मेरी तस्वीर मेरे मित्र

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पंकज जोशी
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जीवन के टेढ़े-मेढ़े रास्तों के बीच,
विश्वास की एक लकीर बन जाते हो,
लोग अपना चेहरा नहीं पहचानते,
तुम मेरी ही तस्वीर बन जाते हो,

कहीं भटकककर मस्त होता हूँ,
अपने ग़ुमान में जब मैं कभी,
विरले ही हक़ से मुझे डपटकर,
मेरे मित्र तुम पिता बन जाते हो,

कभी दुनिया से भागता हूँ,
कभी रिश्तों में उलझता हूँ,
अपनी पहचान तलाशते आँसुओं के बीच,
तुम सहारा देने वाली माँ बन जाते हो,

मेहनत मेरी लगन के बदले,
जब कुछ थोड़ा भी मैं पा जाता हूँ,
उस सफलता के हर पायदान पर,
पीठ थपथपाते हुए भाई बन जाते हो,

कहीं मुश्किलों से जूझता हूँ,
कभी अनजानी वजह से लड़ता हूँ,
कलाई में मेरी रक्षा की कामना करती,
किसी बहन की दुआ से बन जाते हो,

तुम मेरे मित्र हो,
मेरी तकदीर बन जाते हो,
लोग अपना चेहरा नहीं पहचानते,
तुम मेरी ही तस्वीर बन जाते हो।

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