why ganesh visarjan is done on anant chaturdashi: गणेश चतुर्थी का त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। 10 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव, अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा के विसर्जन के साथ समाप्त होता है। बहुत से लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर अनंत चतुर्दशी पर ही गणेश जी की मूर्तियों को विसर्जित क्यों किया जाता है? इसके पीछे एक बेहद रोचक और महत्वपूर्ण पौराणिक कथा छिपी हुई है।
महाभारत की पौराणिक कहानी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना के लिए भगवान गणेश से उसे लिखने का अनुरोध किया था। गणेश जी इसके लिए तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि वे बिना रुके लगातार लिखते रहेंगे और महर्षि वेदव्यास को भी बिना रुके कहानी सुनानी होगी। महर्षि वेदव्यास ने यह शर्त स्वीकार कर ली। लगातार 10 दिनों तक गणेश जी बिना रुके महाभारत लिखते रहे, जिससे उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया। उनके शरीर में गर्मी इतनी ज्यादा हो गई कि अगर उसे शांत न किया जाता तो वे पिघल सकते थे।
क्या है अनंत चतुर्दशी का महत्व
जब 10 दिन पूरे हो गए, तब महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी के शरीर के बढ़ते तापमान को शांत करने के लिए उन्हें पानी में डुबकी लगाने को कहा। जिस दिन यह घटना हुई, वह अनंत चतुर्दशी का दिन था।
इसी कारण से, गणेश उत्सव के दसवें दिन यानी अनंत चतुर्दशी पर गणेश जी की मूर्तियों को शीतल करने की परंपरा के रूप में उनका विसर्जन किया जाता है। विसर्जन का यह अनुष्ठान इस बात का प्रतीक है कि भगवान अपने भक्तों से अगले वर्ष फिर से मिलने का वादा करके वापस जा रहे हैं।
यह परंपरा हमें यह भी सिखाती है कि जीवन एक चक्र है, जहां आगमन और प्रस्थान दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। यह विसर्जन केवल एक मूर्ति को पानी में डालने का कार्य नहीं है, बल्कि यह एक विश्वास है कि भगवान गणेश हमारे कष्टों को दूर करके हमें वापस शांति प्रदान कर रहे हैं।
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