गणेश स्थापना (बृहत पूजन)

पूजन विधि सरल हिन्दी भाषा में

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प्रस्तुति : डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंकार

समयावधि - लगभग 50 मिन ट

हेतु विधि एवं निर्देशन
भाषा- यहाँ पर सरल हिन्दी भाषा में भगवान श्री गणेश की बृहत पूजन विधि दी जा रही है।
अवधि- निम्नांकित विधि से पूजन करने में अनुमानित समय 50 मिनट लगेगा। जिन व्यक्तियों के पास समयाभाव है अथवा बड़ी पूजा करने की इच्छा नहीं है, संस्कृत का ज्ञान नहीं है, वे व्यक्ति इस विधि से लाभ उठा सकते हैं।

प्रस्तुत पूजन पद्धति में पूजन का क्रम निम्नानुसार है-
1. दीप प्रज्ज्वलन एवं पूजन 2. आचमन 3.पवित्रकरण (मार्जन) 4. आसन पूजा 5. स्वस्तिवाचन 6. संकल्प 7. श्री गणेश ध्यान 8. आवाहन व प्रतिष्ठापन 9. स्नान 10. वस्त्र एवं उपवस्त्र 11. गंध व सिन्दूर 12. पुष्प एवं पुष्पमाला 13. दूर्वा 14. धूप 15. दीप 16. नैवेद्य 17. दक्षिणा एवं श्रीफल 18. आरती 19. पुष्पाँजलि 20. प्रदक्षिणा 21. प्रार्थना एवं क्षमा प्रार्थना 22. प्रणाम एवं पूजा समर्पण।

भाग-2 पूजन प्रारंभ
दीपक पूजन
स्वस्ति वाचन
संकल्प
आवाहन व प्रतिष्ठापन
शुद्धदोदक स्नान (पुनः शुद्ध जल से स्नान)
सुगंधित धूप
नैवेद्य निवेदन
1. ॐ प्राणाय स्वाहा
2. ॐ अपानाय स्वाहा
3. ॐ समानाय स्वाहा
4. ॐ उदानाय स्वाहा
5. ॐ व्यानाय स्वाहा
' ॐ सिद्ध बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। नैवेद्य के रूप में मोदक व ऋतु फल आदि अर्पित है।'
( इसके पश्चात निम्न मंत्र बोलते हुए पुनः जल छोड़ें)
' ॐ सिद्धि बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। आचमन हेतु, हस्त प्रक्षालन हेतु जल अर्पित करता हूँ।' (पुनः जल छोड़ें)

आरती :
विधि व निर्देशन- आरती कपूर जलाकर ही की जाती है। एक थाली में स्वस्तिक बनाकर उस पर पान का पत्ता रखकर कुछ अक्षत रखें एवं कपूर रखकर उसे प्रज्ज्वलित कर दें।
इसके अलावा कपूर के साथ घी में डूबी हुई एक, तीन, पाँच, सात या इससे अधिक बत्तियाँ जलाकर भी आरती की जाती है।
आरती हेतु पुराण एवं वेदों में अलग-अलग मंत्र दिए गए हैं। इसके अलावा वर्तमान समय में अनेक विद्वान संतों द्वारा रचित विभिन्न आरतियों का भी भिन्न क्षेत्रों में प्रचलन है।
आपकी सुविधार्थ हमने पृथक से दो-तीन प्रकार की प्रचलित आरतियाँ प्रस्तुत की हैं, अपनी रुचि के अनुसार कोई दूसरी आरती भी कर सकते हैं। अन्य आरतियाँ हमने पृथक जगह दे रखी हैं, वहाँ देखें।
यहाँ हमने बहुप्रचलित आरती ही दी है। आरती हेतु कपूर एवं अन्य (घी की बत्ती वाली) आरती प्रज्ज्वलित कर सबसे पहले निम्न मंत्र बोलकर आरती उतारें। तत्पश्चात यथारुचि अन्य आरती बोलें। आरती पूरी हो जाने पर आरती पात्र के दाहिने व बाईं ओर शीतलीकरण हेतु जल डालें।
यह ध्यान रखें कि जिस देवता की आरती उतारी है, उसी देवता की आरती हो जाने के पश्चातवही आरती प्रदर्शित करना शास्त्रों निषेध है। वही आरती तो केवल उपस्थित भक्त समुदाय ही लें। आरती लेने की विधि यह है कि आरती की लौ पर अपने दोनों हाथों को (लौ को न छूते हुए दूर से ही) रखकर अपने दोनों हाथ वहाँ से उठाकर अपने मुख पर फेर लें। इसे आरती लेना कहा जाता है। निम्न मंत्र से आरती उतारें-
मंत्र- 'हे प्रभो! केले के गर्भ से उत्पन्न यह कपूर जलाकर मैं इससे आपकी आरती करता हूँ। आप इसका अवलोकन कीजिए।'
' हे नाथ! आप मुझे मनवांछित वर प्रदान कीजिए।'

ऑनलाइन आरती के लिए क्लिक करें
पुष्पाँजलि
प्रदक्षिणा
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