90 का दूरदर्शन और हम...

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1. संडे को सुबह-सुबह नहा-धोकर टीवी के सामने बैठ जाना..
2. ' रंगोली' में शुरू में पुराने फिर नए गानों का इंतजार करना..
3. ' जंगल-बुक' देखने के लिए जिन दोस्तों के पास टीवी नहीं था उनका घर पर आना..
4. ' चंद्रकांता' की कास्टिंग से लेकर अंत तक देखना..
5. हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ना चंद्रकांता में और हमारा अगले हफ्ते तक सोचना..


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6. शनिवार और रविवार की शाम को फिल्मों का इंतजार करना..
7. किसी नेता के मरने पर कोई सीरियल ना आए तो उस नेता को और कोसना...
8. सचिन के आउट होते ही टीवी बंद करके खुद बैट-बॉल ले कर खेलने निकल जाना..
9. ' मूक-बधिर' समाचार में टीवी एंकर के इशारों की नकल करना...
10. कभी हवा से एंटेना घूम जाए तो छत पर जाकर ठीक करना...


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बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता,
दोस्त पर अब वो प्यार नहीं आता।
जब वो कहता था तो निकल पड़ते थे बिना घड़ी देखे,
अब घडी़ में वो समय, वो वार नहीं आता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।


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वो साइकिल अब भी मुझे बहुत याद आती है, जिस पर मैं उसके पीछे बैठ कर खुश हो जाया करता था। अब कार में भी वो आराम नहीं आता...।।।
जीवन की राहों में कुछ ऐसी उलझी है गुत्थियां, उसके घर के सामने से गुजर कर भी मिलना नहीं हो पाता...।।।
वो 'मोगली' वो 'अंकल Scrooz', ' ये जो है जिंदगी' 'सुरभि' 'रंगोली' और 'चित्रहार' अब नहीं आता...।।।
रामायण, महाभारत, चाणक्य का वो चाव अब नहीं आता, बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
अब हर वार 'सोमवार' है...
काम, ऑफिस, बॉस, बीवी, बच्चे;
बस यही जिंदगी है। दोस्त से दिल की बात का इजहार नहीं हो पाता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।

- फेसबुक से साभार


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