‘जंगल बु क ’ के कार्टून के पन्नों से उभर कर कल्याण वर्मा वन्य जीवन के छाया चित्रकार बन गए हैं। टेलीविजन में दर्शाए गए भालू, बघीरा जैसे पात्रों को आजकल कैमरे में उतार रहे हैं। नेशनल ज्योग्राफी चैनल में दिखाई देने वाले उड़ते पक्षियों एवं विभिन्न प्रकार के जीवों की प्राकृतिक जीवन शैली का उन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है।
कॉलेज के समय से फोटोग्राफी का सपना कल्याण के लिए अब हकीकत में परिवर्तित हो गया है। कल्याण वर्मा को 2005 में ‘दी सैंक्चूरी एबीएन एमरो वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफ र ’ का पुरस्कार मिला है। हाल ही में उन्होंने बीबीसी के लिए फिल्म निर्देशित की है जिसका शीर्षक है ‘बायो डाईवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न घा ट ’। चलिए कल्याण की फोटोग्राफी के बारे में उन्हीं से सुनते हैं ।
आपको वन्य जीवों के चित्र लेने के लिए किसने प्रेरित किया है? जबकि आप एक बड़ी कंपनी में काम कर रहे थे? मुझे बचपन से ही शौक था कि मैं बी आर हिल संरक्षण की सैर कर वहाँ के विभिन्न प्रकार के वन्य जीवों के बारे में जानकारी लूँ। पहले मैं एक साल में एक बार ही अभयारण्य में जाया करता था। फिर मैंने महीने में दो बार जाना शुरू किया। मुझे छायाचित्र में रूचि थी। इन वन्य जीवों की खूबसूरती से प्रेरित हो उनके चित्र कैमरे में उतारे। वन्य जीव के चित्र लेना ही मेरा करियर बन गया। इसलिए मैंने दो साल पहले याहू कंपनी को छोड़ दिया है और वन्य जीवन चित्र लेने में व्यस्त हूँ।
वन में रोमांचित कर देने वाले अनुभवों के बारे में बताएँ? पश्चिम घाट के वन्य में निवास करते जानवर मेरे हृदय के समीप हैं। पश्चिम घाट पर स्थित अन्नामलाई हिल संरक्षण में मैंने पक्षी, विभिन्न आकार के कीड़े, एवं मेढक के चित्र लिए हैं। इन चित्रों को मैंने वैज्ञानिकों को दिखाया था एवं इन विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे अनोखे चित्र उन्होंने पहले कभी नहीं देखे। पश्चिम घाट में जब मैं पक्षियों के चित्र ले रहा था तब मेरा ध्यान एक अनोखे पक्षी पर गया।
वह पक्षी वाइट डिलाईट शोर्ट विंग के नाम से जाना जाता है। किसी के पास उस पक्षी के फोटोग्राफ नहीं मिल रहे थे। इस पक्षी के अनोखे चित्र को देखकर वे बहुत उत्साहित हो गए एवं कहने लगे कि बड़ी मुश्किल से उन्हें यह चित्र मिल सका है।
तीन साल पहले एक बैंगनी रंग का मेंढक वैज्ञानिकों को नजर आया था परंतु उसके चित्र लेना बहुत कठिन था। कई प्रयासों के बाद जब मैंने बैंगनी रंग के विचित्र मेंढक के चित्र लिए तो उसे ‘डिस्कवरी ऑफ दी सेंचुर ी ’ का खिताब दिया गया।
अभयारण्य में कभी ऐसा हुआ, जिससे आप भयभीत हो गए हों? रात्रि का समय था । बी आर हिल में, पेड़ की ऊँची डाल पर मैं अपने कैमरे एवं अन्य उपकरणों को व्यवस्थित कर रहा था। मैंने हेड लैम्प को जलाया एवं उसकी रोशनी एक तेंदुए पर पड़ी जो दूसरी डाल पर बैठा हुआ था मैं सहम गया। उस समय मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ ।
दूसरा समय तब था जब मैं गाड़ी से कहीं जा रहा था कि अचानक रास्ते में एक शेर आकर खड़ा हो गया वह शेर गाड़ी से 800 मी की दूरी पर खड़ा हुआ था। मैं बुरी तरह डर गया था एवं मेरे हाथ काँपने लगे। मैं उस शेर के चित्र खींच सकूँ इतनी शक्ति भी मुझ में नहीं थी ।
