेटी पराया धन है। वह कुछ साल ही उनके पास रहेगी, जबकि बेटा सदा। बेटी की बिदाई की सोच में ही पिता की आंखें सावन-भादौ हो जाती है। बस एक ही बात निकलती है, बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिलें।

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