हम क्या हैं?

प्रधानमंत्री, महंगाई और ज्योतिष

Webdunia
- शरद उपाध्या य
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आजकल लोगों ने बहुत ही परेशान कर रखा है। आखिर हम प्रधानमंत्री हैं या दुकानदार। एक ही सवाल पूछते रहते हैं- महंगाई कब कम होगी? प्याज कब सुधरेगा? शक्कर कब सस्ती होगी? गेहूं नीचे कब आएगा? दालों का भाव जमीन को कब छूएगा? पेट्रोल का क्या होगा? सच कहूं हमें तो बहुत ही परेशानी हो जाती है। अरे भई, हमने कोई देश संभाल रखा है कि परचून की दुकान, गलत बात है, कोई भी कुछ कह देता है।

भई, हम तो जनता के सेवक हैं पर आजकल लोग गजब ही पीछे पड़े हैं। कोई पेट्रोल के लिए कहता है तो कोई सब्जी के लिए। तो कोई प्याज को रो रहा है। क्या करें? अब सीधी सी बात है, कोई चीज एक बार मंहगी होती है तो कभी सस्ती होती है क्या मगर ये लोग तो बार-बार एक ही बात। हम तो परेशान हो गए।

अब हम प्रधानमंत्री हैं, इसका मतलब यह तो नहीं कि हम कोई ज्योतिषी हो गए। अब हम अपने भविष्य के बारे में ही कुछ नहीं जानते तो मंहगाई का भविष्य का कैसे जान सकते हैं। अब हम ठहरे पक्के गांधीवादी, हम तो शुरू से यही कह रहे थे।

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भई, कीमतों पर मत जाओ, कीमतें बेकार की चीज हैं। असली चीज है आत्मनियंत्रण। सभी लोगों को स्वंय पर नियंत्रण रखना आना चाहिए। जब सब्जियां महंगी हो रही है तो लोग इसके पीछे क्यों पड़ रहे हैं। ऐसी चीज जो अपनी पहुंच के बाहर हो रही है, क्यों हम उसे खाने को बेताब हैं? अगर हम ऐसी छोटी-छोटी चीजों के गुलाम हो गए तो फिर कैसे चल पाएगा।

हम तो पक्के गांधीवादी हैं। हम चाहते हैं कि लोग प्रकृति के नजदीक आएं। इन भौतिक चीजों से दूरी बनाए रखें। घी-तेल पहुंच के बाहर हो रहे हैं। अरे, हम तो चाहते ही हैं कि इन सबसे तुम्हें छुटकारा मिले। दिन-रात हमारे वैज्ञानिक लगे हैं, डाक्टर शोध पर शोध किए जा रहे हैं। सब बस यही एक बात कह रहे हैं कि भई, तेल-घी का त्याग करो नहीं तो हृदय रोग हो जाएगा। शक्कर का प्रयोग कम करो नहीं तो लीवर को नुकसान होगा।

अब सब्जियां खाने से क्या फायदा? कितने केमिकल इस्तेमाल होते हैं, कितने कीटनाशक पेट में जाते हैं। क्यों खाते हो चार रोटियां? तुमने सुना नहीं कि डॉक्टर हमेशा एक ही बात कहते हैं कि कम खाने से कोई नहीं मरता। ज्यादा खाने से लोग अधिक मरते हैं।

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मैं मानता हूं। मंहगाई बहुत बढ़ गई है। नहीं बढ़नी चाहिए। पर क्या किया जा सकता है। हम क्या कर सकते हैं। हमारे हाथ में है ही क्या? अब ये निष्ठुर मुझ पर आरोप लगा रहे हैं कि मुझे दाम बढ़ने की चिंता नहीं है। अब ऐसा हो सकता है क्या।

मुझसे ज्यादा चितिंत तो कोई नहीं होगा, क्योंकि मुझे तो खुद ही यह लग रहा है कि भले ही मैं ज्योतिषी नहीं हूं पर यही हालत रही तो कहीं मुझे ही ज्योतिषियों के शरण में न जाना पड़े। मंहगाई के चक्कर में कहीं मेरे भाव ही कम न हो जाएं। सो भैया अब और क्या कहूं...।

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