चारों ओर चोर ही चोर!

चोरों की कई प्रजातियां

Webdunia
- सूर्यकुमार पांडेय
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आज समाज में एक से एक बड़े वाले चोर जनम ले चुके हैं। इनके पास कोठियां, कारें हैं। अकूत संपत्तियां हैं। पब्लिक में मान-सम्मान है। ये रोज चोरी करते हैं और चौड़े से सीना तान कर निकलते हैं। मजाल है कानून के फंदे की कि इनकी गर्दनों को नापना तो दूर, छू भी सके!

लद गए जमाने लुटिया चोरों, टिकिया चोरों के। मुर्गी चोर भी अब ब-मुश्किल ही मिलते हैं। अंडा चोर तो दिखते ही नहीं। वक्त ने वह करवट ली है कि बेचारे खुद ही आमलेट हो लिए हैं। अब तो इन छोटे-मोटे गिरहकट टाइप वालों को चोर कहने में भी लज्जा अनुभव होती है।

अपने देश में चोरों की भांति-भांति की प्रजातियां पाई जाती हैं। पुराने समय में एक चितचोर होता था। आज इतने किस्म के चोर हैं कि चित्त के साथ वित्त भी ले भागते हैं और अच्छे-खासे कानून को चुटकियों में चित करने की ताकत रखते हैं। चारों ओर शराफत के चोले में चोर घूम रहे हैं। इनसे बचना नामुमकिन है।

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सरकार ने राजस्व उगाही के लिए तमाम टैक्सेज लगा रखे हैं। इन्हें सात्विक भाषा में 'कर' कह कर पुकारा जाता है। वैसे कर का एक मतलब करने से भी है। दूसरा अर्थ हाथ होता है। तो जो जितनी हाथ की सफाई से कर की चोरी कर सके, वह उतना ही उन्नत चोर है। कहा गया है, पैसा हाथ का मैल है। मैल कैसा भी हो, वह प्रदर्शन की चीज नहीं होता। इस नाते पैसे को छिपाकर रखना ही श्रेयस्कर है। इसलिए शातिर चोर आय को छिपा लेता है।

इनकम टैक्स देना हो तो चोर-कर्म पर उतारू हो लेता है। वह व्यापार करता है लेकिन ट्रेड टैक्स देने में उसकी नानी और नानी न हुई तो अम्मा मरने लग जाती है।

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एक और चोर होता है। बिजली चोर। बहुतायत में पाया जाता है। हर दो-चार घरों के बाद मिलता है। यह बिजली की खपत तो अंधाधुंध करता है परंतु जब बिल भरने की नौबत आती है तो इसके दिल की बत्ती गुल होने लगती है।

इसके घर में एसी है, फ्रिज है लेकिन यह सरकार को गालियां बकता हुआ कहता है, 'हाय, कहां से इतना बिल जमा करें? सरकार ने बिजली की दरें जरूरत से ज्यादा महंगी कर रखी है। महंगाई के मारे पेट भरना मुश्किल हो रहा है। बिल कैसे भरें?'

यह फ्यूज होता है। फिर अपने ब्रेन के ट्रांसफॉर्मर पर अतिरिक्त लोड न डालता हुआ चोरी के शाश्वत पथ पर अग्रसर हो लेता है। ऐसे चोर की एक विशेषता यह भी होती है कि यह अपने घर में चोरों से सुरक्षा की खातिर सुरक्षा उपकरण लगवाता है।

कहां तक गिनाएं? हम जिसे शरीफ समझते हैं, वही चोर निकलता है। हालात ऐसे हैं कि हर तिजोरी में चोरी का माल है। सारे चोर कहते हैं- वे हैं तो, पर ईमानदार चोर हैं। वे उन लाख बेईमान चोरों से अच्छे हैं, जो जनता का धन खुलेआम लूट रहे है ं।

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