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अभावों की पूर्ति है सच्ची मित्रता

Webdunia
- प्रतिष्ठा गर् ग

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महानगरीय सभ्यता के युवा शायद सहमत न हों मगर वास्तविकता यह है कि उनकी 'मित्रत ा' की अवधारणा और वास्तविक 'मित्रत ा' की अवधारणा में बुनियादी फर्क है। सायबर कैफे से उपजी यह पीढ़ी इंटरनेट पर चैटिं ग, डिस्क ो, बार और फाइव स्टार होटलों की देर रात खत्म होनेवाली पार्टियों में साथ-साथ उठने-बैठन े, घूमने और साथ-साथ 'वीक-एं ड' मनाने भर को ही 'दोस्त ी' समझती है। इसीलिए इन्हें स्वयं पता नहीं होता कि ये सफर क ब, कहाँ और कैसे यूँ ही छोटी-सी बात पर खत्म हो जाएगा ।

' दुआ क्या थी .जहन में ये तो याद नहीं
बस दो हथेलियाँ थी ं, जुड़ी आपस में...
जिनमें से एक मेरी थी और एक तुम्हारी... ।'

जब आपकी हथेली के साथ किसी और की हथेली जुड़ी हो तो स्वतः ही इतना कुछ मिल जाता है कि उस सु ख, उस अनुभूति के समक्ष यह याद ही नहीं आता कि दुआ क्या थ ी? हो भी क्या सकती ह ै? इसके सिवाय कि - ये साथ हमेशा बना रहे। ये हथेलियाँ कभी विलग न हों। इन दो हथेलियों की लकीरों में जो संसार समाहित ह ै, वह इस स्वार्थी लोक से सर्वथा भिन्ना है और इस दुनिया के बाशिंदे संसार के सर्वाधिक धनी और खुशकिस्मत।

इंसान जब जन्म लेता है तब उसे स्वयं नहीं पता होता कि वह किस जात ि, धर् म, कु ल, संप्रदाय या प्रांत का हिस्सा बनने जा रहा है। अपने जन्म के साथ ही वह माँ की कोख से अपने साथ लाता है 'रिश्त े', ' खून के रिश्त े' जिन्हें वह चाहे तो भी बदल नहीं सकत ा, बना नहीं पात ा, मिटा नहीं पाता। ये रिश्ते बँधे होते हैं मर्यादाओ ं, परंपराओं और परिस्थितियों की जंजीरों से। शायद यही कारण है कि लाखअच्छा वातावरण और परिवेश होने के बावजूद थोड़ा-सा भी स्वविवेक जागते ही हर व्यक्ति एक 'सा थ' की आकांक्षा में एक नए और अनजाने सफर पर निकल पड़ता ह ै, ठीक वैसे ही जैसे कोई नदी अपने उद्गम स्थल से निकलते ही पूरे उफान और वेग के साथ बह पड़ती है। बँधनाकोई नहीं चाहता। हर इंसान की सहज प्रवृत्ति होती है मुक्ति की चा ह, अभिव्यक्ति की इच्छा और यहीं से प्रारंभ होता है एक अच्छे साथी की खोज का सिलसिला।

हम सभी अपने 'स् व' को अभिव्यक्त करना चाहते हैं। अपने व्यक्तित्व क ो, अपनी आत्मा को निराकृत करना चाहते हैं और इसीलिए हमें जरूरत होती है एक ऐसे व्यक्ति की जो पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ हमारी अनुभूतियों का साक्षी बन े, जो पूरी करुणा के साथ हमारी पीड़ा व दुःख के गहनतम क्षणों को हमारे साथ-साथ भोग े, जिसका स्नेह ऐसा हो कि जब वह बरसे तो मन की धरती से मुस्कुराहटों की कोपलें फूट पड़ें और जो हमारी भूलों पर आवरण न डालते हुए हमें आईना दिखाने के बाद स्वयं बाँहें पसार उनमें समा जाने का आमंत्रण दें। एक ऐसा साथ जो पूजा की तरह पवित्र व सात्विक हो और सर्वथा निर्विकार हो। ऐसा अपनत्व जो मन की गहराइयों को छूकर हमारी धमनी और शिराओं में हमें महसूस हो और हमारी हर धड़कन के साथ स्पंदित हो... यकीनन ये सब भावना के आवेग से उपजे शब्द प्रतीत हो सकतेहै ं, मगर हर उस व्यक्ति को जिसकी जिंदगी में कोई सच्चा 'मित् र' रहा ह ो, उसे यह अपनी ही बात लगेगी।

खलील जिब्रान ने कहा है- 'एक सच्चा मित्र आपके अभावों की पूर्ति है ।' यकीनन इस द्वंद्व और उलझनों से भरे जीवन में कुछ पल शांति और सुकून के मिलते हैं। तो वह सिर्फ इस दोस्ती के दायरे में ही। यही वजह है कि शायद ही संसार में ऐसा कोई प्राणी हो जिसका कोईमित्र न हो या कभी न रहा हो। हाँ यह अवश्य है कि आज के भौतिकवाद ी, उपभोक्तावादी युग में हम अपना 'स् व' पता नहीं किस कोने में दबा-छुपा अपनी ही अंतर आत्मा से नजरें चुरा इस मशीनी दौर का एक पुर्जा मात्र बने हुए हैं।

