वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना पर मंडराते खतरे

अब जंगल में नहीं है वन्यजीव

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- पटना से विनोद बंधु

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वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना क्षेत्र में एक बाघिन के साथ विचरते दिखे हैं दो शावक। कर्मचारियों, रक्षकों और धन के अभाव से जूझती इस परियोजना के अधिकारियों, अन्य लोगों व वन्यजीव प्रेमियों को कुछ अन्य दुर्लभ वन्यजीवों के भी दर्शन हुए हैं। इससे परियोजना को लेकर बंधी है नई उम्मीद।

वन अपने सघन वृक्षों और दुर्लभ वन्यजीवों के कारण ही पहचाने जाते हैं पर बिहार के चंपारण क्षेत्र में गंडक और मसान जैसी बड़ी और पंचनद, मनोर और भपसा जैसी छोटी नदियों के मीठे पानी से सिंचित वाल्मीकि वन क्षेत्र अपनी मूल विशेषताएँ ही खोता जा रहा है।

स्थिति यह हो गई कि इलाके में चल रहे वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के बारे में लोग मजाक करने लगे हैं कि यह देश की एकमात्र ऐसी व्याघ्र परियोजना है जहाँ बाघ ही नहीं हैं, हालांकि ताजा खबर उन्हें सुकून देने वाली है। कुछ समय से इस परियोजना क्षेत्र में रॉयल बंगाल टाइगर के दो नन्हे शावकों को एक बाघिन के साथ विचरते देखा जा रहा है। वन विभाग के अधिकारियों में इस वजह से उत्साह है।

हिरण, अजगर, मगरमच्छ आदि वन्यजीव आए दिन ट्रेन की चपेट में आ जाती है। बार-बार अनुरोध के बावजूद रेल मंत्रालय जंगल क्षेत्र में ट्रेनों की रफ्तार कम करने को राजी नहीं है। सूत्र बताते है कि रेल प्रशासन जंगल क्षेत्र में नक्सलियों के भय से ऐसा नहीं कर रहा है
दस वर्ष बाद रधिया और चिऊंटाहा रेंज में शेरवा दोन, चंपापुर, सेजरहनी और गोबरहिया के आसपास जंगली भैंसों के करीब तीन दर्जन की संख्या वाले दो समूहों को देखा गया है। इसी तरह गोवर्धन रेंज में पहली बार सबसे अधिक विषैले साँप किंग कोबरा को उसके बा ँस के पत्तों से बने घोंसले के साथ देखा गया।

इन दिनों खूब सवेरे जंगल में रॉकेट टेब्ड ड्रांगो की टीटी की आवाज गूंजने लगती है और मुर्गें की शक्ल के कलीज पीजेंट की गतिविधियाँ शुरू हो जाती हैं। गिद्धों, अजगर और सा ँपों समेत गनोली, गोवर्धना और ठोढ़ी रेंज में भालू और तेंदुओं की संख्या भी बढ़ी है।

दूसरी ओर सच यह भी है कि वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना पर हाल के वर्षों में अनेक तरह के संकट मंडराने लगे हैं। कहा जाता है कि जंगल के आसपास बसे लोगों के इसमें प्रवेश पर प्रतिबंध के कारण जंगली झाड़ियों ने वृक्षों को बुरी तरह जकड़ लिया है और बगहार इलाके में इस वजह से बहुत सारे पेड़ सूख गए हैं। दरअसल, व्याघ्र परियोजना के पास अपने इतने श्रमिक नहीं हैं कि वह पेड़ पर फैलने वाली झाड़ियों को हटाते रहें और न ही इतना धन है कि मजदूर रखकर यह कार्य नियमित रूप से कराया जाए।

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आसपास के ग्रामीण जंगल में जाते थे तो ये झाड़ियाँ समेट लाते थे। जंगल के ये हितैषी उससे दूर कर दिए गए और वन्य प्राणियों के लिए अनेक संकट पैदा हो गए। परियोजना के डीएफओ चंद्रशेखर स्वीकार करते हैं कि वन्यजीवों की यह अभयारण्य चौरतरफा संकट से घिरा है।

वह बताते हैं कि 880 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस जंगल का 530 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र 1994 से व्याघ्र परियोजना के तहत आता है। वन की तीन किलोमीटर की सीमा में २५० गांव और उद्यान के अंदर 26 गाँव बसे हैं। जिससे करीब ढाई लाख लोग जंगल पर निर्भर हैं।

