2019 दिसंबर में चीन के वुहान प्रांत से कोरोना वायरस निकलकर फरवरी तक संपूर्ण दुनिया में फैल गया। चूंकि इस वायरस की शुरुआत 2019 में हुई थी इसीलिए इसे कोविड 19 कहा जाने लगा, परंतु इसने तो वर्ष 2020 को तबाह करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी। ज्योतिषियों का दावा है कि यह ग्रह नक्षत्रों के परिवर्तन के कारण यह वायरस महामारी के रूप में उभरकर लाखों लोगों को निगल गया है। आओ जानते हैं कि कौनसे ग्रहों को इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।
1. शनि ग्रह है जिम्मेदार : साल 2019 में मकर और कुंभ राशि का स्वामी शनि ज्यादातर समय पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में स्थित रहा और 27 दिसंबर 2019 को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में प्रवेश कर गया। इस पूरे साल शनि धनु राशि में रहा। मतलब बृहस्पति की राशि में रहा। फिर साल 2020 में शनि 24 जनवरी को धनु से निकलकर मकर में पहुंचा। इसी वर्ष 11 मई 2020 से 29 सितम्बर 2020 तक शनि मकर राशि में वक्री अवस्था में गोचर हुआ। इसी वर्ष शनि 27 दिसम्बर 2020 को अस्त भी हो जाएंगे। शनि एक राशि में ढाई वर्ष रहते हैं। अधिकतर ज्योतिष विद्वान शनि को ही इस महामारी को फैलाने का जिन्मेदार मानते हैं क्योंकि शनि के साथ बीच बीच में गुरु और राहु की युति भी बनी थी।
कर्म का स्वामी शनि वर्ष 2019 में धनु राशि रहा। इस दौरान 30 अप्रैल को शनि वक्री होकर 18 सितंबर को धनु राशि में पुनः मार्गी हो गया। 2020 में धनु राशि से अपनी स्वराशि मकर में 24 जनवरी को प्रवेश किया। इसी वर्ष 11 मई 2020 से 29 सितम्बर 2020 तक शनि ने मकर राशि में वक्री अवस्था में गोचर किया। अब इसी वर्ष शनि 27 दिसम्बर 2020 को अस्त भी हो जाएंगे, जिससे शनि के प्रभाव कुछ कम हो जाएंगे हैं।
जानकारों की माने तो जिस वर्ष में वर्ष का अधिपति अर्थात राजा शनि होता है वह वर्ष महामारियों को धरती पर लाता है। कुछ लोगों का दावा है कि आयुर्वेद, वशिष्ठ संहित और वृहत संहिता अनुसार जो बीमारी पूर्वा भाद्रपद के नक्षत्र में फैलती है वह अपने चरम पर जाकर लाखों लोगों के काल का कारण बनती हैं क्योंकि इस नक्षत्र में फैले रोग में दवा का असर नहीं होता है।
इस बीच गुरु-मंगल का षडाष्टक योग, शनि-मंगल का समसप्तक योग और राहु-मंगल की युति से अंगारक योग ने भी दुनिया को तबाह करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी।
2. ग्रहण हैं जिम्मेदार : 2019 का पहला सूर्य ग्रहण 6 जनवरी को और दूसरा 2 जुलाई को था। वर्ष 2019 का अंतिम और एक मात्र सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई दिया। इस सूर्य ग्रहण का सूतक काल 25 दिसंबर 2019 को शाम 05:33 से प्रारंभ होकर 26 दिसंबर 2019 को सुबह 10:57 बजे तक रहा। अब वर्ष 2020 का पहला सूर्य ग्रहण 21 जून हो हुआ। इसके बाद साल 2020 का अंतिम सूर्य ग्रहण 14 और 15 दिसंबर को लगा।
एक माह में सूर्य ग्रहण के साथ ही तीसरा चंद्र ग्रहण शास्त्रों के अनुसार शुभ नहीं माना गया है। पहला चंद्र ग्रहण 10 जनवरी को, दूसरा चंद्र ग्रहण 5 जून को और सूर्य ग्रहण 21 जून को जबकि तीसरा चंद्र ग्रहण 5 जुलाई लगा। असके बाद वर्ष का अंतिम और चौथा चंद्र ग्रहण 30 नवंबर 2020 सोमवार को लगा और इसके बाद 14 दिसंबर को अंतिम सूर्य ग्रहण हुआ। इतने सारे ग्रहण ने भी महामारी फैलाने में अपना योगदान दिया। सूर्य ग्रहण और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र से प्रारंभ हुआ यह कोराना वायरस दावे के अनुसार अगले सूर्य ग्रहण तक कम होकर शनि के मकर राशि से निकल जाते तक समाप्त होने की राह पर चलेगा।