यंत्रवत जीवन शैली में जिंदा ह ै, मगर जिंदा होने और जीवन जीने में वैसा ही फर्क है जैसा माँ के हाथ की चपाती और फाइव स्टार की रोटियों मे ं, एक में तृप्ति का अहसास ह ै, तो दूसरे में भूख भर मिटाने की मजबूरी... गजल की वो पंक्तियाँ हैं न... 'हम दोस्त ी, एहसा न, वफा भूल गए है ं, जिंदा तो है ं, जीने की अदा भूल गए हैं ।' जिंदगी की ऊहापोह और उलझनों में यथार्थ के पुल पर जब चले तो भावनाओं के सेतु पीछे छूट गए। फिर भी कभी हृदय के बंद गवाक्षों में झाँकें तो वह संसार ज्यों का त्यों नजर आता ह ै, मगर रुकने का समय नहीं रहा। अचानक रुक भी गए तो 'एक्सीडें ट' का खतर ा, इसीलिए एकठंडी आह और कसक के साथ हम सब चले जा रहे है ं, अपने कंधों पर अपने-अपने सलीब उठाए।

महानगरीय सभ्यता के युवा शायद सहमत न हों मगर वास्तविकता यह है कि उनकी 'मित्रत ा' की अवधारणा और वास्तविक 'मित्रत ा' की अवधारणा में बुनियादी फर्क है। सायबर कैफे से उपजी यह पीढ़ी इंटरनेट पर चैटिं ग, डिस्क ो, बार और फाइव स्टार होटलों की देर रात खत्म होनेवाली पार्टियों में साथ-साथ उठने-बैठन े, घूमने और साथ-साथ 'वीक-एं ड' मनाने भर को ही 'दोस्त ी' समझती है।

इसीलिए इन्हें स्वयं पता नहीं होता कि ये सफर क ब, कहाँ और कैसे यूँ ही छोटी-सी बात पर खत्म हो जाएगा। वस्तुतः इनकी दोस्त ी, स्ने ह, भावन ा, विचारधारा या अहसास की धरती से अंकुरित नहीं होत ी, अपितु इसकी नींव जरूरतों की पूर्ति पर टिकी होती है। इसीलिए न ये दोस्त को समझते है ं, न दोस्ती को। मगर सच्ची 'मित्रत ा' वह तो दुनिया के सारे रिश्ते-नातों से ऊपर है। यही वजह है कि इसमें उम् र, धर् म, जाति जैसे क्षेपक कभी नहीं लग पाते। यह आस्था और विश्वास का वह अंकुर होती है जो एक बार हृदय में प्रस्फुटित हुआ तो ताउम्र जीवन को सुरभित और सुवासित करता है। इसकी महक आपके व्यक्तित्व और रूह में रच-बस जाती ह ै, इसीलिए परोक्षतः साथ न होने पर भी आपके मित्र की मित्रता सदैव आपके साथ-साथ चलती है ।

ऐसा साथ परिवार में मिलना मुश्किल है। कारण भी स्पष्ट है कि पारिवारिक रिश्ते 'निरपेक् ष' नहीं रह पाते। उनके पीछे एक अलग पृष्ठभूमि होती है जो बाधक न भी हो तो भी मित्रता की कसौटी पर सध नहीं पात ी, क्योंकि सबके अपने-अपने विचार और मूल्य कहीं न कहीं आड़े ही आ जाते हैं। मित्रता भी वहीं हो पाती है या टिक पाती ह ै, जहाँ कोई दुराग्र ह, पूर्वाग्रह न हो। 'दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाल ा', दोस्ती अथाह सागर की मानिंद है। उथले पानी में सतह पर तैरेंगे तो थकान के सिवा कुछ हासिल नहीं होगा। इसकी थाह ल ो, इसमें जितने गहरे उतरोगे उतने ही सुंदर मोती और सीपियाँ हासिल होंगी। मित्रता की पहली शर्त है- 'आपसी सम झ' चाहे आपके चारों ओर दोस्तों का सैलाब उमड़ रहा हो मगर उनमें से कोई आपको 'सम झ' नहीं पाए आपको आपके वास्तविक रूप में जो आज है उस रूप में स्वीकार न करपाए आपकी कमजोरियों के सा थ, तो ऐसे सैलाब के समक्ष कोई एक 'मित् र' जो पूरी शिद्दत के साथ आपको समझ े, आपको स्वीकारे वह ज्यादा श्रेयस्कर है। ऐसा ही दोस्त आपको प्रेरणा तथा संबल दे सकता है। हाँ में हाँ मिलाने वाला आपका मित्र नहीं होगा। हकीकत अक्सरकड़वी होती है मगर आपका सच्चा दोस्त वही है जो आपको गलत होने पर डाँटकर यह कह सके कि 'यह सही नहीं है ।'

मित्रता का शिल्प विश्वास से बना होता है और यह विश्वास इतना कमजोर कतई नहीं होता कि छोटे-छोटे झटके उसे बिखेर दें। सही मित्रता जीवन का प्रकाश पुंज होती ह ै, साथ न रहने पर भी उसकी यादें आपकी राहों को रोशन करती हैं। इसलिए मैत्री पर्व के सुखद अवसर परयही कामना करते हैं कि दुनिया के तमाम दोस्तों की हथेलियाँ जुड़ी रहें और जहाँ मित्रता का सूर्य प्रकाशवान ह ो, ईश्वर करे वहाँ हम भी हों।
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