समय बदला है तो जाहिर है दोस्ती का स्वरूप भी बदला, लेकिन भावना की शुद्धता और तीव्रता में ज्यादा फर्क नजर नहीं आता। चूंकि विरासत से मिले रिश्तों से अलग दोस्ती का मामला खुद की रुचि और पसंद से जुड़ा है तो बहुत स्वाभाविक है कि दोस्ती के प्रति युवाओं में एक आकर्षण, एक खिंचाव और एक नाजुकी होती है।
स्कूल में साथ मिलकर शरारत करने और साथ ही उसकी सजा पाने से लेकर, कॉम्पीटिशन के दिनों में साथ पढ़ना और फिर साथ-साथ ही प्रतिस्पर्धा करना, किसी लड़की पर लाइन मारने में मदद करना या फिर अपने पसंदीदा लड़के के मोबाइल नंबर का जुगाड़ करना क्या ये सब बिना दोस्तों के संभव हो सकता है? जीवन के रण में पहुंच कर चाहे अलग-अलग रास्ते पर चल पड़े हों, लेकिन दोस्त तो आखिर दोस्त होता है।
कभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर दोस्तों के बीच के संवाद देखें, लगेगा कि कितना बेलौस रिश्ता है ये, कितना पारदर्शी और कितना करीबी....।
फ्रेंडशिप हमारे जीवन का एक अहम पहलू है, दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जिसे हम खुद चुनते हैं। इस रिश्ते से खून का संबंध तो नहीं, पर विश्वास, प्यार व संवेदनाओं का संबंध जरूर होता है। दोस्ती तमाम बंदिशों से बेफिक्र होती है। आपसी सामंजस्य पर ही दोस्ती की नींव टिकी होती है।
बीफार्मा कर रहीं नम्रता जैन कहती हैं कि मेरे लिए दोस्ती बहुत मायने रखती है। ये दोस्ती ही है, जो हमें खुद को समझने का मौका देती है, पर कुसंगत हो तो राह भटकने में देर नहीं लगती है। इसलिए इस रिश्ते को बड़ी सूझ-बूझ के साथ चुना जाता है। मेरे कुछ दोस्त परमानेंट हैं तो कुछ टेम्परेरी, पर मैं ज्यादातर परमानेंट दोस्त बनाने में विश्वास करती हूँ और निभाने में भी। हां, मेल-फीमेल में शुद्ध दोस्ती हो सकती है, क्योंकि महिला-पुरुष एक-दूसरे को बेहतर समझते भी हैं और परेशानी को सुलझाने में भी मदद करते हैं। वे बेहतर दोस्त भी साबित हो रहे हैं।
हां, कोई एक दोस्त या सहेली फास्टफ्रेंड होती है। फास्टफ्रेंड वह होता है, जो हमारे सभी राज को राज ही रखता है, गलतियों में भागीदार होता है व खुशियों का भी हिस्सेदार होता है। जीवन में एक फास्टफ्रेंड तो होना ही चाहिए, जिससे हम मन की हर बात बता पाए व समस्या का समाधान भी निकाल पाए। मैं समय आने पर दोस्त के लिए सेक्रिफाइज करूंगी और क्यों नहीं करूं? यदि सेक्रिफाइज करने से एक अनमोल रिश्ता बच सकता है तो जरूर करना चाहिए। दोस्ती समान स्तर, अमीर-गरीब व जातपांत से बढ़कर होती है व इन सब बातों से परे होती है।
एमफिल में अध्ययन कर रही प्रियंका काकाणी कहती हैं कि दोस्ती का मतलब है आपसी समझ, विश्वास और एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करना। मेरे स्थायी और अस्थायी दोनों तरह के दोस्त हैं। बचपन की दोस्ती स्थायी होती है, जबकि कभी-कभी कुछ दोस्त ऐसे भी मिलते हैं, जो थोड़े समय के लिए साथ रहते हैं फिर इस आपा-धापी के युग में गुम हो जाते हैं।
मेरा मानना यह है कि पुरुष व महिला के बीच एक स्वाभाविक आकर्षण रहता है। अतः उनके बीच में शुद्ध दोस्ती का होना मुश्किल है। त्याग के मामले में प्रियंका सोचती है- अगर 'रीजन जेनुइन' हुआ तो सेक्रिफाइज कर सकते हैं। उनके अनुसार दोस्ती में समान स्तर देखा जाना चाहिए। अगर दोस्ती में स्तर समान न हो तो फिर कभी भी किसी भी एक दोस्त के मन में सुपीरियर या इनफीरियर कॉम्प्लेक्स आ जाता है। फिर दोस्ती टिकाऊ नहीं होती।
सॉफ्टवेयर डेवलपर प्रदीप वर्मा मानते हैं कि दोस्ती दो लोगों के बीच का भावनात्मक लगाव है। इसमें आपसी समझदारी, परस्पर सम्मान, विचार-भेद होने पर भी सामंजस्य आवश्यक है। जिसे दिल से दोस्त माना वह परमानेंट हो गया। विचारवान लोगों की दोस्ती में मेल-फिमेल का अंतर नहीं होता। मुझे लगता है लोगों की दृष्टि में अभी भी इसे पूरी मान्यता मिलने में वक्त लगेगा। हालाँकि माहौल तेजी से बदल रहा है। कोई एक फास्टफ्रेंड तो सभी का होता है और वह दोस्त ही क्या, जो समय पर काम न आए। दोस्ती में स्तर नहीं देखे जाते, दोस्ती की भावनाएं देखी जाती हैं।
एमबी खालसा कॉलेज के विद्यार्थी जयदीप पिंपले मानते हैं कि दोस्ती का अर्थ है लंबे समय तक साथ चलना। इनके भी स्थायी-अस्थायी दोनों तरह के फ्रेंड हैं। मेल-फिमेल दोस्ती में शुद्धता हो सकती है, इस बात में ये यकीन रखते हैं। वे दोस्ती में त्याग करना चाहेंगे और अमीर-गरीब नहीं देखेंगे।
बादल सिसोदिया दोस्ती को सुख-दुख में काम आने वाला रिश्ता मानते हैं। उनके पास अस्थायी दोस्त भी हैं और स्थायी भी। वे यह भी कहते हैं कि पुरुष व स्त्री में शुद्ध दोस्ती नहीं हो सकती, लेकिन हां फास्टफ्रेंड तो लगभग सभी के पास होता है। समय आया तो वे दोस्त के लिए कोई भी त्याग करने को तैयार हैं। दोस्ती में अमीर-गरीब के भेद को वे नहीं मानते।
बीफार्मा की ही छात्रा मोहिनी सिहारे मानती हैं कि दोस्ती एक ऐसा अहसास है, जो आपको खास बनाता है और एक संबल प्रदान करता है। वैसे तो उनके अस्थायी व स्थायी दोनों तरह के दोस्त हैं, पर परमानेंट ज्यादा हैं। वे मानती हैं कि लड़के और लड़की में शुद्ध दोस्ती हो सकती है, पर यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है।