उद्यान की ओर हर साल दिशा बदलती गंडक नदी भी अपने कटाव से नुकसान पहुँचा रही है तो दूसरी तरफ परियोजना के बीच से गुजरता मुजफ्फरपुर-गोरखपुर, नरकटियागंज-भिखनाठोढ़ी रेल मार्ग और वाल्मीकि नगर- बगहा सड़क मार्ग से वन्य प्राणियों की जान सांसत में रहती है। गैंडे, नीलगाय, हिरण, अजगर, मगरमच्छ, जंगली बिल्लियाँ आए दिन ट्रेन की चपेट में आ जाती है। बार-बार अनुरोध के बावजूद रेल मंत्रालय जंगल क्षेत्र में ट्रेनों की रफ्तार कम करने को राजी नहीं है। सूत्र बताते है कि रेल प्रशासन जंगल क्षेत्र में नक्सलियों के भय से ट्रेनों की सफ्तार कम नहीं कर रहा है।

राज्य सरकार के प्रतिवेदन में कहा गया है कि वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना और संजय गाँधी जैविक उद्यान के अलावा राज्य में वन्य जीवों के लिए 12 अभ्यारण्य और विहार है। वर्ष 2008-09 में इनमें छह के लिए केंद्र सरकार द्वारा 59.91 लाख की योजना स्वीकृत की गई है।
कभी इस अभ्यारण्य में बाघों की संख्या 54 थी। 2005 में वन विभाग ने सर्वे कराया तो यह संख्या 33-37 पर पहुँच गई। 2006-07 में भारतीय वन्य प्राणी संस्थान के विशेषज्ञों ने सर्वेक्षण किया तो बाघों की संख्या 7 से 13 के बीच बताई गई। वैसे डीएफओ चंद्रशेखर ने बताया कि बाघों के दो शावकों का नजर आना परियोजना के लिए शुभ संकेत है। परियोजना की ओर से लोगों को वन और वन्यप्राणियों की महत्ता के प्रति जागरूक करने के लिए विद्यालयों में शिविर लगाए जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा करते हैं और जलवायु में हो रहे परिवर्तनों के खतरे से आगाह भी कर रहे हैं लेकिन पर्यावरण और जलवायु की जान जंगलों की सुरक्षा और उनके विस्तार के प्रति उतने गंभीर नहीं है।

वन और पर्यावरण विभाग द्वारा विधानमंडल में पेश प्रतिवेदन के अनुसार राज्य के 94 हजार 163 वर्गकिलोमीटर भौगोलिक क्षेत्रफल में कुल 8101 वर्ग किलोमीटर वन है यानी महज 8.60 प्रतिशत। राज्य के 38 में महज 11 जिलों में वन क्षेत्र है।

उत्तर बिहार का पूरा गांगेय क्षेत्र प्राकृतिक वन से खाली है। राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के तहत पर्यावरण संतुलन के लिए 33 प्रतिशत क्षेत्र में स्थायी हरियाली रखने का संकल्प लिया गया था। इस कसौटी पर बिहार की तस्वीर बहुत विपन्न है।

राज्य सरकार के प्रतिवेदन में कहा गया है कि वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना और संजय गाँधी जैविक उद्यान के अलावा राज्य में वन्य जीवों के लिए 12 अभ्यारण्य और विहार है। वर्ष 2008-09 में इनमें छह के लिए केंद्र सरकार द्वारा 59.91 लाख की योजना स्वीकृत की गई है। 2009-10 में इनके लिए 2 करोड़ 15 लाख की योजना केंद्र सरकार को भेजी गई है। राज्य योजना मद से इनके विकास के लिए धन उपलब्ध कराने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास विचाराधीन है।

वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के लिए 3 करोड़ 35 लाख की योजना केंद्र को भेजी गई है। सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि वन विभाग अभ्यारण्य व पक्ष‍ी विहारों को लेकर गंभीर नहीं है। कई वर्ष बीत गए पर स्टेट फॉरेस्ट फोर्स का गठन नहीं हो पाया है। वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के विकास से संबंधित एक करार पर हस्ताक्षर नहीं हो पाने के कारण परियोजना को धन नहीं मिल पा रहा है। वन्य जीवों के अभ्यारण्य व उद्यान्न के विकास व संरक्षण को लेकर नीतीश सरकार गंभीर नजर नहीं आती।

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