संत को प्रणाम...

- एमके सांघी

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प्रश्न : दद्दू, हाल ही में आसाराम बापूजी ने स्वयं की तुलना हाथी से तथा अपने आलोचकों की तुलना भौंकने वाले कुत्तों से की है। इस स्तर के संत यदि हमारे समक्ष आएं तो क्या हमें उन्हें प्रणाम करना चाहिए?

उत्तर : वाणी से वे संत भले ही न लगें पर दिखने में तो लगते ही हैं। संत की पदवी भी धारण की हुई है। बात अफसोसजनक होते हुए भी सच है कि आज के जमाने में जाने-अनजाने किसी भी व्यक्ति का सम्मान हम उसके गुणों के बजाय उसके पद, पैसे और पहनावे के आधार पर करने के अभ्यस्थ हो चुके हैं।

अनेक भ्रष्ट नेता-अधिकारी, ढोंगी साधु-संत, समाज में पैसे के बल पर सुप्रतिष्ठित व्यक्ति अपने गलत-सलत कार्यों और उलूल-जलूल बयानों के कारण चाहे जितने अलोकप्रिय हों मगर जब सामने आते हैं तो नमस्कार, प्रणाम और चरण स्पर्श जैसे सम्मान तथा हार-गुलदस्तों से नवाजे ही जाते हैं। आसाराम जी भी सामने आने पर भक्तों के साथ-साथ अपने आलोचकों का भी प्रणाम पाते रहेंगे। शायद यही हमारी कमजोरी भी है कि हम ऐसे लोगों के प्रति अपना असम्मान मन में छुपा कर रखते हैं और उसे प्रत्यक्ष रूप में व्यक्त करने के अवसर विपक्षी राजनैतिक दलों पर छोड़ देते हैं। इस संबंध में दिल्ली गैंग रेप के विरोध में उपजा जनआंदोलन एक सुखद बदलती बयार है।

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