बृहत संहिता में वर्णन आया है कि 'शनिश्चर भूमिप्तो स्कृद रोगे प्रीपिडिते जना' अर्थात जिस वर्ष के राजा शनि होते है उस वर्ष में महामारी फैलती है। विशिष्ट संहिता अनुसार पूर्वा भाद्र नक्षत्र में जब कोई महामारी फैलती है तो उसका इलाज मुश्किल हो जाता है। विशिष्ट संहिता के अनुसार इस महामारी का प्रभाव तीन से सात महीने तक रहता है। जिस दिन चीन में यह महामारी फैली अर्थात 26 दिसंबर 2019 को पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र ही था और सूर्य ग्रहण भी। दावा किया गया है कि पूर्व के एक देश में ग्रहण के लगने के बाद फैलेगी एक महामारी।
3. संवत्सर : वर्तमान में विक्रम संवत 2076-77 से प्रमादी नाम का संवत्सर प्रारंभ हुआ है। इसके पहले परिधावी नाम का संवत्सर चल रहा था। प्रमादी से जनता में आलस्य व प्रमाद की वृद्धि होगी। कहते हैं जब जब परिधावी संवत्सर आता है तब तब जनता में त्राही त्राही मच जाती है, युद्ध होते हैं और महामारी फैलती है।
भूपावहो महारोगो मध्यस्यार्धवृष्ट य:।
दु:खिनो जंत्व: सर्वे वत्सरे परिधाविनी।
अर्थात परिधावी नामक सम्वत्सर में राजाओं में परस्पर युद्ध होगा महामारी फैलेगी। बारिश असामान्य होगी और सभी प्राणी महामारी को लेकर दुखी होंगे।
4.शनि, राहु और केतु : इस वर्ष शनि, राहु और केतु ये तीनों ग्रह अचानक आपदा, युद्ध, संघर्ष, आंदोलन, आर्थिक तेजी-मंदी, गरीबी-अमीरी तथा सृष्टि में अप्रत्याशित परिणामों के जनक माने जाते हैं। न्यायधीश शनि जब भी अपनी स्वराशि या सूर्य के उत्तराषाढा नक्षत्र में आते हैं, तो हाहाकार मचा देते हैं। पहले भी शनिदेव का अपनी स्वराशि मकर में आना अनेक महामारी का कारक रहा है। ग्रहों का मायाजाल है सब इस समय गोचर में शुक्र उत्तराषाढ़ा यानि सूर्य के नक्षत्र के अधीन मकर राशि में विचरण कर रहे थे। शुक्र में जब-जब सूर्य के नक्षत्र में आते हैं, तो नए-नवीन खतरनाक संक्रमण पैदा करते हैं। धनु राशि में गुरु केतु की युति चांडाल योग बनाया, जिसने संसार को धर्म की तरफ उन्मुख किया। गुरु-केतु योग महाविनाश का कारण बनाने में सहायक होते हैं। इस समय अच्छे-अच्छे, धनाढ्य, धनपतियों की सम्पदा भी सब स्वाहा हो जाती है। राहु का मिथुन राशि में गोचर, आद्रा में वक्री होकर विचरण करना भी घात सिद्ध हुआ।
सन 2019 नवम्बर में शनि मकर राशि के उत्तराषाढा नक्षत्र में प्रवेश करते ही दुनिया धधक उठी। उत्तराषाढा नक्षत्र के अधिपति भगवान सूर्य हैं। जब तक शनि इस नक्षत्र में रहेंगे, तब तक प्रकार से दुनिया त्रस्त और तबाह हो जाएगी। अभी जनवरी 2021 तक शनि, सूर्य के नक्षत्र रहेंगे। 22 मार्च 2020 को शनि के साथ मंगल ने भी आकर भारत में तबाही की शुरुआत की। मंगल भूमिपति अर्थात पृथ्वी के स्वामी है। इन दोनों का गठबंधन और भी नए गुल खिला गया। मकर मंगल की उच्च राशि भी है। शनि-मंगल की युति यह बुद्धिहीन योग भी कहलाता है। जिसके चलते अनेक अग्निकांड, विस्फोटों, भूकंप आदि होते रहते हैं।
सन 2019 के अंत के दौरान गुरु-केतु की युति से चांडाल योग निर्मित हुआ। गुरु-केतु की युति से निर्मित चांडाल योग राजनीति में भूचाल लाता रहता है। केंद्र और राज्य की सकारों को अस्थिर करने का काम भी करता है। वेद एवं ज्योतिष कालगणना अनुसार कलयुग में जब सूर्य-शनि एक साथ शनि की राशि मकर में होंगे। राहु स्वयं के नक्षत्र आद्रा में परिभ्रमण करेंगे और विकार या विकारी नाम संवत्सर होगा तो महामारी फैलती है। इसीलिए इसे विकारी नाम संवत्सर कहा जाता है। जल वृष्टि या वर्षा अधिक होती है। मौसम में ठंडक रहती है। इस समय प्रकृति के स्वभाव को समझना मुश्किल होता है।