प्रश्न : दद्दूजी, भाजपा के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन कर बहुमत हासिल करने के बाद अपनी पार्टी से मुख्यमंत्री पद कि जिद कर शिवसेना ने भाजपा के संग अपनी पुरानी दोस्ती को धता बता दी। शिवसेना को भी कांग्रेस तथा राकांपा ने झटका देते हुए समय पर समर्थन पत्र नहीं दिए। परिणामस्वरूप प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। क्या आपको नहीं लगता है कि शिवसेना न घर कि रही और न घाट की? उसकी शिवसैनिक के मुख्यमंत्री होने की इच्छा पूरी होती नहीं दिख रही।
उत्तर : आपकी सोच निराशावादी है। हिन्दुस्तान में कई बार लोगों को छप्पर फाड़कर भी मिल जाता है। हो सकता है कि छप्पर फाड़कर मुख्यमंत्री पद शिवसेना की झोली में गिर जाए। शिवसेना भी शायद अब ऐसे ही किसी चमत्कार की उम्मीद कर रही है। यदि वाकई ऐसा संभव हो गया तो आज जो समीक्षक शिवसेना की हंसी उड़ा रहे हैं, शिवसेना उन पर हंसेगी।