प्यारी सर्दी, अब तो दया करो

प्यारी सर्दी के नाम चिट्‍ठी

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- शरद उपाध्याय
प्यारी सर्दी, तुमसे बात करने का मन तो बहुत था लेकिन, अब तुमने गले की ऐसी हालत कर रखी है कि मुंह से बोल ही नहीं निकल रहा है। जैसे-तैसे मुंह से एकाध शब्द निकल भी जाए पर अब खांसी ऐसी उठती है कि चिट्ठी लिखने पर ही मजबूर हुआ।

सुबह होती है तो ऐसा लगता है कि सूरज निकलेगा कि नहीं। पता नहीं, ठंड की वजह से वह रजाई से निकल पा रहा या नहीं पर वह बिचारा जैसे-तैसे निकलता ही है। मजबूरी है। सुबह जब नींद खुलती है तो तुम्हारे कारण रजाई उठाने की हिम्मत नहीं होती।

जब पत्नी चाय बनाकर लाती है तो सोचता हूं कि अब ऐसी कौन-सी विधि खोजी जाए जिससे बिना रजाई से हाथ निकाले चाय पी ली जाए। दो-तीन चाय पीने और बीवी की डांट सुनकर जब उठने की हिम्मत करता हूं तो लगता है कि कैसे फर्श पर कदम रखूं।

फर्श ठंड में बर्फ को भी मात कर रहा होता है। बस यूं ही लगता है कि धूप में जाकर बैठ जाऊं पर धूप बिल्कुल ऐसी लगती है जैसे रात की चांदनी छिटक रही है। सूरज भी ठिठुरता हुआ नजर आता है। अब बिस्तर के बाहर निकले नहीं कि मुसीबतें शुरू हो जाती हैं। जल, जिसके लिए कहा गया है कि जल ही जीवन है, हाथ लगाते ही जीवन छीन लेने जैसी स्थिति हो जाती है।

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पानी पीते हैं तो लगता है बर्फ निगल रहे हैं। नाश्ता रसोई से आकर बेड-रूम तक पहुंचते-पहुंचते ठंडा हो जाता है। सर्दी में खान-पान की राजधानी डाइनिंग रूम से स्थानांतरित होकर बेडरूम पहुंच जाती है। नाश्ते से लेकर खाने तक की सभी क्रियाएं यही संपन्न होती हैं।

हे सर्दी, तुम कितना भी सितम ढाओ पर दिन में एक पल ऐसा आता है जब इस अबोध प्राणी को कार्यालय जाना ही पड़ता है। पापी पेट के लिए कुछ न कुछ करना ही पड़ता है। अब कार्यालय में हमारा शरीर जाता तो है, लेकिन कार्य करने में खुद को असमर्थ पाता है।

हाथ फाइलों तक नहीं पहुंच पाते, कलम की स्याही जम जाती है। सुबह से शाम तक छोटे-छोटे टूर होते हैं। तुम भी सोच रही होगी कि तुम्हारे इतने प्रकोप में भला कैसे बाहर निकल पाता हूं पर मेरी प्यारी सर्दी, तुम्हारे कारण ही बार-बार बाहर दुकानों पर जाकर चाय पीनी पड़ती है। सरकारी कार्यालयों का काम वहीं संपन्न होता है।

जो भी काम कराने आता है, वह धूप में ही बैठकर चाय का अर्क चढ़ाकर कार्य करा पाता है। हे सर्दी, तुम्हारी भीषणता के कारण कई प्रेम संबंधों का विकास होता है। शकुंतलाएं, जो घर के बंधनों के कारण दुष्यंतों की निगाहों से बची हुई थीं।

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