एबटाबाद में बना एक बंगला न्यारा

कैसा न्यारा बंगला...!

Webdunia
- उमेश अग्निहोत्री
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एक मकान बना, बल्कि बंगला बना न्यारा, प्लॉट बेचा गया, खरीदा गया, न कहीं कोई आर्किटेक्ट, न बिल्डर, न मजदूर, न कोई इंस्पेक्टर, न कोई डीड, न टाइटल, न रिएल्टर, न ब्रोकर। मामला समझ नहीं आया, बिलकुल समझ नहीं आया। और तो और, जब यह न्यारा बंगला बन रहा था, कोई ऐसा भी नहीं था कि चक्कर लगाते हुए पूछ जाता कि यह मेरे इलाके में क्या बन रहा है? यह एक्सटेंशन क्यों हो रही है। हथेली गर्म करो, नहीं तो तीसरी मंजिल बनाने का जुर्माना देना पड़ेगा। यह सब कैसे हो गया?

कैसा न्यारा बंगला। न कोई प्रॉपर्टी टैक्स, न बिजली-पानी के बिलों का ही टंटा, न कभी किसी प्लंबर की ही जरूरत कि कहीं टूट-फूट ही हो जाए तो बुला लिया जाए। कोई बीमा एजेंट भी वहां नहीं फटका कि ऐसे न्यारे बंगले का बीमा ही कर जाता।

अमेरिका के वार्ता कार्यक्रमों में तरह-तरह की टिप्पणियां आईं। जैसे कि चलो, जाने से पहले ओसामा टेलीविजन पर रॉयल वेडिंग तो देख गए या फिर मार्क ट्वेन की यह उक्ति भी काफी इस्तेमाल हुई कि मैंने कभी नहीं चाहा कि किसी की मौत हो लेकिन मुझे कुछ लोगों के मरने के समाचार पढ़कर अच्छा भी लगा है। लेकिन न्यारे बंगले को देख कर सब हतप्रभ हैं।

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वे तो अपनी हाउसिंग सोसाइटी की अनुमति बिना अपने घरों के बाहर की खिड़की-दीवारों के न तो रंग बदल सकते हैं और न ही कोई परिवर्तन करा सकते हैं, दूसरी तरफ एबटाबाद में बंगला बना न्यारा।

यह सब इस बात का सुबूत है कि इस धरती पर अब भी ऐसी जगह है जहां निश्चिंत होकर बंगला बनाया जा सकता है। प्यारा प्यारा, सोने का बंगला, चांदी का जंगला, सैनिक अकादमी के द्वारे। ऐसा दुनिया में पाकिस्तान के अलावा कहां संभव है। यह बंगला बना इससे साबित होता है कि पाकिस्तान में किसी को अकारण ही परेशान नहीं किया जाता।

आदमी आदमी पर विश्वास करता है। न सरकार पेरशान करती है, न पुलिस ही। मानना होगा कि पाकिस्तान आगे का समाज है, जहां भ्रष्टाचार खत्म हो चुका है।

भ्रष्टाचार कहां है, यह जानने के लिए देखा जाता है कि सरकारी अधिकारी, अफसरशाह, निजी क्षेत्र के कर्मचारी, सिविल सोसाइटी और मीडिया भ्रष्टाचारी हैं या नहीं।

अगर पाकिस्तान की संस्थाएं भ्रष्टाचारी होतीं तो क्या यह संभव था कि किसी को इस बंगले के बनने का पता न चलता। मीडिया से तो यह अपेक्षित है कि वह भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करे।

पर जब कोई पत्रकार देखे कि पूरा कुनबा एक न्यारे बंगले में शांति से रह रहा है तो उससे अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह दीवारों के पार ताका-झांकी करे। पत्रकारों को यह सब नहीं करना चाहिए। पाकिस्तान के पत्रकारों ने पत्रकारिता के नए मानदंड कायम किए हैं।

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