Dharma Sangrah

बचपन की दोस्ती होती है गहरी

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बीते हुए प्यारे पलछिन, यानी बचपन के दिन हमेशा स्मृति में मीठे बनकर स्वाद घोलते रहते हैं। तरह-तरह की शरारतें और उन शरारतों में साथ देने वाला हमारा वह खास दोस्त, जो आज की औपचारिकता में लिपटी हुई मित्रमंडली के बीच बार-बार याद आता है। साथ में मिलकर किसी टीचर की पीठ पीछे ठिठोली करना, स्कूल से बंक मारकर बगीचों में अमरूद तोड़ने जाना और अपनी हर बात उससे शेयर करना।

दुनिया कितनी ही बदल जाए, लोग कितने ही व्यस्त हो जाएँ लेकिन बचपन के दिन जब याद आते हैं तो अपने उस खास सखा के साथ बिताए पलों को हमारे आसपास हँसता हुआ छोड़ जाते हैं। युवावस्था में सपने बुनते समय भी अचानक बचपन के वे दोस्त सामने आ खड़े होते हैं और याद दिला जाते हैं वे दिन जो निश्चलता और मस्ती में साथ गुजारे थे।

सॉफ्टवेयर इंजीनियर निश्चल जैन कहते हैं-'बचपन की दोस्ती में जो बात होती है वह बाद की दोस्ती में नहीं आ सकती। बाद में जो संबंध बनते हैं वे हिसाब-किताब से बनते हैं। कई बार जाँच-परखकर और कई बार स्वार्थपूर्ति के लिए भी। बचपन की दोस्ती बड़ी एडवेंचरस होती है।

आपको दुनियादारी का बिलकुल भी अंदाजा नहीं होता। आप जो भी कार्य करते हो सिर्फ प्रयोगों के तौर पर। मुझे याद है मैंने अपने दोस्त कुणाल के साथ अपना पहला प्रयोग किया था कि पापा की दुपहिया चलाने का। दोनों ने प्लान किया और गाड़ी स्टार्ट करके चलाने लगे। पर न तो गाड़ी चलाना ही आता था न ही उम्र बहुत ज्यादा थी, सो बैलेंस बिगड़ा और दोनों गिर पड़े। बहुत चोटें आई थीं। घर पर डाँट पड़ी सो अलग।

लेकिन उस समय नादानियों की वजह से की गई नटखट गलतियाँ आज भी गुदगुदाती हैं। उन्हें याद करते समय उन दोस्तों का चेहरा सामने आ जाता है तो आँखों में पानी आ जाता है।'

' बचपन की दोस्ती यादों की उस पोटली की तरह है,जिसे खोलने पर हमेशा भीनी-भीनी सुगंध से जीवन महक उठता है।' कहती हैं बेस्ट फ्रेंड्स मीनाक्षी और सुनंदा। वे दोनों बीई तृतीय वर्ष की छात्राएँ हैं तथा बचपन से अब तक साथ-साथ हैं।

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मीनाक्षी कहती हैं-स्कूल के दिनों की मौजमस्ती में समय कब निकल गया पता ही नहीं चला। संयोग से अब तक विषय चुनने से लेकर कॉलेज चुनने तक के मामले में भी हमारे निर्णय एक जैसे ही रहे और ये हमने पूरी तरह स्वतंत्र होकर किया। हमारे परिवार वाले तो हँसकर मज़ाक करते हैं कि कहीं हमारे लिए शादी के रिश्ते भी एक घर के दो भाइयों के न आ जाएँ।

वहीं सुनंदा कहती हैं- यह बात बिलकुल सही है कि यदि आपके पास एक अच्छा और सच्चा दोस्त बचपन से है तो आप जिंदगी को नए मायनों के साथ जीते हैं। एक सच्चा दोस्त न केवल आपका हमराज बनता है बल्कि हमेशा वक्त पड़ने पर ताकत बनकर आपके साथ खड़ा रहता है।

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