मैं हम चार भाई-बहनों में सबसे छोटी हूं । पापा का स्नेह और साथ ज्यादा मिला। बात 2003 की जब मैं अपने पापा के साथ द्वारका गई थी सुबह मंगला दर्शन के बाद द्वारकाधीश मंदिर के के किनारे हम लोग स्नान के लिए गए। मैं और मेरी मम्मी पानी में पैर डाल कर बैठ गए और पापा ऊपर वाली सीढ़ियों पर थे ।
अचानक ही तेज समुद्र की लहर आई और मम्मी और मुझे ले गई बहाव इतना तेज था कि मेरा और मम्मी का हाथ छूट गया। मुझे लगा कि अब जीवन इसके आगे नहीं है, क्योंकि पानी मेरी आंख नाक और गले में जा चुका था साथ ही इतनी पानी था कि कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। दूसरे पल पल मैंने देखा कि किनारे पर मेरे पापा हाथ लिए जैसे मुझे थामने के लिए खड़े हो । मम्मी पहले ही वहां बैठी हुई थी। दोनों ने मुझे सांत्वना दी और एक बार फिर स्नान करवाकर कर ऊपर मंदिर में ले गए।
संयोगवश एकादशी थी। पापा ने मेरा वहां तुला दान किया। यह मेरे जीवन का अनुभव था जिसने मुझे एहसास दिलाया की पिता का विश्वास ही था जो मुझे मौत के मुंह से भी वापस ले आए। पापा का पूरा जीवन ही एक पाठशाला है जिसने हमें रिश्तों की गहराई सामाजिक व्यवस्था, धार्मिक संस्कार पारिवारिक रीति रिवाज सिखाएं।
पापा के होने से एक बेफिक्री सी थी कि कुछ भी हो पापा को बोल दो और टेंशन फ्री हो जाओ। एक मजबूत साया एक मजबूत हाथ सर पर था। पापा ने जीवन अनेक उतार-चढ़ाव में मजबूती से संघर्ष करना सिखाया। लेकिन मैं मजबूत हाथों को पकड़ नहीं पाई । 10 दिन वे बीमार रहे और 12 मई 2021 को सदा के लिए छोड़ कर चले गए।
मेरे पापा को नर्मदा नदी से असीम श्रद्धा और लगाव था मैं बचपन से देखती आई कि उन्होंने महीने की हर अमावस्या पर नर्मदा नदी पर स्नान करने जाते थे। हम भाई-बहन छोटे थे तभी से वह सुबह जल्दी 4:00 बजे खेड़ी घाट जाकर स्नान कर आ जाते थे उन्होंने उन्होंने अपने जीवन में ना जाने कितनी बार नर्मदा नदी में स्नान किया। और साथ ही ऊंकारेश्वर में परिक्रमा की मैंने खुद उनके साथ तीन बार ओंकारेश्वर में नर्मदा परिक्रमा की इतनी उनकी श्रद्धा और विश्वास था कि हम बच्चों को भी उन्होंने इस विश्वास और आस्था के साथ जोड़ा में भी जब कभी इंदौर जाती तो नर्मदा स्नान पर नर्मदा के घाट जरूर हम जाते।
यही लगाव और आस्था मेरे बच्चों में भी है । मेरा गांव कंपिल अहिल्याबाई होल्कर की राजधानी जोकि नर्मदा नदी से ज्यादा दूर नहीं है ।यही वजह है कि नर्मदा नदी से जुड़ाव और आस्था बंधी हुई है।इसका पूरा श्रेय में अपने पापा को देना चाहती हूं। लॉकडाउन के कारण जिलों की सीमा में प्रवेश प्रतिबंध था अतः उनके सारे पाठ पूजा के कार्यक्रम भी खेड़ी घाट पर ही हुए। पापा आपने मौत से हाथ छुड़वा कर मेरा हाथ थामा पर मैं क्यों न थाम सकी....