बटरफ्लाई वैली करेगा दुर्लभ तितलियों का संरक्षण

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असम के गोलाघाट जिले में स्थित अनूठी बटरफ्लाई वैली में तितलियों को, खास कर उनकी दुर्लभ प्रजातियों को अनुकूल आवास मुहैया कराने के लिए ‘नॉर्थ ईस्ट इन्स्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ वहां ऐसा माहौल तैयार कर रहा है जहां यह तितलियां प्रजनन कर सकें।

तितलियों की यह अनूठी घाटी नुमलीगढ़ रिफाइनरी शहर में है। पहाड़ियों से घिरी यह घाटी करीब 30 एकड़ क्षेत्र में फैली है और यहां बहुत हरियाली है। देवपहर पहाड़ियों और कल्याणी नदी के समीप स्थित यह घाटी विश्व प्रसिद्ध काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान से ज्यादा दूर नहीं है।

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‘नॉर्थ ईस्ट इन्स्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी’(एनईआईएसटी) की दीपांजलि सैकिया ने बताया कि पारिस्थितिकी की दृष्टि से समृद्ध इस पूर्वोत्तर क्षेत्र में तितलियों की दर्जनों दुर्लभ प्रजातियां पाई जाती हैं।

साथ ही यहां विविधता लिए हुए ऐसी हरियाली है जहां तितलियां आसानी से प्रजनन करती हैं।

उन्होंने कहा ‘हमारा प्रयास अधिक संख्या में ऐसे पौधों की पहचान करना है जो तितलियों को आकर्षित कर सकें, जो उनके प्रजनन के लिए अनुकूल माहौल बना सकें ताकि घाटी विश्व में कीटों के लिए एक विशेष स्थान बन जाए।’

घाटी में पांच विशाल तितली कुल की कम से कम 75 प्रजातियां और ऐसे करीब 60,000 पौधे हैं, जो केवल पूर्वोत्तर में ही पाए जाते हैं।

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नुमलीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड के एक अधिकारी के. बोरगोहैन ने बताया कि रिफाइनरी प्रशासन के अधिकारी और एनईआईएसटी के कीटविज्ञानी इस औद्योगिक इलाके में पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

एनआरएल के कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन मैनेजर मधुचंदा अधिकारी चौधरी ने बताया कि रिफाइनरी के आसपास के दायरे में पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए एनआरएल की प्रतिबद्धता के तहत बटरफ्लाई वैली की स्थापना की गई थी और यह प्रतिबद्धता आज भी जारी है।

एनआरएल के एक अन्य अधिकारी डी. बरूआ ने बताया कि शुरू में यहां जालियों वाले विशाल पिंजरों में तितलियों को रखा जाता था। लेकिन बाद में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के निर्देश पर यह व्यवस्था बदल दी गई क्योंकि ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ के मानकों के अनुसार, तितलियों को पिंजरों में रखना निषिद्ध है। (भाषा)

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