शिरीन भावसार
लौट आओ पापा
बहुत से उत्तरित अनुत्तरित
प्रश्नों को पुनः दोहराने का
मन करता है.
वक़्त पर बातें छोड़ देने का
आपका धैर्य थामे
समय के दिए गए उत्तरों के साथ
छुटे हुए मोड़ पर
कई दफ़े मन करता है लौट जाने का
आप के पास आने का
बाँट तो अब भी लेती हूँ मैं आपसे
अपना गुस्सा अपनी मुस्कुराहटें
असंजस की कई परिस्थितियाँ
मगर बिन आपके
जीवन में सबकुछ अधूरा लगता है.
उम्मीद, स्नेह और ढांढस बंधाती
आँखे साथ तो अब भी है मेरे मगर
सीने से लग जाने की उत्कंठा
वक़्त वक़्त पर आँखों में नमी दे जाती है.
यादें आपकी सहलाती तो हैं
मगर
रुलाती भी बहुत हैं.
(C) शिरीन भावसार