गणानां त्वां गणपति

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- अनिता होलान ी
गणेश समस्त विघ्नों को हटाने वाले हैं, कृपा के सागर हैं, सुंदर हैं, सब प्रकार से योग्य हैं। समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले गणेश विनायक हैं। गणेशजी विद्या के अथाह सागर हैं। बुद्धि के विधाता हैं।

इस संदर्भ में एक कथा है कि महर्षि वेद व्यास ने महाभारत को बोलकर लिखवाया था, जिसे स्वयं गणेशजी ने लिखा था। अन्य कोई भी इस ग्रंथ को लिखने में समर्थ नहीं था।

गणेशजी को हमारे यहाँ मंगल का प्रतीक माना गया है। कोई भी नया कार्य करने से पूर्व गणेशजी की वंदना की जाती है। श्री गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी विनय पत्रिका में सर्वप्रथम गणेश वंदना ही की थी। तुलसीदास द्वारा उनकी स्तुति में लिखा गया पद गणेशजी के संपूर्ण व्यक्तित्व और महत्व को भली भाँति दर्शाता है।

'' गाइए गणपति जगवंदन।
शंकर सुवन भवानी नंदन॥
सिद्धि-सदन, गज-बदन विनायक।
कृपा-सिंधु, सुंदर, सब लायक॥
मोदक प्रिय, मृदु मंगलदाता।
विद्या वारिधि बुद्धि विधाता॥
मांगत तुलसीदास कर जोरे।
बसहिं रामसिय मानस मोरे॥

इस पद में गणेशजी को गणपति कहा गया है, क्योंकि वे गणों के पति हैं। समूचे ब्रह्माण्ड में वे वंदनीय हैं। अतः जगवंदन हैं। सभी तीज-त्योहारों व शुभ-अवसरों पर गणेश की स्तुति सर्वप्रथम की जाती है।

मान्यता है कि सर्वप्रथम गणेश की वंदना करने से कार्य बिना विघ्न बाधा के संपन्न होते हैं। सबसे पहले गणेश को स्तुति का अधिकार क्यों मिला।

इसके पीछे एक कथा है :सर्वप्रथम कौन पूजनीय हो, इस बात का निर्णय करने के लिए समस्त देवताओं में एक प्रतियोगिता हुई। शर्त यह थी कि जो पूरे ब्रह्माण्ड के तीन चक्कर लगाकर सर्वप्रथम लौटेगा, वह ही प्रथम पूजनीय होगा।

समस्त देवता ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के लिए अपने अपने वाहनों पर चल पड़े। लेकिन, गणेशजी का वाहन मूषक तो बहुत दुर्बल था। भला मूषक पर सवार हो गणेश कैसे सफल होते। लेकिन गणपति परम चतुर थे।

उन्होंने वहीं 'राम' नाम लिख लिया और अपने वाहन मूषक पर सवार हो राम नाम की तीन प्रदक्षिणा पूरी की और जा पहुँचे निर्णायकों के पास। निर्णायकों ने जब पूछा कि वे क्यों नहीं गए ब्रह्माण्ड के चक्कर पूरे करने, तो गजाननजी ने जवाब दिया कि इसी 'राम' नाम में तीनों लोक, समस्त ब्रह्माण्ड, समस्त तीर्थ, समस्त देव और समस्त पुण्य विद्यमान हैं।

अतः जब मैंने राम नाम की परिक्रमा पूरी कर ली, तो इसका तात्पर्य है कि मैंने पूरे ब्रह्माण्ड की प्रदक्षिणा पूरी कर ली। उनकी यह तर्कसंगत युक्ति स्वीकार कर ली गई और इस तरह वे सर्वमान्य 'सर्वप्रथम पूज्य' माने गए।उनके जन्म की कथा भी बड़ी रोचक है।

एक बार पार्वतीजी ने स्नान के पूर्व उबटन लगाया और जब स्नान करने के लिए गईं, तो उसी उबटन का पुतला बनाकर द्वारपाल के रूप में द्वार पर तैनात कर दिया। इसी बीच गौरीपति शिवजी पधारे व भीतर प्रवेश करने लगे। लेकिन उस पुतले अर्थात्‌ द्वारपाल ने उन्हें अंदर जाने से रोका। क्रोधित हो शिव ने द्वारपाल का सिर काट दिया।

इधर स्नान करने के बाद पार्वतीजी बाहर आईं और यह सब घटित देखकर अत्यंत दुखित हुईं, क्योंकि वे इस पुतले को अपने अंग से उद्भुत पुत्र की भाँति ही मान रही थीं। पार्वतीजी के दुःख को देखकर ब्रह्माजी अवतरित हुए और उन्होंने शिव से कहा कि जो भी सबसे पहला जीव मिले, उसका सिर काटकर इस बालक के धड़ पर लगा दो, तो यह बालक जीवित हो उठेगा।

शिवजी को सबसे पहले हाथी का एक बच्चा मिला। उन्होंने उसका सिर लाकर बालक के धड़ पर लगा दिया, बालक जीवित हो उठा और इसी आधार पर गणेशजी 'गजानन' कहलाए।

गणेश को समस्त सिद्धियों को देने वाला माना गया है। सारी सिद्धियाँ गणेश में वास करती हैं। गणेशजी की दो पत्नियाँ मानी गई हैं- सिद्धि और ऋद्धि। गणेश समस्त विघ्नों को हटाने वाले हैं, कृपा के सागर हैं, सुंदर हैं, सब प्रकार से योग्य हैं। समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले गणेश विनायक हैं। गणेशजी विद्या के अथाह सागर हैं।

बुद्धि के विधाता हैं। इस संदर्भ में एक कथा है कि महर्षि वेद व्यास ने महाभारत को बोलकर लिखवाया था, जिसे स्वयं गणेशजी ने लिखा था। अन्य कोई भी इस ग्रंथ को लिखने में समर्थ नहीं था। भाद्र पक्ष में गणेश उत्सव मनाया जाता है। यूँ तो पूरे भारतवर्ष में यह पर्व संपन्न होता है, पर महाराष्ट्र में इस पर्व के दौरान पैदा होने वाला अभूतपूर्व जोश व उल्लास देखते ही बनता है। घर घर में और सार्वजनिक स्थलों पर गणेश की झाँकियाँ लगाई जाती हैं। विशेषकर महाराष्ट्र में तो गणेश के मंदिरों का भी विधान है।

गणेश के छप्पन रूप माने गए हैं। उनमें प्रमुख हैं- अर्क विनायक, वक्रतुण्ड विनायक, सिद्धि विनायक, दुर्ग विनायक, मोदक प्रिय विनायक, अभय विनायक, कृतदंत विनायक, अविमुक्त विनायक आदि। गणेश के इन सभी रूपों की महाराष्ट्र में पूजा होती है। सिद्धि विनायक के व्रत और पूजन को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। गणेशजी का सबसे प्रिय भोग मोदक या लड्डू है। अलग अलग जगह यह मोदक अलग अलग प्रकार से बनाया जाता है। सामान्यतः इसे चावल पीसकर बनाया जाता है।

इस अवसर पर अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। अनंत चतुर्दशी को गणेश की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। गणेशजी सर्वमंगलदायक, बुद्धि के विधाता और विद्या वारिधि हैं। ऋग्वेद में गणपति की जयकार इस सूक्त से की गई है-

' गणानां त्वां गणपति हवामहे, कविं कविनायुपश्रवस्तमम्‌।'
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