वन्य जीवों से ज्यादा मैं उल्फा उग्रवादियों से भयभीत होता हूँ जो पूर्वोत्तर के जंगलों में रह कर आतंक फैला रहे हैं और जानवरों को एवं अन्य निर्दोष लोगों को निशाना बनाते हैं। ऐसे उग्रवादियों ने वन्य जीवों को असुरक्षित कर दिया है।
आपने छायाचित्रों को माध्यम बनाया है वन्य जीव के विषय पर लोगों को जागरुक करने के लिए? क्या आपको लगता है कि इससे लोगों पर कुछ असर पड़ेगा? वन्य जीवों के चित्र लेकर मैंने उसे साधन बनाया है। जंगली जानवरों की विशेषता दर्शाने की कोशिश की है। लुप्त होने से पहले मैंने वन्य जीव की अनोखी कृतियों को जनता के सम्मुख रखने का प्रयत्न किया है। स्कूल एवं कार्पोरेट कंपनियों में मैंने सेमिनार के दौरान दर्शकों में वन्य जीवों के चित्रों के माध्यम से उन में जागरुकता लाने की कोशिश की है। नए कदम उठाए गए हैं जैसे कि अन्नामलाई वन्य जीवन अभयारण्य के लिए प्लास्टिक विरोधी अभिया न का आयोजन किया गया है।
पर्यटक वन्य जीवों के प्रति कैसा व्यवहार रखते हैं? कुछ पर्यटक वन्य जीवों के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं जबकि कुछ उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। जो लोग अवैध रूप से शिकार करते हैं उन पर भी सख्ती से रोक लगनी चाहिए।
भारत के अभयारण्यों की तुलना में क्या विदेश में जानवर अधिक सुरक्षित रहते हैं? अमेरिका में देखा गया है कि नेशनल पार्क में जानवर सुरक्षित रहते हैं। हिलस्टोन पार्क एंव ग्लेशियर नेशनल पार्क में मांस के लिए असंख्य भेड़ की निर्मम हत्या की गई है। फलस्वरूप अधिक पूँजी इन जीवों के संरक्षण के लिए रखी गई है। परंतु शिकार एवं बुरे शासन के कारण इन पार्क में जीव बहुत कम रह गए हैं।
भारत में ऐसी स्थिति नहीं है। हमारी सरकार के पास अभयारण्य के लिए बहुत ही सीमित पूँजी है। इसी में ही वे जीवों का रख रखाव अच्छे प्रकार से कर रहे हैं।
क्या आप छायाचित्र की कार्यशाला में वन्य जीवों के विषय पर युवाओं के लिए आयोजित कर रहे हैं? न केवल युवाओं के लिए बल्कि हर उम्र के लोग इस वर्कशॉप में हिस्सा ले सकते हैं। मैं छायाचित्र प्रेमियों को अन्नामलाई अभयारण्य में वन्य जीव के अनूठे प्राकृतिक सौन्दर्य स्थल पर ले जाकर उन्हें जीवन्त दृश्य दिखाने की कोशिश करूँगा। यह कार्यशाला गैर सरकारी संस्था नेचर कंजर्वेशन आर्गनाईज़ेशन को सहायता देने के लिए की जा रही है।
क्या सरकार वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठा रही है? हमारी सरकार ने प्रारम्भ में वन्य जीव की सुरक्षा करने के लिए उचित कदम उठाए थे जैसे कि इंदिरा गाँधी योजना वन्य जीवन के संरक्षण के लिए। परंतु कुछ सालों में बाघों की संख्या में जो गिरावट में जो गिरावट आई है। उस समस्या का समाधान नहीं किया गया है।
न ही गैर कानूनी तौर पर शेरों की हत्या के लिए उचित कदम उठाए गए हैं। मैंने देखा है कि कुछ वन्य अधिकारी अपने पद का नाजायज फायदा उठा कर स्वयं बाघों को गोली का निशाना बनाकर चंद पैसों के लिए उसे बेच रहे हैं। साथ ही कुछ ऐसे अफसर हैं जो जंगल में पूरी तरह से जीवों की हत्या नहीं रोक पा रहे हैं।