वह अत्यंत सुंदर बालक द्वार पर खड़ा हो गया। भगवान शंकर कहीं से आए और अन्त:पुर में जाने लगे तो उसने रोक दिया। भगवान असमंजस में कि उन्हें उनकी ही पत्नी के पास जाने से रोकने वाला यह बालक कौन है।
उन्होंने बालक को द्वार से हटा देने की देवताओं को आज्ञा दी। इन्द्र, वरुण, कुबेर, यम आदि सब उससे पराजित होकर भाग खड़े हुए आखिर वह महाशक्ति का पुत्र था। भगवान शंकर ने क्रोधित हो त्रिशूल उठाया और बालक का मस्तक काट दिया।
माता पार्वती के क्रोध का पारावार ना रहा। देवताओं ने उनके बच्चे का वध करा दिया था। पुत्र का शव देखकर माता बिलख पड़ी। उनके विलाप और क्रोध से डरकर देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की।
भगवान शंकर भी पार्वती के विलाप को सुनकर विचलित हो गए। उन्होंने भगवान गरूड़ को आदेश दिया कि किसी भी नवजात शिशु का मस्तक लाया जाए। यह मस्तक धड़ से लगाया गया तो बालक पुनर्जीवित हो जाएगा। लेकिन शर्त यह थी कि उसी शिशु का सिर काम में आएगा जिसकी माता उसकी तरफ पीठ कर के सोई होगी। लेकिन समूचे संसार में ऐसी कोई मां नहीं मिली जो अपने बालक की तरफ पीठ कर के सोई होती।
विधि की विडंबना देखिए कि हथिनी का विशालकाय शरीर उसे अपने पुत्र की तरफ मुंह कर सोने की इजाजत नहीं देता। गरूड़ जी को रास्ते में सोई मिली हथिनी जो अपने शिशु की तरफ पीठ किए थी।
उन्होंने उस नवजात गजराज शिशु का सिर काटा। यह मस्तक बालक को लगाया गया। सभी देवताओं में उनमें प्राण मंत्र फूंके। इस प्रकार यह दिव्य शिशु गजानन हो गया।
अपने अग्रज कार्तिकेय के साथ संग्राम में उसका एक दांत टूट गया और तबसे गणेश जी एकदंत भी कहे जाते हैं।