जा‍निए लंबोदर-विनायक श्री गणेश की अद्भुत महिमा

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विश्व हिन्दू धर्म और संस्कृति को मानने वाले प्रत्येक व्यक्ति के मानस में यह रच बस गया है कि कोई भी कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व मुंह से निकल ही जाता है कि "आइए श्रीगणेश किया जाए"। शिव-पार्वती के इस पुत्र की क्या महानता है कि उन्हें आद्य-पूजनीय माना जाता है, इस पर विचार किया जाए।


पौराणिक कथा है कि माता-पिता के परम भक्त श्रीगणेश थे। एक बार सभी देवगण अपने वाहनों के शक्ति परीक्षण के लिए एकत्र हुए परन्तु गणेशजी असमंजस में थे क्योंकि परीक्षा इस बात की थी कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परिक्रमा सर्वप्रथम कौन पूरी करेगा? छोटे से मूषक के साथ यह कैसे संभव होगा? दौड़ आरंभ होते ही अति बुद्धिमान गणेशजी ने माता-पिता, शिव-पार्वती जी को प्रणाम कर उन्हीं की प्रदक्षिणा की और स्पर्धा में प्रथम आए।
 
उन्होंने इसके पीछे तर्क यह दिया कि माता-पिता मूर्तिमान ब्रह्माण्ड है तथा उनमें ही सभी तीर्थों का वास है। साथ ही यदि वे माता-पिता स्वयं त्रिपुरारी शिवजी तथा माता-पार्वती हों तो कहना ही क्या है। सम्पूर्ण देव मंडल उनके इस उत्तर पर साधु-साधु कह उठा तथा उन्हें अपने माता-पिता से सभी पूजाओं/विधि-विधानों में आद्य पूजन" होने का वरदान मिला। यह उनके बुद्धि कौशल के आधार पर अर्जित वरदान था। 
 
स्पष्ट है कि श्रीगणेश की पूजा से आरम्भ की गई विधि में कोई बाधा नहीं आती क्योंकि वे अपने बुद्धि-चातुर्य से प्रत्येक बाधा का शमन कर देते हैं। श्रीगणेश की स्थापना कार्य-विधि के सफल होने की निश्चित गारंटी बन जाती है। इस कथा से न केवल गणेशजी के बुद्धि कौशल का परिचय मिलता है, बल्कि उनकी अनन्य मातृ-पितृ भक्ति का भी प्रमाण मिलता है।

श्रीगणेश के माहात्म्य को दर्शाने वाली अनेक पौराणिक कथाएं वैदिक साहित्य में उपलब्ध हैं। महर्षि वेद-व्यास को जब "महाभारत" की कथा को लिपिबद्ध करने का विचार आया तो आदि देव ब्रह्माजी ने परम विद्वान श्रीगणेश के नाम का प्रस्ताव रखा।
इस पर उनके द्वारा यह शर्त रखी गई कि वे कथा तब लिखेंगे, जब लेखन के समय उनकी लेखनी को विराम न करना पड़े। इससे पूर्व परम्परागत पद्धति से कंठस्थ किया जाता था परन्तु "जय संहिता" जो "महाभारत" कहलाई, प्रथम लिपिबद्ध कथा है अतः स्पष्ट है कि आर्य साहित्य में लेखन की परम्परा के प्रारम्भकर्ता पार्वतीपुत्र ही हैं।

इसी प्रकार यह भी मान्यता है कि भाद्रपद मास के, शुक्ल पक्ष के, चंद्रमा के दर्शन करने वाले पर चोरी का कलंक लगता है। श्रीकृष्ण भी इससे प्रभावित हुए, ऐसा लोकमत में प्रचलित है परन्तु यदि त्रुटिवश ऐसा हो जाए तो उसका निदान भी विघ्नेश्वर के पास है। कहते हैं कि श्रीगणेश का बारह नामों से पूजन करने से इस कलंक से रक्षा हो जाती है।
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